Book Title: Agam 20 Kalpavatansika Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 5
________________ आगम सूत्र २०, उपांगसूत्र ९, 'कल्पवतंसिका' [२०] कल्पवतंसिका उपांगसूत्र- ९- हिन्दी अनुवाद अध्ययन- १ - पद्म अध्ययन / सूत्र सूत्र - १ भदन्त ! यदि श्रमण यावत् निर्वाण संप्राप्त भगवान् महावीर ने निरयावलिका नामक उपांग के प्रथम वर्ग का यह अर्थ कहा तो हे भदन्त ! दूसरे वर्ग कल्पवतंसिका का क्या अर्थ कहा है ? आयुष्मन् जम्बू ! कल्पवतंसिका के दस अध्ययन कहे हैं । - पद्म, महापद्म, भद्र, सुभद्र, पद्मप्रभ, पद्मसेन, पद्मगुल्म, नलिनगुल्म, आनन्द और नन्दन भगवन् ! यदि कल्पवतंसिका के दस अध्ययन कहे हैं तो प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ बताया है ? उस काल और उस समय में चंपा नगरी थी । पूर्णभद्र चैत्य था । कूणिक राजा था । पद्मावती पटरानी थी । उस चंपा नगरी में श्रेणिक राजा की भार्या, कूणिक राजा की विमाता काली रानी थी, जो अतीव सुकुमार एवं स्त्री - उचित यावत् गुणों से सम्पन्न थी। उस काली देवी का पुत्र कालकुमार था। उस कालकुमार की पद्मावती पत्नी थी, जो सुकोमल थी यावत् मानवीय भोगों को भोगती हुई समय व्यतीत कर रही थी । किसी एक रात्रि में भीतरी भाग में चित्र-विचित्र चित्रामों से चित्रित वासगृह में शैया पर शयन करती हुई स्वप्न में सिंह को देखकर वह पद्मावती देवी जागृत हुई। पुत्र का जन्म हुआ, महाबल की तरह उसका जन्मोत्सव मनाया गया, यावत् नामकरण किया- हमारे इस बालक का नाम पद्म हो। शेष समस्त वर्णन महाबल के समान समझना, यावत् आठ कन्याओं के साथ उसका पाणिग्रहण हुआ। यावत् पद्मकुमार ऊपरी श्रेष्ठ प्रासाद में रहकर भोग भोगते, विचरने लगा । भगवान महावीर स्वामी समवसृत हुए । परिषद् धर्म देशना श्रवण करने नीकली । कूणिक भी वंदनार्थ नीकला महाबल के समान पद्म भी दर्शन-वंदना करने के लिए नीकला। माता-पिता से अनुमति प्राप्त करके प्रव्रजित हुआ, यावत् गुप्त ब्रह्मचारी अनगार हो गया । पद्म अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर के तथारूप स्थविरों से सामायिक से लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन किया यावत् चतुर्थभक्त, षष्ठभक्त, अष्टमभक्त, इत्यादि विविध प्रकार की तप साधना से आत्मा को कर हु विचरने लगा। इसके बाद वह पद्म अनगार मेघकुमार के समान उस प्रभावक विपुल, सश्रीक, गुरु द्वारा प्रदत्त, कल्याणकारी, शिव, धन्य, प्रशंसनीय, मांगलिक, उदग्र, उदार, उत्तम, महाप्रभावशाली तप आराधना से शुष्क, रूक्ष, अस्थिमात्राविशेष शरीर वाला एवं कृश हो गया। किसी समय मध्यरात्रि में धर्म- जागरण करते हुए पद्म अनगार को चिन्तन उत्पन्न हुआ । मेघकुमार के समान श्रमण भगवान से पूछकर विपुल पर्वत जा कर यावत पादोपगमन संस्थारा स्वीकार कर के तथारूप स्थविरों से सामायिक आदि से लेकर ग्यारह अंगों का श्रवण कर परिपूर्ण पाँच वर्ष की श्रमण पर्याय का पालन करके मासिक संलेखना को अंगीकार कर और अनशन द्वारा साठ भक्तों का त्याग करके अनुक्रम से कालगत हुआ । भगवान गौतम ने पद्ममुनि के भविष्य के विषय में प्रश्न किया । स्वामी ने उत्तर दिया कि यावत् भोजनों का छेदन कर, आलोचना-प्रतिक्रमण कर सुदूर चंद्र आदि ज्योतिष्क विमानों के ऊपर सौधर्मकल्प में देव रूप से उत्पन्न हुआ है । वहाँ दो सागरोपम की उसकी आयु है । भदन्त ! वह पद्मदेव आयुक्षय के अनन्तर उस देवलोक से च्यवन करके कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा । दृढप्रतिज्ञ के समान यावत् जन्म-मरण का अंत करेगा । इस प्रकार हे आयुष्मन् जम्बू ! कल्पवतंसिका के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ प्रज्ञप्त किया है । अध्ययन १ का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (कल्पवतंसिका)" आगमसूत्र - हिन्द-अनुवाद" Page 5

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