Book Title: Agam 16 17 Chandra Pragnapti Surya Pragnapti Sutra
Author(s): Rajematibai Mahasati, Artibai Mahasati, Subodhikabai Mahasati
Publisher: Guru Pran Prakashan Mumbai

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Page 468
________________ । ४०२ શ્રી ચંદ્ર-સૂર્ય પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર શ્રી ચંદ્રપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર મૂળપાઠ जयइ णव-णलिण-कुवलय-वियसिय-सयवत्त-पत्तलदलच्छो । वीरो गइंद-मयगल-सललिय-गयविक्कमो भयवं ॥१॥ णमिऊण असुर-सुर-गरुल-भुयग-परिवंदिए गयकिलेसे । अरिहे सिद्धायरिए-उवज्झाए सव्वसाहू य ॥२॥ फुड-वियड-पागडत्थं, वुच्छं पुव्व-सुय-सार-णिस्संदं । सुहुम गणिणोवदिटुं, जोइसगणरायपण्णत्तिं ॥३॥ णामेण इंदभूइत्ति, गोयमो वंदिऊण तिविहेणं । पुच्छइ जिणवर वसहं, जोइसगणरायस्स पण्णत्तिं ॥४॥ कइ मंडलाइ वच्चइ, तिरिच्छा किं च गच्छई । ओभासइ केवइयं, सेयाइ किं ते संठिई ॥५॥ कहिं पडिहया लेसा, कहं ते ओयसंठिई । के सूरियं वरयंति, कहं ते उदयसंठिई ॥६॥ कइकट्ठा पोरिसीच्छाया, जोगेत्ति किं ते आहिए । के ते संवच्छराणाई, कइ संवच्छराइ य ॥७॥ कहिं चंदमसो वुड्डी, कया ते जोसिणा बहू । के य सिग्धगई वुत्ते, कहं ते जोसिण लक्खणं ॥८॥ चयणोववाय उच्चत्तं, सूरिया कइ आहिया । अणुभावे केरिसे वुत्ते, एवमेयाई वीसई ॥९॥ वुड्डोवुड्डी मुहुत्ताणं अद्धमंडलसंठिई । के ते चिण्णं परियरइ, अंतरं किं चरंति य ॥१०॥ ओगाहइ केवइयं, केवइयं च विकंपइ ।। मंडलाण य संठाणे, विक्खंभे अट्ठ पाहुडा ॥११॥ छ प्पंच य सत्तेव य, अट्ठ य तिण्णि य हवंति पडिवत्ती । पढमस्स पाहुडस्स उ, हवति एयाओ पडिवत्ती ॥१२॥

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