Book Title: Acharya pad ki Mahatta
Author(s): Hastimal Gollecha, Sharmila Khimvesara
Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf

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Page 7
________________ || 10 जनवरी 2011 || जिनवाणी 39 ___एवायरियं पि हु हीलयंतो णियच्छई जाइ पहं खु मंदो / / (गाथा-4) अर्थात् आचार्य का अनादर करने वाला मंदमति एकेन्द्रिय आदि विविध जातियों, योनियों में जन्म मरण प्राप्त करता है। आयरियपाया पुण अप्पसण्णा अबोहि-आसायण णस्थि मुक्खो।। (गाथा 5,10) अर्थात् आचार्यचरण की अप्रसन्नता अबोधि जनक होती है। अतः आचार्य की अविनय आसातना या अवहेलना करने वालों को सम्यक् दर्शन आदि आत्मगुणों की प्राप्ति नहीं होती, उसे मोक्ष प्राप्त नहीं होता। न या वि मुक्खो गुरु हीलणाए / / (गाथा-7) अतः गुरु आशातना को हानिप्रद जानकर उन दोषों से विरत रहने वाला साधु गुरु-इच्छा के अनुरूप चलने में एवं श्रुत-चारित्र की आराधना में ऊर्ध्वगामी बनकर संसार में पूजनीय होता है। भगवतीसूत्र शतक 20, उद्देशक 8 के अनुसार भगवान महावीर का यह शासन पंचम आरे के चरम दिवस तक इन्हीं आचार्यों की धर्म प्रभावना से जयवंत रहेगा। पंचम आरे के अंत में भी एक साधु, एक साध्वी, एक श्रावक, एक श्राविका रहेंगे जो एकभवतारी होंगे। सम्यक्त्व प्रदान करने वाले उन सत्पुरुषों के उपकार से यह जीव अनेक जन्मों तक करोड़ों प्रकार के उपकार करके भी उऋण नहीं हो सकता। जगत् के उन समस्त ज्ञानवान्-क्रियावान आचार्य भगवन्तों के पावन सरोजों में हृदय की असीम आस्था के साथ सादर समर्पित। - 'अंकुर' एम-51-ए, आना सागर लिंक रोड, अजमेर-305001 (राज.) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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