Book Title: Adinath Vinti Author(s): Rasila Kadia Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ श्री आदिनाथवीनती संपा. डो. रसीला कडीआ ला.द.भा.सं. विद्यामन्दिर, अमदावादना ज्ञानभंडारना त्रूटक पुस्तक परथी प्रस्तुत कृतिनी नकल करी छे. प्रतनी स्थिति श्रेष्ठ छे. प्रतमांना सुन्दर, नानकडां अक्षरो जोतांनी साथे गमी जाय. पण सुन्दर होय ते सुवाच्य होय ज एम बने नहि. आ कृतिने उकेलवामां सारो एवो समय गयो. श्री लक्ष्मणभाई तथा प्रो. रमणिकभाई शाहना मार्गदर्शननो लाभ मळ्यो होवाथी, अहीं ते बनेनो आभार मानी लउं छु. एक ज पृष्ठनी आ प्रतनी पाछळ प्राकृत भाषामां थोडा मोटा अक्षरोमां लखायेली एक अन्य कृति पण छे. बन्ने कृतिओ संपूर्ण छे. प्रतनी वच्चे बिनवपरायेल छिद्र छे. तेनी आसपास चोरस आकृति छे अने एमां अक्षरो पूरेल नथी. कृतिने अंते रचनासमय के लेखनसंवत के स्पष्टतया रचनाकारनामा अपाया नथी. अन्तिम पंक्तिमा आवतुं 'सुरेन्द्रसूरि' विशेषणमां श्लेष आपीने पोतानुं नाम जणाव्युं होय एम लागे छे. कृतिनी भाषा, लेखनशैली वगेरेने जोतां तेनो समय अनुमाने १५मा सैकानी आजुबाजुनी होय तेम जणाय छे. भाषामां प्राकृत-संस्कृत शब्दोनो वपराश, अपभ्रंशनी छांट उपरांत कोई चोक्कस स्थळनी बोलचालनी भाषा-लोकबोलीनो विनियोग थयो जणाय छे. श्री नरसिंह महेताना 'नीरखने गगनमां' पदमांनो 'ने' जेवो 'न'नो प्रयोग अहीं विशेष जोवा मळे छे. जुओ 'वारि न सील खोडि'. प्रथम पंक्तिमांनी 'हस्व ई' अलंकरण रीते छे. कृतिमां भावाभिव्यक्ति पण सुन्दरतया थई छे. भक्त हृदयनी आरजू, भगवान ऋषभदेव प्रत्येनी एकनिष्ठा अहीं सुपेरे प्रगट थई छे. मध्यकालीन गुजराती साहित्यना भक्तिपरंपराना पदोमां 'आदिनाथ वीनती' स्तवन ओ समयना उत्तम भक्तिकाव्योनी हरोळमां ऊभुं रही शके तेवू सक्षम छे, जेनी नोंध लेवी घटे. 'आदिनाथ विनति'ओ घणी लखाई छे ते मध्ये आ कृति तेनी लिपि, भाषा तथा अर्थ-ए सर्व दृष्टिले शोभती कृति छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6