Book Title: Acharya pad ki Mahatta
Author(s): Hastimal Gollecha, Sharmila Khimvesara
Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf

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Page 1
________________ 10 जनवरी 2011 जिनवाणी 363 आचार्यपद की महत्ता श्री हस्तीमल गोलेच्छा एवं श्रीमती शर्मिला खींवसरा तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्य होते हैं। वे 36 गुणों के धारक तथा आठ सम्पदाओं से युक्त होते हैं। वे अगीतार्थ साधुओं के कवच होने के साथ शिष्य को चार प्रकार का विनय प्रदान करते हैं। आगमों में भी उनकी महिमा गायी गई है। आचार्य की अविनय आशातना करने वाला शिष्य मार्गच्युत हो जाता है तथा दुष्परिणाम भोगता है। आलेख आगमिक प्रमाणों से उपेत है। -सम्पादक जह दीवा दीवस्यं पईप्पट, सो य दीप्पट दीवो। दीवसमा आयरिया अप्पं च परं च दीवंति।। नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु ने आचार्यों को उस दीपक की उपमा दी है, जो स्वयं प्रकाशित होते हुए दूसरों को भी प्रकाशित करता है और जिससे अन्य सैकड़ों-सहस्रों दीप प्रदीप्त किए जा सकते हैं। सुहम्म अग्गिवेसाणं, जंबू नामं च कासवं । पभवं कच्चायणं वंदे, वच्छं सिज्ज भवं तहा।। __ (नन्दी सूत्र, गाथा-25 युग प्रधान पट्टावली) आर्य सुधर्मा से लेकर आज पर्यन्त दीर्घावधि में हुई क्रमबद्ध आचार्य-परम्परा में हुए त्यागी तपस्वी आचार्यों ने और उनसे ही संयम की सीख लेकर सहस्रों प्रभावक श्रमण-श्रमणियों ने प्राणिमात्र को अभय देने वाले पंच महाव्रत रूप धर्म को अध्ययन, अध्यापन, प्रवचन, प्रख्यापन एवं गहन चिन्तन-मनन के स्नेह से सिंचित कर अक्षुण्ण रखा है और अनगिनत लोगों को सम्यक्त्व प्रदान कर प्राणिमात्र पर अनुकम्पा की है। उसी से आज तक भव्यजनों के हितार्थ कहा गया कल्याणकारी धर्म पंचम आरे में भी पढ़ा और आचरित किया जा रहा है। सर्वज्ञ प्रभु महावीर ने तीर्थ प्रवर्तन काल में ही गणधरों को पद प्रदान करते समय आर्य सुधर्मा को दीर्घजीवी समझकर धुरी के स्थान पर रख कर गण की अनुज्ञा दी, अपना उत्तराधिकारी बनाया। ‘पछी श्री वीर पाटे पांचवा गणधर श्री सुधर्मा स्वामी पहले पाटे थया।' -वीर वंशावलि/तपागच्छ वृद्ध पट्टावली-मुनि जिन विजय जी 'भगवान् महावीर ने पहेली पाट पर श्री सुधर्म स्वामी निराज्या।' -प्रभु वीर पट्टावली- मुनि मणिलाल जी- जैन धर्म का मौलिक इतिहास में उल्लेख। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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