Book Title: Agam 20 Kalpavatansika Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स बाल ब्रह्मचारी श्री नेमिनाथाय नमः पूज्य आनन्द-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर-गुरूभ्यो नमः आगम-२० कल्पवतंसिका आगमसूत्र हिन्दी अनुवाद अनुवादक एवं सम्पादक आगम दीवाकर मुनि दीपरत्नसागरजी [ M.Com. M.Ed. Ph.D. श्रुत महर्षि ] आगम हिन्दी-अनुवाद-श्रेणी पुष्प-२० Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्ययन/सूत्र आगम सूत्र २०, उपांगसूत्र-९, 'कल्पवतंसिका' आगमसूत्र-२०- 'कल्पवतंसिका' उपांगसूत्र-९- हिन्दी अनुवाद कहां क्या देखे? क्रम विषय पृष्ठ क्रम विषय पृष्ठ ०५ अध्ययन-१- 'पद्म' अध्ययन- २- 'महापद्म' ३ | अध्ययन-३-से-१० ०६ मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(कल्पवतंसिका) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 2 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम सूत्र २०, उपांगसूत्र-९, 'कल्पवतंसिका' अध्ययन/सूत्र ४५ आगम वर्गीकरण क्रम । आगम का नाम क्रम आगम का नाम सूत्र | ०१ आचार पयन्नासूत्र-२ २६ ०२ सूत्रकृत् ०३ | स्थान अंगसूत्र-१ अंगसूत्र-२ अंगसूत्र-३ अंगसूत्र-४ | २५ । आतुरप्रत्याख्यान | महाप्रत्याख्यान भक्तपरिज्ञा तंदुलवैचारिक संस्तारक २७ पयन्नासूत्र-३ पयन्नासूत्र-४ पयन्नासूत्र-५ पयन्नासूत्र-६ ०४ समवाय भर ०५ अंगसूत्र-५ २९ भगवती ज्ञाताधर्मकथा ०६ । अंगसूत्र-६ पयन्नासूत्र-७ ०७ उपासकदशा अंगसत्र-७ अंगसूत्र-८ ३०.१ गच्छाचार ३०.२ | चन्द्रवेध्यक | गणिविद्या देवेन्द्रस्तव ३३ वीरस्तव निशीथ अंगसूत्र-९ ०८ अंतकृत् दशा ०९ अनुत्तरोपपातिकदशा १० | प्रश्नव्याकरणदशा ११ विपाकश्रुत १२ औपपातिक ३२ अंगसूत्र-१० अंगसूत्र-११ । ३४ पयन्नासूत्र-७ पयन्नासूत्र-८ पयन्नासूत्र-९ पयन्नासूत्र-१० छेदसूत्र-१ छेदसूत्र-२ छेदसूत्र-३ छेदसूत्र-४ छेदसूत्र-५ छेदसूत्र-६ उपांगसूत्र-१ ३५ । बृहत्कल्प राजप्रश्रिय उपांगसूत्र-२ व्यवहार | जीवाजीवाभिगम उपागसूत्र-३ ३७ उपांगसूत्र-४ उपांगसूत्र-५ १५ | प्रज्ञापना | सूर्यप्रज्ञप्ति १७ चन्द्रप्रज्ञप्ति १८ | जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति १९ | निरयावलिका ३९ । ४० उपांगसूत्र-६ दशाश्रुतस्कन्ध ३८ जीतकल्प महानिशीथ आवश्यक ४१.१ ओघनियुक्ति ४१.२ | पिंडनियुक्ति ४२ दशवैकालिक उत्तराध्ययन मूलसूत्र-१ मूलसूत्र-२ उपांगसूत्र-७ उपागसूत्र-८ मूलसूत्र-२ | कल्पवतंसिका २१ पुष्पिका २२ पुष्पचूलिका वृष्णिदशा उपांगसूत्र-९ उपांगसूत्र-१० उपांगसूत्र-११ उपांगसूत्र-१२ मूलसूत्र-३ मूलसूत्र-४ चूलिकासूत्र-१ चूलिकासूत्र-२ ४४ । नन्दी अनुयोगद्वार चतुःशरण पयन्नासूत्र-१ मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(कल्पवतंसिका) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 3 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम सूत्र २०, उपांगसूत्र-९, 'कल्पवतंसिका' अध्ययन/सूत्र 10 [45] 06 मुनि दीपरत्नसागरजी प्रकाशित साहित्य आगम साहित्य आगम साहित्य साहित्य नाम बक्स क्रम साहित्य नाम मूल आगम साहित्य: 147 6 आगम अन्य साहित्य:1-1- आगमसुत्ताणि-मूलं print [49] -1- याराम थानुयोग 06 -2- आगमसुत्ताणि-मूलं Net -2- आगम संबंधी साहित्य 02 -3- आगममञ्जूषा (मूल प्रत) [53] | -3- ऋषिभाषित सूत्राणि 01 आगम अनुवाद साहित्य:165 -4- आगमिय सूक्तावली 01 1-1-मागमसूत्रगुती सनुवाई [47] | | आगम साहित्य- कुल पुस्तक 516 -2- आगमसूत्र हिन्दी अनुवाद Net: [47] | -3- Aagamsootra English Trans. | [11] | -4- सामसूत्रसटी ४राती सनुवाई | [48] -5- आगमसूत्र हिन्दी अनुवाद print [12] अन्य साहित्य:3 आगम विवेचन साहित्य:171 1तवाल्यास साहित्य -13 -1- आगमसूत्र सटीक [46] 2 सूत्रात्यास साहित्य-2- आगमसूत्राणि सटीकं प्रताकार-11151]| 3 વ્યાકરણ સાહિત્ય 05 | -3- आगमसूत्राणि सटीकं प्रताकार-20 વ્યાખ્યાન સાહિત્ય 04 -4-आगम चूर्णि साहित्य [09] 5 उनलत साहित्य 09 | -5- सवृत्तिक आगमसूत्राणि-1 [40] 6 aoसाहित्य-6- सवृत्तिक आगमसूत्राणि-2 [08] 7 माराधना साहित्य 03 |-7- सचूर्णिक आगमसुत्ताणि [08] 8 परियय साहित्य 04 आगम कोष साहित्य: 149 પૂજન સાહિત્ય 02 -1- आगम सद्दकोसो તીર્થકર સંક્ષિપ્ત દર્શન -2- आगम कहाकोसो [01]| 11 ही साहित्य 05 -3-आगम-सागर-कोष: [05] 12 દીપરત્નસાગરના લઘુશોધનિબંધ -4- आगम-शब्दादि-संग्रह (प्रा-सं-गु) [04] | આગમ સિવાયનું સાહિત્ય કૂલ પુસ્તક आगम अनुक्रम साहित्य: 09 -1- भागमविषयानुभ- (भूग) 02 | 1-आगम साहित्य (कुल पुस्तक) -2- आगम विषयानुक्रम (सटीक) 04 2-आगमेतर साहित्य (कुल -3-आगम सूत्र-गाथा अनुक्रम दीपरत्नसागरजी के कुल प्रकाशन 60 A AAEमुनिहीपरत्नसागरनुं साहित्य भुमिहीपरत्नसागरनुं आगम साहित्य [ पुस्त8 516] तेजा पाना [98,300] 2 भुनिटीपरत्नसागरनुं मन्य साहित्य [हुत पुस्त8 85] तना हुस पाना [09,270] 3 भुनिटीपरत्नसागर संशसित तत्वार्थसूत्र'नी विशिष्ट DVD तनाहुल पाना [27,930] | अभा। प्राशनोg so१ + विशिष्ट DVD हुल पाना 1,35,500 मुनि दीपरत्नसागर कृत् (कल्पवतंसिका) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद' Page 4 04 25 05 85 08 | 03 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम सूत्र २०, उपांगसूत्र ९, 'कल्पवतंसिका' [२०] कल्पवतंसिका उपांगसूत्र- ९- हिन्दी अनुवाद अध्ययन- १ - पद्म अध्ययन / सूत्र सूत्र - १ भदन्त ! यदि श्रमण यावत् निर्वाण संप्राप्त भगवान् महावीर ने निरयावलिका नामक उपांग के प्रथम वर्ग का यह अर्थ कहा तो हे भदन्त ! दूसरे वर्ग कल्पवतंसिका का क्या अर्थ कहा है ? आयुष्मन् जम्बू ! कल्पवतंसिका के दस अध्ययन कहे हैं । - पद्म, महापद्म, भद्र, सुभद्र, पद्मप्रभ, पद्मसेन, पद्मगुल्म, नलिनगुल्म, आनन्द और नन्दन भगवन् ! यदि कल्पवतंसिका के दस अध्ययन कहे हैं तो प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ बताया है ? उस काल और उस समय में चंपा नगरी थी । पूर्णभद्र चैत्य था । कूणिक राजा था । पद्मावती पटरानी थी । उस चंपा नगरी में श्रेणिक राजा की भार्या, कूणिक राजा की विमाता काली रानी थी, जो अतीव सुकुमार एवं स्त्री - उचित यावत् गुणों से सम्पन्न थी। उस काली देवी का पुत्र कालकुमार था। उस कालकुमार की पद्मावती पत्नी थी, जो सुकोमल थी यावत् मानवीय भोगों को भोगती हुई समय व्यतीत कर रही थी । किसी एक रात्रि में भीतरी भाग में चित्र-विचित्र चित्रामों से चित्रित वासगृह में शैया पर शयन करती हुई स्वप्न में सिंह को देखकर वह पद्मावती देवी जागृत हुई। पुत्र का जन्म हुआ, महाबल की तरह उसका जन्मोत्सव मनाया गया, यावत् नामकरण किया- हमारे इस बालक का नाम पद्म हो। शेष समस्त वर्णन महाबल के समान समझना, यावत् आठ कन्याओं के साथ उसका पाणिग्रहण हुआ। यावत् पद्मकुमार ऊपरी श्रेष्ठ प्रासाद में रहकर भोग भोगते, विचरने लगा । भगवान महावीर स्वामी समवसृत हुए । परिषद् धर्म देशना श्रवण करने नीकली । कूणिक भी वंदनार्थ नीकला महाबल के समान पद्म भी दर्शन-वंदना करने के लिए नीकला। माता-पिता से अनुमति प्राप्त करके प्रव्रजित हुआ, यावत् गुप्त ब्रह्मचारी अनगार हो गया । पद्म अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर के तथारूप स्थविरों से सामायिक से लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन किया यावत् चतुर्थभक्त, षष्ठभक्त, अष्टमभक्त, इत्यादि विविध प्रकार की तप साधना से आत्मा को कर हु विचरने लगा। इसके बाद वह पद्म अनगार मेघकुमार के समान उस प्रभावक विपुल, सश्रीक, गुरु द्वारा प्रदत्त, कल्याणकारी, शिव, धन्य, प्रशंसनीय, मांगलिक, उदग्र, उदार, उत्तम, महाप्रभावशाली तप आराधना से शुष्क, रूक्ष, अस्थिमात्राविशेष शरीर वाला एवं कृश हो गया। किसी समय मध्यरात्रि में धर्म- जागरण करते हुए पद्म अनगार को चिन्तन उत्पन्न हुआ । मेघकुमार के समान श्रमण भगवान से पूछकर विपुल पर्वत जा कर यावत पादोपगमन संस्थारा स्वीकार कर के तथारूप स्थविरों से सामायिक आदि से लेकर ग्यारह अंगों का श्रवण कर परिपूर्ण पाँच वर्ष की श्रमण पर्याय का पालन करके मासिक संलेखना को अंगीकार कर और अनशन द्वारा साठ भक्तों का त्याग करके अनुक्रम से कालगत हुआ । भगवान गौतम ने पद्ममुनि के भविष्य के विषय में प्रश्न किया । स्वामी ने उत्तर दिया कि यावत् भोजनों का छेदन कर, आलोचना-प्रतिक्रमण कर सुदूर चंद्र आदि ज्योतिष्क विमानों के ऊपर सौधर्मकल्प में देव रूप से उत्पन्न हुआ है । वहाँ दो सागरोपम की उसकी आयु है । भदन्त ! वह पद्मदेव आयुक्षय के अनन्तर उस देवलोक से च्यवन करके कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा । दृढप्रतिज्ञ के समान यावत् जन्म-मरण का अंत करेगा । इस प्रकार हे आयुष्मन् जम्बू ! कल्पवतंसिका के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ प्रज्ञप्त किया है । अध्ययन १ का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (कल्पवतंसिका)" आगमसूत्र - हिन्द-अनुवाद" Page 5 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम सूत्र २०, उपांगसूत्र ९, कल्पवतंसिका' अध्ययन- २ - महापद्म सूत्र - २ भदन्त ! यदि श्रमण यावत् निर्वाणप्राप्त भगवान ने कल्पवतंसिका के प्रथम अध्ययन का उक्त भाव प्रतिपादित किया है तो उसके द्वितीय अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? आयुष्मन् जम्बू ! उस काल और उस समय में चंपा नगरी थी । पूर्णभद्र चैत्य था । उस चंपानगरी में श्रेणिक राजा की भार्या कूणिक राजा की विमाता सुकाली रानी थी। उस सुकाली का पुत्र सुकाल राजकुमार था। उस राजकुमार सुकाल की सुकुमाल आदि विशेषता युक्त महापद्मा नाम की पत्नी थी। उस महापद्मा ने किसी एक रात्रि में सुखद शैया पर सोते हुए एक स्वप्न देखा, इत्यादि पूर्ववत्। बालक का जन्म हुआ और उस का महापद्म नामकरण किया गया यावत् वह प्रव्रज्या अंगीकार कर के महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा। विशेष यह कि ईशान कल्पमें उत्पन्न हुआ । वहाँ उसे उत्कृष्ट स्थिति कुछ अधिक दो सागरोपम हुई । अध्ययन- २ का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण -----X-----X-----X-----X-----X-----X----- अध्ययन- ३ से १० अध्ययन / सूत्र सूत्र - ३ इसी प्रकार शेष आठों ही अध्ययनों का वर्णन जान लेना । पुत्रों के समान ही माता के नाम हैं, पद्म और महापद्म अनगार की पाँच-पाँच वर्ष की, भद्र, सुभद्र और पद्मप्रभ की चार-चार वर्ष की, पद्मसेन, पद्मगुल्म और नलिनीगुल्म की तीन-तीन वर्ष की तथा आनन्द और नन्दन की दीक्षापर्याय दो-दो वर्ष की थी। ये सभी श्रेणिक राजा के पौत्र थे अनुक्रम से इनका जन्म हुआ। देहत्याग के पश्चात् प्रथम का सौधर्मकल्प में, द्वितीय का ईशान कल्प में, तृतीय का सनत्कुमारकल्प में, चतुर्थ का माहेन्द्रकल्प में, पंचम का ब्रह्मलोक में, षष्ठ का लान्तककल्प में, सप्तम का महाशुक्र में, अष्टम का सहस्रारकल्प में, नवम का प्राणतकल्प में और दशम का अच्युतकल्प में देव रूप जन्म हुआ। सभी की स्थिति उत्कृष्ट कहना । ये सभी स्वर्ग से च्यवन करके महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होंगे। अध्ययन- ३ से १०- का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण -----X-----X-----X-----X-----X-----X----- २०- कल्पवतंसिका - उपांगसूत्र- ९ का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (कल्पवतंसिका)" आगमसूत्र - हिन्द-अनुवाद" Page 6 Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम सूत्र 20, उपांगसूत्र-९, 'कल्पवतंसिका' अध्ययन/सूत्र नमो नमो निम्मलदंसणस्स પૂજ્યપાદ્ શ્રી આનંદ-ક્ષમા-લલિત-સુશીલ-સુધર્મસાગર ગુરૂભ્યો નમ: 20 HALA कल्पवतंसिका आगमसूत्र हिन्दी अनुवाद [अनुवादक एवं संपादक] आगम दीवाकर मुनि दीपरत्नसागरजी [ M.Com. M.Ed. Ph.D. श्रुत महर्षि ] AG 21182:- (1) (2) deepratnasagar.in भेला भेड्रेस:- jainmunideepratnasagar@gmail.com भोला/ 09825967397 मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(कल्पवतंसिका) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 7