Book Title: Adjust Everywhere
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 9
________________ एडजस्ट एवरीव्हेर यहाँ होता तो कल कहाँ से कहाँ निकल जाता । वह स्त्री होने से वापस घर आता है । वर्ना यह आता क्या ?। एडजस्ट एवरीव्हेर मानने पर सारी जिन्दगी भूखों मरेगा और एक दिन थालीमें 'पोईझन' (जहर) आ गिरेगा! साहजिकता से जो चलता है उसे चलने दो न ! यह तो कलयुग है । वातावरण ही कैसा है ?! इसलिए बीबी कहे कि, 'आप नालायक है ।' तो कहना, “बहुत अच्छे ।" (10) टेढोंके साथ एडजस्ट होइए ! प्रश्नकर्ता : व्यवहारमें रहना है इसलिए 'एडजस्टमेन्ट' एक पक्षीय तो नहीं होना चाहिए न ? दादाश्री : व्यवहार तो किस का नाम कि, 'सभी घरोंमें झगडे होते है । उसका व्यवहार सर्वोत्तम कहलाये । जिसके साथ प्रतिकूलता है वहीं शक्तियाँ प्राप्त करनी है । अनुकूल है वहाँ तो शक्ति है ही । प्रतिकूलता वह तो हमारी कमजोरी है प्रश्रकर्ता : नहीं आता । दादाश्री : वह काउन्टर वेईट है उसका । (9) टकराव आखिर अंतवाले ! प्रश्नकर्ता : दोपहर फिर सुबह हुए टकराव मूल जायें और शामको फिर नये होते है। दादाश्री : वह हमें मालूम है, टकराव किस ताक़तसे होते है । वह उलटा बोलती है, उसमें कौनसी ताकत काम कर रही है ? बौलनेक बाद फिर "एडजस्ट" होते है, यह सब ज्ञानसे समझ में आता है, फिर भी संसारमें "एडजस्ट" होना है । क्योंकि प्रत्येक चीज़ "एण्डवाली" (अंतवाली) होती है । और मानों वह लम्बें अरसे तक चलती रहे तो भी अप उसकी 'हेल्प' (मदद) नहीं है और सामनेवाले का भी नुकशान होता है । वर्ना प्रार्थनाका 'एडजस्टमेन्ट '! प्रश्नकर्ता : सामनेवाालेको समझानेके लिए मैंने अपना पुरुषार्थ किया, फिर वह समझे नासमझे वह उसका पुरुषार्थ ? दादाश्री : हम उसे समझायें उतनी ही जिम्मेदारी है अपनी । फिर वह नहीं समझे तो उसका इलाज नहीं है । फिर हम इतना कहें कि."दादा भगवान ! इसे सद्बुद्धि दीजिए।" एतना कहना चाहिए । कुछ उसे हवामें बटकता थोड़े रख सकते है । गप नहीं, यह "दादा" का "एडजस्टेमेन्ट" का विज्ञान है, अजायब "एडजस्टेमेन्ट" है यह । और जहाँ “एडजस्ट" नहीं हो ते वहाँ उसकी लहेज़त तो आता ही होगी आपको ? यह "डिसएडजस्टमेन्ट" (प्रतिकूलन) ही मूर्खता है । क्योंकि वह समझे कि मैं अपना स्वामीत्व नहीं छोडूंगा और मेरा ही चलन होना चाहिए । ऐसा मुजे सबके साथ क्यों अनुकूलता रहती है । जितने "एडजस्टमेन्टस" लोगे उतनी शक्तियाँ बढ़ेगी और अशक्तियों का क्षय होगा । सच्ची समझ तो तभी आयेगी जब दूसरी सभी उलटी समझको ताला लग जायेगा । नरम स्वभाववालोंके साथ तो हर कोई एडजस्ट होगा मगर टेढ़े. टाँग अड़ानेवाले - गर्म मिज़ाज लोगोंके साथ, सभीके साथ एडजस्ट होना आया तो काम बन गया । कितना ही नंगा-लुच्चा मनुष्य क्यों न हो पर उसके साथ "एडजस्ट" होना आ जाये, दिमाग़ चीज हमें 'फिट' (अनकल) नहीं होगा, हम उसे 'फिट' (अनुकूल) हो जायें तो दुनिया सुंदर है । और उसे 'फीट' (अनुकूल) करने गयेतो दुनिया टेढ़ी है । इसलिए 'एडजस्ट एवरी व्यर' हम उसे 'फीट' हो जाये तो कोई हर्ज नहीं है। डोन्ट सी लॉज, सेटल! "ज्ञानी" तो सामनेवाला टेढ़ा होने पर भी उसके साथ "एडजस्ट" हो जाये, 'ज्ञानी पुरुष' को देखकर उसका अनुसरण करे तो सभी तरहके

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