Book Title: Acharya Hastimalji ki Kavya Sadhna
Author(s): Narendra Bhanavat
Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf

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Page 4
________________ • ८४ "गुरु कारीगर के सम जगमें, वचन जो खावेला । पत्थर से प्रतिमा सम वो नर, महिमा पावेला | घणो सुख पावेला, जो गुरु- वचनों पर, प्रीत बढ़ावेला || " कवि की दृष्टि में सच्चा गुरु वह है, जिसने जगत् से नाता तोड़कर परमात्मा से शुभ ध्यान लगा लिया है, जो क्रोध, मान, माया, लोभादि कषायों का त्यागी है, जो क्षमा-रस से ओतप्रोत है । ऐसे गुरु की सेवा करना ही अपने कर्म - बंधनों को काटना है। गुरु के समान और कोई उपकारी नहीं और कोई आधार नहीं 1 • "उपकारी सद्गुरु दूजा, नहीं कोई संसार | मोह भंवर में पड़े हुए को, यही बड़ा आधार ।" "श्री गुरुवर महाराज हमें यह वर दो । गुरु से कवि भक्त भगवान् सा सम्बन्ध जोड़ता है। कबीर गुरु को गोविन्द से भी बड़ा बताया है, क्योंकि गुरु ही वह माध्यम है, जिससे गोविन्द की पहचान होती है । गुरु से विनय करता हुआ कवि अपने लिए आत्म-शांति और आत्मबल की मांग करता है - व्यक्तित्व एवं कृतित्व मैं हूँ नाथ भव दुःख से पूरा दुःखिया, प्रभु करुणा सागर तू तारक का मुखिया । कर महर नजर अब दीननाथ तव कर दो || Jain Educationa International रग-रग में मेरे एक शांति रस भर दो ।। " काम क्रोध मद मोह शत्रु हैं घेरे, लूटत ज्ञानादिक संपद को मुझ डेरे । अब तुम बिन पालक कौन हमें बल दो || स्तुति काव्य में जहाँ कवि ने सत्गुरु के सामान्य गुणों की स्तवना की है, वहीं अपनी परम्परा में जो पूर्वाचार्य हुए हैं, उनके प्रति श्रद्धाभक्ति व विनयभाव प्रकट किया है । श्राचार्य भूधरजी, आचार्य कुशलोजी, प्राचार्य रतनचन्द्रजी और आचार्य शोभाचन्द्रजी के महनीय, वंदनीय व्यक्तित्व का गुणानुवाद करते हुए जहाँ एक ओर कवि ने उनके चरित्र की विशेषताओं एवं प्रेरक घटनाओं का उल्लेख किया है, वहीं यह कामना की है कि उनके गुण अपने जीवन में चरितार्थ हों । गुरु के जप / नामस्मरण को भी कवि ने महत्त्व दिया है For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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