Book Title: Adhunik Hindi Mahakavyo me Karm evam Punarjanma ki Avdharna
Author(s): Devdatta Sharma
Publisher: Z_Jinvani_Karmsiddhant_Visheshank_003842.pdf

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________________ २३२ ] [ कर्म सिद्धान्त. "उसको वैसी गति मिलती है, जो कर्म बान्धता जैसा है । होता है जैसा बीज वपन, फल भी तो मिलता वैसा है।" (पृ० ४६६) जीव के शुभाशुभ कर्म ही जन्म जन्मान्तर तक उसके साथ रहते हैं। इस परिसन्दर्भ में डॉ० रत्नचन्द्र शर्मा अपने महाकाव्य 'निषाद राज' में कहते हैं "पाप पुण्य दोनों को कहते, मुनिवर जन्म-जन्म का साथी।" (पृ० २०) . इस संदर्भ में 'शिवचरित' महाकाव्यकार निरंजनसिंह योगमणि की स्पष्टोक्ति तो और भी ध्यातव्य है "जन्म-जन्म का कारण कर्म, शुभाशुभ कर्मों का फल देव । होते ये निश्चय ही प्राप्त, ब्रह्म शक्ति से देय सदैव ।।" (पृ० ६२) पुण्य कर्मों का फल सुख प्रदायक होता है वहाँ पाप कर्मों का फल अशुभ एवं दु ख प्रदायक होता है। इस तथ्य को पंडित अनूप शर्मा अपने महाकाव्य 'सिद्धार्थ' में निरूपित करते हुए कहते हैं "मनुष्य की जो गति है शुभाशुभ,. विपाक है सो सब पूर्व कर्म का।" (पृ० २३५) त्रिवेदी रामानन्द शास्त्री अपने महाकाव्य 'मृगदाव' में उक्त अभिमत की ही संपुष्टि करते हुए कहते हैं "पर अब पछताने से न है लाभ कोई, सब निज कृतकर्मों को यहाँ भोगते हैं। ___(पृ० २०१) महाकवि पोद्दार रामावतार 'अरुण' का तो स्पष्ट अभिमत है कि वर्तमान जीवन पूर्व जन्म के कर्मों का ही प्रतिफलन है। वे अपने महाकाव्य 'महाभारती' में कहते हैं "मनुज का वर्तमान अस्तित्व, पूर्व का प्रतिबिम्बित परिणाम ।" (पृ० १११) किसी भी कर्म का फल जीव को वर्तमान जीवन में नहीं तो दूसरे जन्म में अवश्य मिलता है । ये फल जीव को जन्म-जन्मान्तर तब तक मिलते रहते हैं जब तक कि वह अपनी आत्मा को कर्म बन्धनों से मुक्त न करले । पूर्व-पूर्व जन्मों में किये गये कर्मों के फलों को भोगने के लिए ही बराबर इस संसार में जीव का आना होता है । जीव अपने कर्मों का फल भोगने के लिए निरन्तर जन्म लेता रहता Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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