Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Mool Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Devardhigani Kshamashaman
Publisher: Global Jain Agam Mission

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Page 28
________________ प्रश्नव्याकरण सुत्तं एसो सो परिग्गहस्स फलविवागो इहलोइओ परलोइओ अप्पसुहो बहुदुक्खो महब्भओ बहरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असाओ वाससहस्सेहिं मुच्चइ ण य अवेयइत्ता अत्थि हु मोक्खोत्ति । एवमाहंसु णायकुलणंदणो महप्पा जिणो उ वीरवरणामधिज्जो कहेसी य परिग्गहस्स फलविवागं। एसो सो परिग्गहो पंचमो उ णियमा णाणामणिकणगरयण-महरिह एवं जाव इमस्स मोक्खवरमुत्तिमग्गस्स फलिहभूओ । त्ति बेमि || || पंचमं अज्झयणं समत्तं ॥ ॥ पंचमं आसवदारं समत्तं || ॥ आसवदारं समत्तं ॥ परिसेसो : १ एएहिं पंचहिं आसवेहिं, रयमादिणित्तु अणुसमयं । चउविहगइपेरंतं, अणुपरियदृति संसारे ॥१॥ २ सव्वगइपक्खंदे, काहिंति अणंतए अकयपुण्णा । जे य ण सुणंति धम्मं, सोऊण य जे पमायंति ॥२॥ ३ अणुसिटुं वि बहुविहं, मिच्छदिट्ठिया जे णरा अहम्मा । बद्धणिकाइयकम्मा, सुणंति धम्म ण य करेंति ॥३॥ किं सक्का काउं जे, णेच्छड़ ओसहं मुहा पाउं । जिणवयणं गुणमहुरं, विरेयणं सव्वदुक्खाणं ॥४॥ पंचेव य उज्झिऊणं, पंचेव य रक्खिऊण भावेणं । कम्मरय-विप्पमुक्कं, सिद्धिवर-मणुत्तरं जंति ॥५॥ पढमो सुयखंधो समत्तो

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