Book Title: Adhyatma ke Pariparshwa me
Author(s): Nizamuddin
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 10
________________ आठ के विषय में सारपूर्ण शब्दावली में यह प्रकट करने का प्रयास किया है कि जैन धर्म किसी संकीर्ण मत-पंथ की सीमा में बन्धा धर्म नहीं है। जैन धर्म मानव के अभ्युदय और निश्रेयस का मार्ग प्रशस्त करने वाला धर्म है। इस खण्ड में कुछ तुलनात्मक विचार भी मिलते हैं। जैन दर्शन और गीता, णमोकार मंत्र, सामायिक , रमजान, नमाज आदि लेखों में बड़ी तटस्थ चेतना से लेखक ने इन बिन्दुओं पर प्रकाश डाला है। पुस्तक का तीसरा खंड 'व्यक्ति : विचार' शीर्षक से संकलित किया गया है। इस खंड में महावीर और मोहम्मद के सामाजिक एकता, अपरिग्रह, अहिंसा, नारी जाति आदि विषयों पर साम्यमूलक दृष्टि से विचार किया गया है। यह ठीक है कि महावीर स्वामी और मोहम्मद साहब के काल में बारह सौ वर्षों का अन्तराल है । काल की दृष्टि को छोड़कर जीवन दर्शन में जो साम्यमूलक चेतना है उसी पर लेखक की दृष्टि रही है। 'तीर्थंकरों की परंपरा और महावीर' शीर्षक कुछ ऐतिहासिक सम्पन्न लेख है । तीर्थंकरों के विषय जैन धर्मावलम्बियों को तो ज्ञात हो भी किन्तु जैनेतर समाज में तीर्थंकरों की जानकारी नहीं है। प्रायः साधारण जनता महावीर स्वामी को ही जैन धर्म का प्रवर्तक-प्रचारक समझते हैं । इस लेख से ऐसी भ्रांतियों का निराकरण होगा। 'महावीर की लोकतांत्रिक दृष्टि' भी एक प्रासंगिक लेख है जो आधुनिक युग के लोकतंत्र के साथ महावीर स्वामी के वैचारिक चिन्तन को जोड़ने वाला है । महावीर की नारी विषयक दृष्टि पर प्रकाश डालने वाला लेख भी पठनीय है। इस पुस्तक के लेखक डॉ. निजामउद्दीन से मैं व्यक्तिगत रूप से विगत पच्चीस-तीस वर्षों से परिचित रहा हूं। उनके धार्मिक विश्वास बहुत ही स्वच्छ और निर्दोष हैं । किसी धर्म की अवमानना या किसी की पक्षपात पूर्ण प्रशंसा वे नहीं करते । सर्व धर्म समभाव का जय घोष करने वालों से वे कहीं अधिक उदार, सहिष्णु, चिन्तक और मनस्वी हैं। उनके छोटे-छोटे लेख भी उनके निष्कपट भावों को सामने लाने में समर्थ हैं। मैं इस पुस्तक की रचना को प्रासंगिक और उपयोगी मानता हूं। मैं उन्हें ऐसे स्वस्थ और सुन्दर लेखन के लिए साधुवाद देता हूं। आशा करता हूं कि उनका पुरुषार्थ इसी दिशा में . आगे बढ़ता रहेगा। डॉ. विजयेन्द्र स्नातक भूतपूर्व अध्यक्ष दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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