Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ॥ श्रीआचाराङ्ग सूत्रं ॥ सुयं मे आउ ! तेणं (आमुसंतेणं आवसंतेण पाठांतरं ) भगवया एवमक्खायं इहमेगेसिं णो सण्णा भवइ । सूत्रं १ तंजहापुरत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, दाहिणाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, पच्चत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उत्तराओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उड्डाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अहो (प्रत्यंतरं अथे) दिसाओ वा आगओ अहमंसि, अण्णयरीओ वा दिसाओ अणुदिसाओ वा आगओ अहमंसि, एवमेगेसिं णो णायं भवति । सूत्रं २ । अत्थि मे आया उववाइए, के अहं आसी ? के वा इओ चुए इह पेच्चा भविस्सामि ? | सूत्रं 3 ) से जं पुण जाणेज्जा सहसंमइयाए परवागरणेणं अण्णेसिं अंतिए वा सोच्या, तंजहा पुरत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि जाव (प्र० एव दक्खिणा०) अण्णयरीओ दिसाओ अणुदिसाओ वा आगओ अहमंसि, एवमेगेसिं जं गायं भवति अस्थि मे आया उववाइए, जो इमाओ दिसाओ अणुदिसाओ वा अणुसंचरइ (अणुसंसरइ पा० ) सव्वाओ दिसाओ अणुदिसाओ, सोऽहं । सूत्रं ४ । से आयावादी लोयावादी कम्मावादी किरियावादी । सूत्रं ५ अकरिस्सं चाहं, कारवेसु चाहं, करओ आवि समणुन्ने भविस्सामि । ६ । एयावंति सघावंति लोगंमि कम्मसमारंभा परिजाणियव्वा ॥ श्रीआचाराङ्ग सूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित १ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only

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