Book Title: Agam 17 Chandpannatti Uvangsutt 06 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 68
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पाहुड- २० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२११) कर करिए रायग्गल बोधव्वे पुष्फ भावकेतू य अट्ठासीति खलु गहा नेतव्वा आणुपुबीए • वीसइमं पाहुडं समत्तं (२१२ ) इह एस पाहुडत्या अभव्वजणहिययदुल्लहा इणमो उविकत्तिता भगवती जोतिसरायस्स पत्रत्ती (२१३) एस गहितावि संति बद्धे गारविय-माणि-पडीणीए अबहुस्सुए णं देया तव्विवरीते भवे देया (२१४ ) सद्धा-घिति- उड्डाणुच्छाह -कम्म-बल-वीरिय- पुरिसकारेहिं जो सिक्खि ओवि संतो अभायणे पक्खिवेज्जाहि (२१५) सो पयवण-कुल-गण- संधबाहिरो नाणविणयपरिहीणो अरहंत थेरगणहरमेरं किर होति वोलीणो (२१६) तम्हा धिति - उट्ठाणुच्छाह-कम्म-बल-वीरियसिक्खियं नाणं धारेयव्वं नियमा ण य अविणीएसु दायव्वं ( २१७ ) वीरवरस्स भगवती जर भरणकिले सदोसरहियस्स वंदामि विणयपणतो सोक्खुप्पाए सदा पाए (२१८) इइ संगहणी गाहा १०७/- 107 १९७६ For Private And Personal Use Only 118211-10 11881-22 11900||-12 1190911-13 ॥१०२॥-14 ॥१०३॥1-15 १७ | चंद पन्नत्ती समत्तं छटुं उवंगं समत्तं ६३

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