Book Title: Adhunik Yug aur Dharm Author(s): Vasishtha Narayn Sinha Publisher: Z_Jaganmohanlal_Pandit_Sadhuwad_Granth_012026.pdf View full book textPage 5
________________ २] आधुनिक युग और धर्म ६५ समर्थकों में दो प्रकार के विचारक देखे जाते हैं। कुछ समाजवादी विचारकों की यह मान्यता है कि समाजवाद को हिंसात्मक तरीके से ही लाया जा सकता है। कुछ दूसरे प्रकार के विचारक यह मानते हैं कि हिंसात्मक ढंग से लाया हुआ समाजवाद उतना अच्छा नहीं होता जितना कि अहिंसात्मक ढंग से लाया हुआ समाजवाद होता है । अतः अहिंसात्मक पद्धति से ही समाजवाद की स्थापना होनी चाहिए। जर्मनी के एक विचारक न्यूख्नर ने कहा था"झोपड़ियों में सुख-शान्ति हो और राज-प्रासादों का विकास हो ।"५ स्वयं कार्ल मार्क्स ने भी हिंसात्मक पद्धति का ही समर्थन किया है। धर्म को तो उन्होंने जहर कहा है। जिस प्रकार जहर प्राणघातक होता है, उसी प्रकार धर्म भी समाज के लिए विनाशक है। समाज के एक पक्ष का नाश करके दूसरे पक्ष का विकास करना निश्चित ही सामाजिकता को कमजोर करने की बात है। समाजवाद तो समानता लाना चाहता है। यदि किसी एक पक्ष को नष्ट कर दिया , तो समाजवाद की मान्यता ही समाप्त हो जाती है। काले माक्स ने यदि धर्म को जहर कहा है, तो इससे ऐसा समझना चाहिए कि संभवतः उसकी दृष्टि धामिक रूढ़ियों की ओर थी, जिनसे धर्म या समाज का विकास नहीं बल्कि ह्रास होता है। क्योंकि धर्म तो एक व्यवस्था है, एक पद्धति है जिससे अलग नहीं हुआ जा सकता। भारतीय परम्परा में सामाजिक व्यवस्था का आधार तो धर्म ही है। ऋग्वेद में समाज को एक शरीर के रूप में प्रस्तुत किया गया है जिसके चार अंग माने गए हैं - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र । ये वर्ण एक दूसरे के पूरक समझे गए हैं और इनके सहयोग से समाज की सम्पूर्णता विकसित होती है। भारतीय परम्परा में कही भी ऐसा है कि एक का नाश करके दूसरे का विकास हो । आज के भारतीय समाजवादी-आचार्य नरेन्द्र देव डॉ. राममनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण आदि अहिंसवादी समाजवाद के समर्थक हैं। जहाँ अहिंसा है, वहाँ धर्म है। प्रसिद्ध उक्ति है-'अहिंसा परमोधर्मः' अर्थात् अहिंसा ही सर्वोत्कृष्ट धर्म है। धर्म और समाज के महत्वों को देखते हुए पं. दीनदयाल उपाध्याय ने कहा है : "हमें धर्मराज्य , लोकतन्त्र, सामाजिक समानता और आर्थिक विकेन्द्रीकरण को अपना लक्ष्य बनाना होगा। .. इन सबका सम्मिलित निष्कर्ष ही हमें एक ऐसा जीवन-दर्शन उपलब्ध करा सकेगा जो आज के समस्त झंझावातों से हमें सुरक्षा प्रदान कर सके । आप इसे किसी भी नाम से पुकारिये-हिन्दुत्ववाद, मानवतावाद अथवा अन्य कोई नयावाद, किन्तु यही एकमेव मार्ग भारत की आत्मा के अनुरूप होगा और जनता में नवीन उत्साह संचारित कर सकेगा।" गांधीवाद और धर्म गांधीजी सत्य और अहिंसा के पुजारी थे। उनके अनुसार सत्य ईश्वर है या ईश्वर सत्य है और अहिंसा के मार्ग पर चलकर ही ईश्वर तक पहुँचा जा सजता है। गांधीजी पर जैन साधक श्रीमद्राजचन्द्र, पाश्चात्य विचारक थोरियो ( Thoreau ), रस्किन ( Ruskin ) तथा टॉल्सटॉय ( Tolstoy ) के प्रभाव थे। धर्म तो उनकी चिन्तनपद्धति का आधार स्तम्भ है। किन्तु धर्म का प्रयोग उन्होंने कभी भी किसी संकुचित अर्थ में नहीं किया। उन्होंने कहा है"धर्म से मेरा तात्पर्य किसो औपचारिक या व्यावहारिक धर्म से नहीं है, वरम् उस धर्म से है जो सभी धर्मों का मूल है और जो हमें स्रष्टा का साक्षत्कार कराता है" । उनका विश्वास धार्मिक सहिष्णुता तथा धर्मनिरपेक्षता में था। गांधीजी ५. वहीं पृ०२७८ । ६. पं. दीनदयाल उपाध्याय, राष्ट्र चिंतन पृ०७४ । समाजदर्शन की भूमिका-पृ० २८४ । ७. वहीं पृ० ३६७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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