Book Title: Acharya Hastimalji ke Sahitya me Sadhna ka Swarup Author(s): Keshrikishor Nalvaya Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf View full book textPage 3
________________ * व्यक्तित्व एवं कृतित्व 6. मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण करो। 7. आगार धर्म को स्वीकार कर अणगार धर्म की तरफ बढ़ने का प्रयास करो। 8. बंध का कारण राग और बंध-मोचन का कारण विराग है। पृ० 141 पर प्राचार्य प्रवर फरमाते हैं-साधना तप प्रधान है। तपस्या में चिन्तन के लिये स्वाध्याय आवश्यक है। तप राग घटाने की क्रिया है। तप के साथ विवेक आवश्यक है। आध्यात्मिक साधना में दृढ़ संकल्पी होना, मत्सर भावना का त्याग करना और सम्यक्ष्टि रखना साधक के लिये परम आवश्यक है। -528/7, नेहरू नगर, इन्दौर नश्वर काया थारी फूल सी देह पलक में, पलटे क्या मगरूरी राखे रे / आतम ज्ञान अमीरस तजने, जहर जड़ी किम चाखे रे / / 1 / / काल बली थारे लारे पड़ियो, ज्यों पीसे त्यों फाके रे / जरा मंजारी छल कर बैठी, ज्यों मूसा पर ताके रे / / 2 / / सिर पर पाग लगा खुशबोई, तेवड़ा छोगा नाखे रे। . निरखे नार पार की नेणे, वचन विषय किम भाखे रे / / 3 // इन्द्र धनुष ज्यों पलक में पलटे, देह खेह सम दाखे रे। इण सूं मोह करे सोई मूरख, इम कहे अागम साखे रे / / 4 / / 'रतनचन्द' जग इवे वर्था, फांदिए कर्म विपाके रे / शिव सुख ज्ञान दियो मोय सतगुरु, तिण सुख री अभिलाखे रे / / 5 // -प्राचार्य श्री रतनचन्दजी म. सा. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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