Book Title: Agam 27 Prakirnaka 04 Bhaktaparigna Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org | होसु नमुक्कारकुसलो य ॥ ९ ॥ मगतिहियाहिं तोयं मन्नति नरा जहा सतण्हाए। सुक्खाई कुहम्माओ तहेव मिच्छत्तमूढमणो ॥ ६० ॥ नवि तं करेइ अग्गी नेव विसं नेव किण्हसप्पो यो जं कुणइ महादोसं तिव्वं जीवस्स मिच्छत्तं ॥ १ ॥ पावड़ इहेव वसणं तुरुभिणिदत्तुव्व વાસ્કમાં પુરતો મિન્નુમોદિઞમળો સાઢુપોસા પાવાઞો ॥ ૨૫ મા વ્યાસિ તં પમાયં સમ્મત્તે સરુવનાસપ્નો નું સમ્મત્તપટ્ટાš | नाणतवविरिअचरणाइं ॥ ३ ॥ भावाणुरायपेमाणुरायसुगुणाणुरायर तो अधम्माणुरायर तो अ होसु जिणसासणे निच्च ॥ ४ ॥ दंसणभट्ठो भट्ठो न हुडो होइ चरणपब्भट्ठो। दंसणमणुपत्तस्स हु परिअडणं नत्थि संसारे ॥ ५ ॥ दंसणभट्ठो भट्टो कंसणभट्टस्स नत्थि निव्वाणी रहिआ दंसणरहिआ न सिज्झति ॥ ६ ॥ सुद्धे सम्मत्ते अविरओऽवि अज्जेइ थियरनामी जह आगमेसिभद्दा पोकलाणपरंपरयं लहूति जीवा विसुद्धसम्मत्ता। सम्मर्द्दसणरयणं नुइग्यई ससुरासुरे लोए ॥ ८ ॥ तेलुक्कस्स विडनि कामिणी सम्मत्तं पुणे વયગાર્યારઞસવ્વસાદૂનું नई लहावे आसिद्धिं परं परसुहाई ॥ २ ॥ तेसिं आराहणनायगाण अक्खखं लहइ मुख ॥ ॥ अरि ति सुपात तिगरणसुद्धेण भावेणं ॥ ७० ॥ निसा समायोजिणभत्ती दुग्गई जि ॥१॥ विज्जावि भत्तिमंतस्स सिद्धिमुवयाइ होइ फलया योकि पुर्ण निजा सिनिय न करिज्ज जो नरो भत्तिं । धणिअंपि उज्जमंतो सालिं सो ऊसरे ववइ आराहाभिच्छंतो, आराध्य मत्तिमकरंतो ॥ ४ ॥ उत्तमकुलसंपत्तिं सुहनिष्यतिं ॥ श्री कपरिमा ५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only समुब्भरण विणा । दुरस्य रायगिहे पू. सागरजी म. संशोधित

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