Book Title: Adhyatmik Tripthaga Bhakti Karm Aur Gyan
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf

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Page 8
________________ तीनों का समन्वय : बचपन से यौवन और यौवन से वार्धक्य, जिस प्रकार जीवन का प्रारोहण क्रम है, उसी प्रकार साधना का भी, भक्तियोग से कर्मयोग और कर्मयोग से ज्ञानयोग के रूप में ऊर्ध्वमुखी प्रारोहण-क्रम है। एक दृष्टि से भक्तियोग में साधना की कोई विशिष्टता नहीं कर्मयोग के केन्द्र पर स्थित होकर हमें भक्ति एवं ज्ञान का सहारा लेकर चलना होता है। रूपक की भाषा में भक्ति हमारा हृदय है, ज्ञान हमारा मस्तिष्क है और शरीर, हाथ, पैर कर्म हैं। तीनों का सुन्दर समन्वय ही स्वस्थ जीवन का आधार है। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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