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आगम सूत्र ३१, पयन्नासूत्र-८, 'गणिविद्या' सूत्र - ७२
निमित्त नष्ट नहीं होते । ऋषिभाषित मिथ्या नहीं होते, दुर्दिष्टि निमित्त द्वारा व्यवहार नष्ट होता है । सुदृष्ट निमित्त द्वारा व्यवहार नष्ट नहीं होता। सूत्र - ७३-७९
जो उत्पातिकी बोली और जो बच्चे बोलते हैं। और फिर स्त्री जो बोलती है उसका व्यतिक्रम नहीं है - उस जात द्वारा और उस जात का और उसके द्वारा समान तद्रूप से तादूप्य और सदृश से सदृश निर्देश होता है । स्त्रीपुरुष के निमित्त में शिष्य-दीक्षा करना । नपुंसक निमित्त में सर्वकार्य वर्जन, व्यामिश्र निमित्त में सर्व आरम्भ वर्जन करना, निमित्त कृत्रिम नहीं है । निमित्त भावि बताते हैं । जिससे सिद्ध पुरुष निमित्त-उत्पत्त लक्षण को जानते हैं। प्रशस्त-दृढ़ और ताकतवर निमित्त में शिष्य-दीक्षा, व्रत-स्थापना, गणसंग्रह करना और गणधर की स्थापना करनी। श्रुतस्कंध और गणि-वाचक की अनुज्ञा करनी चाहिए। सूत्र-८०-८१
अप्रशस्त, कमझोर और शिथिल निमित्त में सर्व कार्य वर्जन करना और आत्मसाधना करना । प्रशस्त निमित्त में हमेशा प्रशस्त कार्य का आरम्भ करना, अप्रशस्त निमित्त में सर्वकार्य वर्जन करना। सूत्र-८२-८४
दिन से अधिक तिथि ताकतवर है । तिथि से अधिक नक्षत्र ताकतवर है । नक्षत्र से करण, करण से ग्रहदिन ताकतवर है । उससे अधिक मुहूर्त, मुहूर्त से अधिक शकुन ताकतवर है । शकुन से लग्न ताकतवर है । उससे निमित्त प्रधान है । विलग्न निमित्त से निमित्त बल उत्तम है । निमित्त सब से प्रधान है । निमित्त से अधिक बलवान लोक में कुछ नहीं है। सूत्र-८५
इस तरह संक्षेप से बल-निर्बल विधि सुविहित द्वारा कही गई है । जो अनुयोग ज्ञान ग्राह्य है । और वो अप्रमत्तपन से जाननी चाहिए।
३१ गणिविद्या-प्रकिर्णक सूत्र-८ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(गणिविद्या)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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