Book Title: Acharya Hastimalji ki Kavya Sadhna
Author(s): Narendra Bhanavat
Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf

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Page 5
________________ • प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. • ८५ १. श्री कुशल पूज्य का कीजे जाप, मिट जावे सब शोक संताप । २. जय बोलो रत्न मुनिश्वर की, धन कुशल वंश के पट्टधर की। ३. सुमरो शोभाचन्द मुनीन्द्र, भो जिन धर्म दीपाने वाले। २. उपदेश काव्य-जैन संतों का मुख्य लक्ष्य आत्म-कल्याण के साथसाथ लोक-कल्याण की प्रेरणा देना है। व्यक्ति का जीवन शुद्ध, सात्विक, प्रामाणिक और नैतिक बने तथा समाज में समता, भाईचारा, शांति एवं परस्पर सहयोग-सहिष्णुता की वृद्धि हो, इस उद्देश्य से जैन संत ग्रामानुग्राम पद-विहार करते हुए लोक हितार्थ उपदेश/प्रवचन देते हैं। उनका उपदेश शास्त्रीय ज्ञान एवं लोक-अनुभव से संपृक्त रहता है। अपने उपदेश को जनता के हृदय तक संप्रेषित करने के लिए वे उसे सहज-सरल और सरस बनाकर प्रस्तुत करते हैं । यही नहीं शास्त्रीय ज्ञान को भावप्रवण और हृदय-संवेद्य बनाने के लिए वे काव्य और संगीत का सहारा लेते हैं। इसी उद्देश्य से जैन संतकाव्य की सृष्टि अविच्छिन्न रूप से आज तक होती चली आ रही है। प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. के उपदेशात्मक काव्य की भी यही भावभूमि है। आचार्य श्री के उपदेश-काव्य के तीन पक्ष हैं—१. प्रात्म-बोध, २. समाजबोध और ३. पर्व-बोध। ये बोधत्रय आध्यात्मिकता से जुड़े हए हैं। प्राचार्य श्री सुषुप्त प्रात्म-शक्ति को जागृत करने के लिए सतत साधना और साहित्य सृजनरत रहे । मानव-जीवन की दुर्लभता को दृष्टि में रखकर आपने बार-बार आत्म-स्वरूप को समझने और पहचानने की जनमानस को प्रेरणा दी है समझो चेतन जीव अपना रूप, यो अवसर मत हारो, ज्ञान दरसमय रूप तिहारो, अस्थि मांसमय देह न थारो। दूर करो अज्ञान, होवे घट उजियारो ।। आचार्य श्री ने चेतना के ऊर्वीकरण पर बल देते हुए कहा है कि शरीर और आत्मा भिन्न हैं। शरीर के विभिन्न अंग और आँख, नाक, कान, जीभ आदि दिखाई देने वाली इन्द्रियाँ क्षणिक हैं, नश्वर हैं । पर इन्हें संचालित करने वाला जो शक्ति तत्त्व है, वह अजर-अमर है हाथ, पैर नहीं, सिर भी न तुम हो, गर्दन, भुजा, उदर नहीं तुम हो । नेत्रादिक इन्द्रिय नहीं तुम हो, पर सबके संचालक तुम हो । पृथ्वी, जल, अग्नि, नहीं तुम हो, गगन, अनिल में भी नहीं तुम हो । मन, वाणी, बुद्धि नहीं तुम हो, पर सबके संयोजक तुम हो। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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