Book Title: Agam 16 17 Chandra Pragnapti Surya Pragnapti Sutra
Author(s): Rajematibai Mahasati, Artibai Mahasati, Subodhikabai Mahasati
Publisher: Guru Pran Prakashan Mumbai

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Page 470
________________ | ४०४ । શ્રી ચંદ્ર-સૂર્ય પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર इय एस पागडत्था, अभव्वजणहियय दुल्लहाइ णमो । उक्कित्तिया भगवया जोइसरायस्स पण्णत्ती ॥१॥ एस गहियावि संता, थद्धे गारवियमाणिपडिणीए । अबहुस्सुए ण देया, तविवरीए भवे देया ॥२॥ सद्धा धिइ-उट्ठाणुच्छाह कम्मबलविरिय पुरिसकारेहिं । जो सिक्खिओवि संतो, अभायणे परि कहेज्जाहि ॥३॥ सो पवयण-कुल-गण-संघबाहिरो णाणविणय-परिहीणो । अरहंत-थेरगणहरमेरं किर होई वोलीणो ॥४॥ तम्हा धिइउट्ठाणुच्छाह, कम्मबलवीरियसिक्खियं णाणं । धारेयव्वं णियमा, ण य अविणएसु दायव्वं ॥५॥ वीरवरस्स भगवओ, जरमरण-किलेस-दोसरहियस्स । वंदामि विणयपणओ सोक्खुप्पाए सया पाए ॥६॥ ॥इति चंदपण्णत्तिसुत्तं सम्मतं ॥ | नोध:- जाव..... थी प्रस्तुत आगमनो सूत्र-८ना सूत्रपाथी प्रारंभ अरी २०मा प्रामृतन। १७॥ | સૂત્ર પર્યંતનો સૂત્રપાઠ ગ્રહણ થાય છે.

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