Book Title: Agam 16 Suryapragnati Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 45
________________ आगम सूत्र १६, उपांगसूत्र-५, 'सूर्यप्रज्ञप्ति' प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र सम्बद्धलेश्या से भ्रमण करते हैं । कालोद समुद्र में ११७६ नक्षत्र एवं ३६९६ महाग्रह हैं । उसमें २८,१२९५० कोड़ाकोड़ी तारागण हैं। सूत्र - १४६-१५० पुष्करवर नामका वृत्त-वलयाकार यावत् समचक्रवाल संस्थित द्वीप है कालोद समुद्र को चारों ओर से घीरे हुए है । पुष्करवर द्वीप का चक्रवाल विष्कम्भ सोलह लाख योजन है और उसकी परिधि १,९२,४९,८४९ योजन है। पुष्करवरद्वीप में १४४ चंद्र प्रभासित हुए हैं-होते हैं और होंगे, १४४ सूर्य तापीत करते थे-करते हैं और करेंगे, ४०३२ नक्षत्रों ने योग किया था-करते हैं और करेंगे, १२६७२ महाग्रह भ्रमण करते थे-करते हैं और करेंगे, ९६४४४०० कोड़ाकोड़ी तारागण शोभित होते थे-होते हैं और होंगे। पुष्करवर द्वीप का परिक्षेप १९२४९८४९ योजन है । पुष्करवरद्वीप में १४४ चंद्र, १४४ सूर्य भ्रमण करते हैं एवं प्रकाश करते हैं । उसमें ४०३२ नक्षत्र एवं १२६७२ महाग्रह हैं । ९६४४४०० कोड़ाकोड़ी तारागण पुष्करवर द्वीप में हैं। सूत्र - १५१ इस पुष्करवरद्वीप के बहुमध्य देशभागमें मानुषोत्तर नामक पर्वत है, वृत्त एवं वलयाकार है, जिसके द्वारा पुष्करवरद्वीप के एक समान दो विभाग होते हैं-अभ्यन्तर पुष्करावर्ध और बाह्य पुष्करावर्ध | अभ्यन्तर पुष्करावर्ध द्वीप समचक्रवाल संस्थित है, उसका चक्रवाल विष्कम्भ आठ लाख योजन है, परिधि १४२३०२४९ प्रमाण है, उसमें ७२ चंद्र प्रभासित हुए थे-होते हैं-होंगे, ७२-सूर्य तपे थे-तपते हैं-तपेंगे, २०१६ नक्षत्रों ने योग किया था-करते हैं -करेंगे, ६३३६ महाग्रह भ्रमण करते थे-करते हैं और करेंगे, ४८२२०० कोड़ाकोड़ी तारागण शोभित हुए थे-होते हैं और होंगे। सूत्र-१५२-१५६ अभ्यंतर पुष्करार्ध का विष्कम्भ आठ लाख योजन है और पूरे मनुष्य क्षेत्र का विष्कम्भ ४५ लाख योजन है। मनुष्य क्षेत्र का परिक्षेप १००४२२४९ योजन है । अर्ध पुष्करवरद्वीप में ७२-चंद्र, ७२-सूर्य दिप्त हैं, विचरण करते हैं और इस द्वीप को प्रकाशित करते हैं । इस में ६३३६ महाग्रह और २०१६ नक्षत्र हैं । पुष्करवरार्ध में ४८२२२०० कोड़ाकोड़ी तारागण हैं। सूत्र-१५७-१५९ सकल मनुष्यलोक को १३२-चंद्र और १३२-सूर्य प्रकाशित करके भ्रमण करते हैं । तथा-इसमें ११६१६ महाग्रह तथा ३६९६ नक्षत्र हैं । इसमें ८८४०७०० कोड़ाकोड़ी तारागण है। सूत्र - १६०,१६१ मनुष्यलोक में पूर्वोक्त तारागण हैं और मनुष्यलोक के बाहर असंख्यात तारागण जिनेश्वर भगवंतने प्रतिपादित किये हैं । मनुष्यलोक में स्थित तारागण का संस्थान कलंबपुष्प के समान बताया है। सूत्र - १६२ सूर्य, चंद्र, ग्रह, नक्षत्र और तारागण मनुष्यलोक में प्ररूपित किये हैं, उस के नामगोत्र प्राकृत पुरुषों ने बताए नहीं है। सूत्र - १६३-१६६ दो चंद्र और दो सूर्य की एक पिटक होती है, ऐसी छासठ पिटक मनुष्यलोक में कही गई है । एक एक पिटक में छप्पन नक्षत्र होते हैं, ऐसी छासठ पिटक मनुष्यलोक में बताई गई है । एक एक पिटक में १७६ ग्रह होते हैं, ऐसी छासठ पिटक मनुष्य लोक में फरमाते हैं । सूत्र- १६६-१६८ दो सूर्य और दो चंद्र की ऐसी ४ पंक्तियाँ होती हैं, मनुष्य लोक में ऐसी ६६-६६ पंक्तियाँ होती है । ५६ नक्षत्र की एक पंक्ति, ऐसी ६६-६६ पंक्ति मनुष्यलोकमें होती है । १७६ ग्रह की एक ऐसी ६६-६६ पंक्ति मनुष्यलोक में होती है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (सूर्यप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 45

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