Book Title: Agam 30 Prakirnaka 07 Gacchachar Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir | पच्चक्खं संसारे अज्जा परिक्खिवइ अम्माणं ॥ ११० ॥ जत्थ य गिहत्थभासाइ भासए अज्जिया सुरुट्ठावि । तं गच्छं गुणसायर ! | समणगुणविवज्जियं जाण ॥ १॥ गणि गोयम ! जा उचियं, सेयं वत्थं विवज्जि । सेवए चित्तरूवाणि, न सा अज्जा वियाहिया ॥ २ ॥ सीवणं तुन्नणं भरणं, गिहत्थाणं तु जा करे। तिल्लउव्वट्टणं वावि, अप्पणो य परस्स य ॥ ३ ॥ गच्छइ सविलासगई सयणीयं तूलियं सबिब्बोयं । उव्वट्टेइ सरीरं सिणाणमाईणि जा कुणइ ॥ ४ ॥ गेहेसु गिहत्थाणं गंतूण कहा कहेइ काही तरुणाई अहिवडते अणुजाणे |सा उ पडिणीया ॥ ५ ॥ वुड्डाणं तरुणाणं रत्तिं अज्जा कहेइ जा धम्मंी सा गणिणी गुणसायर ! पडिणीआ होइ गच्छस्स ॥ ६ ॥ जत्थ य | समणीणमसंखडाई गच्छंभि नेव जायंति। तं गच्छं गच्छवरं गिहत्थभासाओ नो जत्थ ॥ ७॥ जो जत्तो वा जाओ नालोअइ दिवसपक्खिअं वावि। सच्छंदा समणीओ (प्र० उवसमणे) मयहरयाए न ठायंति ॥ ८ ॥ विंटल आणि पउंजंति गिलाणसेहीण नेव तिष्यंति। अणगाढे | आगाढं करेंति आगाढि अणगाढं ॥ ९ ॥ अजयणाए पकुव्वंति, पाहुणगाण अ वच्छलं। चित्तल्लयाणि सेवंति, चित्ता रयहरणा तहा ॥ १२० ॥ गइविब्भमाइएहिं आगारविगार तह पगासिंति। जह वुड्ढाणवि मोहो समुईरइ किं नु तरूणाणं? ॥ १ ॥ बहुसो उच्छोलिंती मुहनयणे | हत्थपायक क्खाओ। गिण्हेड़ रागमंडण भोइंति अ तह य कब्बट्टे ॥ २ ॥ जत्थ य थेरी तरूणी य थेरी तरूणी य अंतरे सुयइ । गोयम! तं गच्छवरं वरनाणचरित आहारं ॥ ३ ॥ धोइंति कंठिआओ पोइंति तह य दिंति पोत्ताणि। गिहकज्जचिंतगीओ न हु अज्जा गोयमा ! ताओ ॥४॥ खरघोडाइट्ठाणे वयंति ते वावि तत्थ वच्यंति। वेसित्थी संसग्गी उवस्सयाओ समीवंमि ॥ ५ ॥ सज्झायमुक्कजोगा धम्मका विगहपेसण ॥ श्री गच्छाचार सूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित ८ For Private And Personal

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23