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आगम सूत्र २०, उपांगसूत्र ९, कल्पवतंसिका'
अध्ययन- २ - महापद्म
सूत्र - २
भदन्त ! यदि श्रमण यावत् निर्वाणप्राप्त भगवान ने कल्पवतंसिका के प्रथम अध्ययन का उक्त भाव प्रतिपादित किया है तो उसके द्वितीय अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?
आयुष्मन् जम्बू ! उस काल और उस समय में चंपा नगरी थी । पूर्णभद्र चैत्य था । उस चंपानगरी में श्रेणिक राजा की भार्या कूणिक राजा की विमाता सुकाली रानी थी। उस सुकाली का पुत्र सुकाल राजकुमार था। उस राजकुमार सुकाल की सुकुमाल आदि विशेषता युक्त महापद्मा नाम की पत्नी थी। उस महापद्मा ने किसी एक रात्रि में सुखद शैया पर सोते हुए एक स्वप्न देखा, इत्यादि पूर्ववत्। बालक का जन्म हुआ और उस का महापद्म नामकरण किया गया यावत् वह प्रव्रज्या अंगीकार कर के महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा। विशेष यह कि ईशान कल्पमें उत्पन्न हुआ । वहाँ उसे उत्कृष्ट स्थिति कुछ अधिक दो सागरोपम हुई ।
अध्ययन- २ का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
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अध्ययन- ३ से १०
अध्ययन / सूत्र
सूत्र - ३
इसी प्रकार शेष आठों ही अध्ययनों का वर्णन जान लेना । पुत्रों के समान ही माता के नाम हैं, पद्म और महापद्म अनगार की पाँच-पाँच वर्ष की, भद्र, सुभद्र और पद्मप्रभ की चार-चार वर्ष की, पद्मसेन, पद्मगुल्म और नलिनीगुल्म की तीन-तीन वर्ष की तथा आनन्द और नन्दन की दीक्षापर्याय दो-दो वर्ष की थी। ये सभी श्रेणिक राजा के पौत्र थे अनुक्रम से इनका जन्म हुआ। देहत्याग के पश्चात् प्रथम का सौधर्मकल्प में, द्वितीय का ईशान कल्प में, तृतीय का सनत्कुमारकल्प में, चतुर्थ का माहेन्द्रकल्प में, पंचम का ब्रह्मलोक में, षष्ठ का लान्तककल्प में, सप्तम का महाशुक्र में, अष्टम का सहस्रारकल्प में, नवम का प्राणतकल्प में और दशम का अच्युतकल्प में देव रूप जन्म हुआ। सभी की स्थिति उत्कृष्ट कहना । ये सभी स्वर्ग से च्यवन करके महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होंगे।
अध्ययन- ३ से १०- का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
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२०- कल्पवतंसिका - उपांगसूत्र- ९ का
मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (कल्पवतंसिका)" आगमसूत्र - हिन्द-अनुवाद"
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