Book Title: Adhunik Bharatiya Bhashao Ka Vikas Aur Prakrit Tatha Apbhramsa Author(s): Devendra Jain Publisher: Z_Jain_Vidya_evam_Prakrit_014026_HR.pdf View full book textPage 2
________________ ३०२ जैनविद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन समानताओं और असमानताओं के तुलनात्मक अध्ययन द्वारा भाषा विकास की सही प्रक्रिया का पता लगाया जा सकता है। किसी भी वर्तमान भारतीय आर्यभाषा रूपी गंगा का वैज्ञानिक अध्ययन तभी सम्भव है जब उसकी उल्टी चढाई की जाए? इससे न केवल विकास की सही प्रक्रिया स्पष्ट होगी, बल्कि भाषिक प्रयोगों की एकरूपता को हम प्रमाणिक आधार दे सकेंगे। अनेक भाषा-वैज्ञानिक अध्ययनों के होते हुए भी यदि भारत के भाषिक विकास की खोई हुई कड़ियों को अभी तक नहीं जोड़ा जा सका तो इसका एक मात्र कारण यह है कि जहाँ संस्कृत और प्राकृत के विद्वान् आधुनिक भाषाओं की रचना प्रक्रिया से परिचित नहीं है, वहीं आधुनिक भाषाओं के विकास का अध्ययन करने वाले संस्कृत प्राकृत की भाषिक प्रवृत्तियों से परिचित नहीं हैं । आगे कुछ शब्दों की व्युत्पत्तियाँ दी जा रही हैं जो हिन्दी और उसकी बोलियों में ही प्रयुक्त नहीं हैं, बल्कि दूसरी-दूसरी प्रादेशिक भाषाओं में ज्यों के त्यों या थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ प्रयुक्त हैं। कुछ शब्द मध्यकालीन काव्य भाषाओं, ब्रज, अवधी में प्रयुक्त थे, परन्तु हिन्दी में उनका प्रयोग अब नहीं होता। १ जुहार-कुछ व्युत्पत्ति शास्त्री इसे देशज मानते हैं, कुछ ने संस्कृत जुहराण से इसका विकास माना है। जुहार का मूल संस्कृत 'जयकार' है। स्वयंभू के 'पउमचरिउ' में इसका पूर्ववर्ती रूप सुरक्षित है-'सिरे करयल करेवि जोक्कारिउ' सिर पर करतल कर जयकार किया । जयकार>ज अ कार>ज उ कार>जोक्कार >जोकार> जो आ र>जोहार > जुहार । पंजाबी में 'जुकार' प्रयुक्त है। २. जौहर-हिन्दी शब्द सागर ने इसकी व्युत्पत्ति जीवहर से मानी है। जौहर मध्ययुग में राजपूत रमणियों के सामूहिक आत्मदाह की प्रथा थी। सती प्रथा और जौहर में अंतर है। जौहर की व्युत्पत्ति है-जतुगृह । लाक्षागृह ! ज उहर > जोहर > जौहर 'जतुगृह' ज्वलनशील रासायनिक घर को कहते हैं जिनका वर्णन महाभारत में है । स्वयंभू के 'रिट्ठणेमिचरिउ' में इसका वर्णन इस प्रकार है __ 'सण-सज्ज रस वासा-धिय संगहु लक्खाकय वणटु-परिग्गहु बरिस वारि हुयवहु-भायणु" १०।१८ जौहर करना-महाबरा है, जिसका लाक्षणिक अर्थ है-- जतुगृह में प्रवेश कर सामूहिक आत्मदाह कर लेना। ३. दूल्हा-दुर्लभ >दुल्लह > दूल्हा । मध्ययुग में, और अब भी 'वर' दुर्लभ माना गया है। भारत की पितृसत्ताक समाज रचना में ऐसा होना स्वाभाविक है। एक अपभ्रश दोहे का अवतरण है परिसंवाद-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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