Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लुक्खफासपरिणयावि २०, जे संठाणओ चउरंससंठाणपरिणया ते वण्णओ कालवण्णपरिणतावि जाव सुकिल० गन्धओ सुब्भिगन्ध० दुब्भि० रसओ तित्तरस जाव महर० फासओ कक्खडफास० जाव लुक्खफासपरिणयावि २०, जे संठाओ आयतसंठाणपरिणता ते वण्णओ कालवण्णपरिणतावि जाव सुकिल्ल० गन्धओ सुब्भिगन्ध० दुब्भि० रसओ तित्तरस जाव महररसपरिणयाविफासओ कक्खडफास० जाव लुक्खफासपरिणतावि २०,१००सेत्तं रूविअजीवपन्नवणा सेत्तं अजीवपण्णवणा |४। से किं तं जीवपन्नवा?, २ दुविहा पं० २०-संसारसमावण्णजीवपन्नवणा य असंसारसमावण्णजीवपण्णवणा य् ५। से किं तं असंसारसमावण्णजीवपण्णवणा?, २ दुविहा पं० २०-अणन्तरसिद्धअसंसार० य परम्परसिद्धअसंसार० यो से कि तंअणन्तरसिद्धअसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा?, २ पण्णसविहा पं० २०-तित्थसिद्धा अतित्थसिद्धा तित्थगरसिद्धा अतित्थगरसिद्ध सयंबुद्धसिद्धा पत्तेयबुद्धसिद्धा बुद्धबोहियसिद्धा इत्थीलिङ्गसिद्धा पुरिसलिङ्गसिद्धा नपुंसकलिङ्गसिद्धा सलिङ्गसिद्धा अनलिङ्गसिद्धा || गिहिलिगसिद्धा एगसिद्धा अणेगसिद्धा, सेतं अणंतर०७से किं तं परम्परसिद्धअसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा?,२ अणेगविहा पं० ०-अपढमसमयसिद्धा० दुसमयसिद्धा० तिसमयसिद्धा० चउसमयसिद्धा० जाव सङ्खिजसमयसिद्धा० असङ्खिजसमयसिद्धा० अणन्तसमयसिद्धा०, सेत्तं प्ररम्परसिद्धासंसारसमावण्णजीवपण्णवणा, सेत्तं असंसारसमावण्णजीवपण्णवणा८ से किं तं संसारसमावण्णजीवपण्णवणा?, २ पञ्चविहा पं० ० एगेदियसंसारसमावण्ण जीव पण्णवणा बेइन्दिय० तेइन्दिय० चउरिन्दिय० ॥ श्री प्रज्ञापनोपांगम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 ... 345