Book Title: Agam 16 Suryapragnati Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र १६, उपांगसूत्र-५, 'सूर्यप्रज्ञप्ति'
प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र विरहित होते हैं-दूसरा, चौथा, पाँचवा, नववां, बारहवां, तेरहवां और चौदहवां । जो चन्द्रमंडल सूर्य-चन्द्र नक्षत्रों में साधारण हो ऐसे चार मंडल हैं-पहला, दूसरा, ग्यारहवां और पन्द्रहवां । ऐसे पाँच चन्द्रमंडल हैं, जो सदा सूर्य से विरहित होते हैं-छठे से लेकर दसवां ।
प्राभृत-१०- प्राभृत-प्राभृत-१२ सूत्र-५६
हे भगवन् ! इन नक्षत्रों के देवता के नाम किस प्रकार हैं ? इन अट्ठाईस नक्षत्रों में अभिजीत नक्षत्र के ब्रह्म नामक देवता हैं, इसी प्रकार श्रवण के विष्णु, घनिष्ठा के वसुदेव, शतभिषा के वरुण, पूर्वाभाद्रपदा के अज, उत्तराभाद्रपदा के अभिवृद्धि, रेवती के पूष, अश्विनी के अश्व, भरणी के यम, कृतिका के अग्नि, रोहिणी के प्रजापति, मृगशिरा के सोम, आर्द्रा के रुद्रदेव, पुनर्वसु के अदिति, पुष्य के बृहस्पति, अश्लेषा के सर्प, मघा के पितृदेव, पूर्वा फाल्गुनी के भग, उत्तराफाल्गुनी के अर्यमा, हस्त के सविष्ट, चित्रा के तक्ष, स्वाति के वायु, विशाखा के इन्द्र एवं अग्नि, अनुराधा के मित्र, ज्येष्ठा के इन्द्र, मूल के नैऋर्ति, पूर्वाषाढ़ा के अप् और उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के विश्व नामक देवता हैं।
प्राभृत-१० - प्राभृत-प्राभृत-१३ सूत्र-५७-६०
हे भगवन् ! मुहूर्त के नाम किस प्रकार हैं ? एक अहोरात्र के तीस मुहूर्त बताये हैं-यथानुक्रम से इस प्रकार से हैं । रौद्र, श्रेयान्, मित्रा, वायु, सुग्रीव, अभिचन्द्र, माहेन्द्र, बलवान्, ब्रह्मा, बहुसत्य, ईशान तथा- त्वष्ट्रा, भावितात्मा, वैश्रवण, वरुण, आनंद, विजया, विश्वसेन, प्रजापति, उपशम तथा- गंधर्व, अग्निवेश, शतवृषभ, आतपवान्, अमम, ऋणवान, भौम, ऋषभ, सर्वार्थ और राक्षस ।
प्राभृत-१० - प्राभृत-प्राभृत-१४ सूत्र-६१-६४
हे भगवन् ! किस क्रम से दिन का क्रम कहा है ? एक-एक पक्ष के पन्द्रह दिवस हैं-प्रतिपदा, द्वितीया यावत् पूर्णिमा । यह १५ दिन के १५ नाम इस प्रकार-पूर्वांग, सिद्धमनोरम, मनोहर, यशोभद्र, यशोधर, सर्वकामसमृद्ध;, इन्द्रमूद्धाभिषिक्त, सौमनस, धनंजय, अर्थसिद्ध, अभिजात, अत्याशन, शतंजय;अग्निवेश्म,उपशम । ये दिवस के नाम हैं सूत्र-६४-६८
हे भगवन् ! रात्रि का क्रम किस तरह प्रतिपादित किया है ? एक-एक पक्ष में पन्द्रह रात्रियाँ हैं-प्रतिपदारात्रि, द्वितीयारात्रि...यावत्... पन्द्रहवी रात्रि। रात्रियों के १५ नाम इस प्रकार-उत्तमा, सुनक्षत्रा, एलापत्या, यशोधरा, सौमनसा, श्रीसंभूता; विजया, वैजयंती, जयंती, अपराजिता, ईच्छा, समाहारा, तेजा, अतितेजा; देवानन्दा । ये रात्रियों के नाम हैं
प्राभृत-१०- प्राभृत-प्राभृत-१५ सूत्र-६८
हे भगवन् ! यह तिथि किस प्रकार से कही है ? तिथि दो प्रकार की है-दिवसतिथि और रात्रितिथि । वह दिवसतिथि एक-एक पक्ष में पन्द्रह-पन्द्रह होती है-नंदा, भद्रा, जया, तुच्छा, पूर्णा यह पाँच को तीन गुना करना, नाम का क्रम यहीं है । वह रात्रि तिथि भी एक-एक पक्ष में पन्द्रह होती है-उग्रवती, भोगवती, यशस्वती, सव्वसिद्धा, शुभनामा इसी पाँच को पूर्ववत् तीन गुना कर देना ।
प्राभृत-१०-प्राभृत-प्राभृत-१६ सूत्र - ६९
हे भगवन् ! नक्षत्र के गोत्र किस प्रकार से कहे हैं ? इन अट्ठाईस नक्षत्रों में अभिजीत नक्षत्र का गोत्र मुद्गलायन है, इसी तरह श्रवण का शंखायन, घनिष्ठा का अग्रतापस, शतभिषा का कर्णलोचन, पूर्वाभाद्रपद का जातुकर्णिय, उत्तराभाद्रपद का धनंजय, रेवती का पौष्यायन, अश्विनी का आश्वायन, भरणी का भार्गवेश, कृतिका का
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (सूर्यप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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