Book Title: Acharya Hastimalji aur Unke Pravachan Author(s): Mahendra Raijada Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf View full book textPage 3
________________ • १३४ • व्यक्तित्व एवं कृतित्व प्राचार्य श्री के इन प्रवचनों में प्रारम्भिक साधना से लेकर चरम लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु साधना का उचित मार्ग दर्शाया गया है। साथ ही प्रवृत्ति मार्ग का निषेध न करते हुए एक आदर्श समाज के निर्माण हेतु मार्ग बतलाया गया है । व्यक्ति गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए अपने जीवन को धर्म की सुदृढ़ नींव पर आधारित कर परमार्थ के मार्ग पर चल सकता है । सुविज्ञ पाठक इन प्रवचनों का पारायण कर अपने जीवन को उन्नत बना सकता है । अपने एक प्रवचन में प्राचार्य श्री ने 'परिग्रह' के प्रकारों का सुन्दर विवेचन करते हुए परिग्रह की प्रवृत्ति को समाज-विरोधी एवं समस्त अवगुणों की जड़ बतलाया है जो व्यक्ति को विनाश की ओर ले जाती है। __इन प्रवचनों में साधारण गृहस्थ के लिए आदर्श गृहस्थ बनने के उपायों पर भी प्रकाश डाला गया है । प्रारम्भिक साधना से लेकर चरम लक्ष्य तक ले जाने वाली साधना का निरूपण किया गया है । धर्मानुसार प्राचरण करते हुए व्यक्ति आदर्श समाज के निर्माण में अपना अमूल्य सहयोग प्रदान कर सकता है। पर्युषण पर्व के दिनों में आत्म-निरीक्षण कर अपनी कमियों को दूर करने हेतु आत्म-चिन्तन पर विशेष बल देने की आवश्यकता हैयही प्राचार्य श्री का मन्तव्य है । श्रद्धेय आचार्य प्रवर श्री हस्तीमलजी आधुनिक जैन सन्त-परम्परा के पुरोधा हैं । आत्म-कल्याण के साथ-साथ लोक-कल्याण के मार्ग को प्रशस्त करना आपके प्रवचनों का मूल लक्ष्य रहा है । सन् १९७६ का चातुर्मास प्राचार्य श्री ने महाराष्ट्र के जलगांव में किया था। इस चातुर्मास के दौरान आपने अपने प्रवचनों में मुख्य रूप से संस्कार-निर्माण, व्यवहार-शुद्धि और स्वाध्याय-शीलता पर विशेष बल दिया। इन प्रवचनों में से प्रमुख २६ प्रवचनों का चयन कर 'गजेन्द्र व्याख्यान माला'- भाग ६ में संकलन किया गया है । इस पुस्तक का कुशल सम्पादन डॉ० हरिराम आचार्य ने किया है। डॉ० हरिराम ने अपने सम्पादकीय में लिखा है- 'यह तो आचारनिष्ठ जीवन, लोक मंगल भावना और तपःपूत चिन्तन का पावन उद्गार हैइसलिये 'प्रवचन' है, जो श्रद्धालु जन-जन के मार्ग-दर्शन के लिए प्रस्फुटित हुअा है । जिन्होंने प्राचार्य प्रबर के श्रीमुख से सुना है, वे धन्य हैं। जिन्हें यह अवसर नहीं मिला, वे भी इन प्रवचन-मुक्ताओं का पारायण कर लाभ उठा सकें-इसीलिए यह प्रकाशन है।' निःसंदेह डॉ० प्राचार्य का यह कथन सर्वथा उचित है । आचार्य श्री हस्तीमलजी ने अपने इन प्रवचनों में मानव जीवन सम्बन्धी महत्वपूर्ण तत्त्वों एवं अनेक विषयों का बोधगम्य भाषा में सरल विवेचन किया है। धर्म-साधना के लिए शारीरिक निरोगता तथा पारिवारिक अनुकूलता Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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