Book Title: Agam 27 Prakirnaka 04 Bhaktaparigna Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निजवगो आयरिओ निवेअणं कुणइ ॥३॥ आराहणपच्चइअंखभगस्स य निरुवसागपच्चइतो उस्सग्गो संघण होइ सव्वेण|| कायव्वो ॥४॥ पच्चक्खाविंति तओ तं ते खमयं चव्विहाहारं । संघसमुदायमझे चिइवंदणपुव्वयं विहिणा ॥५॥ अहवा समाहिहे3 सागारं च्यइ तिविहमाहातो पाणयंपि पच्छा वोसिरिअव्वं जहाकालं ॥६॥तो सो नमंतसिरसंघडंतकरकमलसेहरो विहिणाखामेइ सव्वसंघं संवेगं संजणेमाणो ॥७॥आयरिअ उवझाए सीसे साहम्मिए कुलगणे योजे मे केइ कसाया सव्वे तिविहेण खामेमि ॥८॥ सव्वे अवराहपए खामि अहं खमेउ मे भयवं!। अहमवि खमामि सुद्धो गुणसंधायस्स संघस्स ॥ ९॥ इअ वंदणखमणगरिहणाहिं भवसयसमजिअं कम । उवणेइ खणेण ख्यं मिआवई रायपत्तिव्य ॥५०॥ अह तस्स महव्वयसुटिअस्स जिणवयणभाविअमइस्स। पच्चक्खायाहारस्स तिव्वसंवेगसुहयंयस्स ॥१॥ आराहणलाभाओ कयत्थमप्याणयं मुणंतस्सा कलुसंकलतरणलट्ठि अणुसद्धिं देई गणिवसहो ॥२॥ कुग्गहपरुढमूल मूला उच्छिंद वच्छ ! मिच्छत्ती भावेसु परमतत्तं सम्मा सुत्तनीईए ॥३॥ भत्तिं च कुणसु तिव्वं गुणाणुराए वीयरायाणी तह पंचनमुक्कारे पवयणसारे रई कुणसु ॥४॥ सुविहियहियनिझाए सझाए उज्जओ सया होसु । निच्चं |पंच महव्वयरक्खं कुणआयपच्चक्खं ॥५॥उज्झसु नियाणसल्लं मोहमहल्लं सुकम्मनिस्सल्लोदमसु य मुणिंदसंदोहनिदिए इंदियमयंदे ॥ ६॥ निव्वाणसुहावाए विइननिरयाइदारुणावाए। हणसु कसायपिसाए विसयतिसाए सइसहाए ॥७॥ काले अपहप्ते सामन्ने सावसेसिए इण्हिी मोहमहारिउदारणअसिलढेि सुणसु अणुसटुिं॥८॥ संसारमूलबीयं मिच्छत्तं सव्वहा विवज्जेहि। सम्मत्तं दढचित्तो ॥श्री भक्तपरिज्ञा सूत्र॥ | पू. सागरजी म. संशोधिः For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25