Book Title: Adhunik Jivan me Shramanachar ki Mahatta Author(s): Jivraj Jain Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf View full book textPage 2
________________ 10 जनवरी 2011 श्रमणाचार के नियमों में बदलाव करना, उचित है? भगवान महावीर के बाद करीब 2300 वर्षों तक हमारे सामाजिक परिवेश और परिस्थितियों में विशेष बदलाव नहीं हुआ था। मात्र शायद इतना ही हुआ कि मनुष्य की शारीरिक और मानसिक सहनशक्ति में कुछ कमी आई हो। उसके ज्ञान-विकास की क्षमता में कुछ कमी आई हो। यह सब व्यक्तिगत स्तर पर हुआ है। अतः श्रमणों की विशुद्ध साधना के लिए बनाई गई नियमावली में तथा उसके आचार की पालना में कोई परिवर्तन करने की आवश्यकता नहीं हुई । यह जरूर सुनने में आता है कि हर युग में कुछ साधक उन नियमों का कठोरता से पालन करने में पूर्णतः सफल नहीं हो पाते थे। अतः शिथिलाचार वाले साधु यदा-कदा मिल जाते थे। उनकी सामूहिक रूप से ज्यादा प्रतिष्ठा नहीं होती थी। लेकिन वे ही साधु जब संख्या में अधिक होकर आपस में जुड़ते, तो नियमावली को खतरा पैदा हो सकता था, लेकिन शायद ऐसा हुआ नहीं। हाँ, अर्वाचीन जमाने में यह जरूर देखने को मिलता है, कि कभी-कभी सामूहिक रूप से साधुओं ने अपनी पालना में ढिलाई को स्वीकार करके, या उसको शास्त्र सम्मत बता कर, अपनी साधना को दोष रहित नहीं रहने दिया। लेकिन समय-समय पर इन दोषों पर से अज्ञान का पर्दा हटाने वाले ज्ञानी और वीर श्रावक तथा साधक भी हुए हैं । औद्योगिक क्रांति जिनवाणी पिछले करीब 200 वर्षों से हमारे सामाजिक परिवेश को विज्ञान व प्रौद्योगिकी ने अकल्पनीय रूप से बदल डाला है । औद्योगिक क्रांति ने हमारी व्यक्तिगत जीवन शैली और सामाजिक ढाँचे को आमूलचूल रूप से बदल दिया है। उस विकास के अनुरूप सामाजिक व पारिवारिक व्यवस्थाएँ भी बदल गई हैं। व्यक्ति - केन्द्रित छोटे परिवारों ने सम्मिलित परिवारों की जगह ले ली है। भौतिक जीवन की सुविधाओं और भोगवाद की प्रवृत्तियों में विज्ञान ने महत्त्वपूर्ण योगदान देकर उनको बदल दिया है। Jain Educationa International 329 यातायात - भौगोलिक दूरियाँ अब इतनी छोटी लगने लग गई हैं कि पूरा विश्व एक शहर के माफिक बन गया है। कुछ ही घंटों में बिना पैदल चले, महासमुद्रों को लांघकर अन्य महाद्वीपों पर लोग आ जा रहे हैं। दूरियों पर इस विजय के कारण, इस जेट युग में समय की बचत हुई है। इस कारण भौतिक समृद्धि में 'समय' का महत्त्व बढ़ गया है। लम्बे फासले तय करने के लिए अब पैदल चलने की या जानवरों को दौड़ाने की आवश्यकता समाप्त हो गई है। यातायात के साधनों के इस बेतहासा विकास के साथ-साथ विनिर्माण, उत्पादन और निर्माण क्षेत्रों में भी आशातीत विकास हुआ है। प्राचीन युग में जहाँ मनुष्य अपने काम में जानवरों की मदद लेकर अपने श्रम की बचत करता था, तो उन जानवरों के उपयोग के कुछ नियम बनाये गये थे । जिससे मनुष्य लोभवश, उन मूक जानवरों को अधिक कष्ट न दे। अर्वाचीन जमाने में उन जानवरों का स्थान नई मशीनों ने ले लिया है। ये मानव निर्मित मशीनें दैत्यों की तरह बलवान हो सकती हैं, तथा एक-एक मशीन हजारों जानवरों का काम कर सकती है। इस प्रकार जानवरों को भी काम से छुट्टी मिल गई, यानी प्राणातिपात दोष का निमित्त ही कम हो गया या हट गया है । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7