Book Title: Acharya Hastimalji aur Unke Pravachan Author(s): Mahendra Raijada Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf View full book textPage 1
________________ प्राचार्य श्री और उनके प्रवचन 0 प्रो० महेन्द्र रायजादा आचार्य प्रवर श्री हस्तीमलजी महाराज जैनाचार्य होने के साथ ही भारतीय श्रमण परम्परा के आध्यात्मिक-सन्त, ज्ञानी-साधक, बहुज्ञ-विद्वान् तथा प्रतिभा सम्पन्न मूर्धन्य मनीषी थे। उनका सम्पूर्ण जीवन तप, त्याग एवं संयम के सौरभ से आवेष्टित रहा । उन्होंने अपनी ज्ञान-ज्योति से हजारों-लाखों आत्माओं के जीवन को आलोकित किया । आधुनिक श्रमण-सन्तों में वे शीर्षस्थ एवं शिरोमणि थे । जितना आदर एवं सम्मान जैन जगत् में उन्होंने अर्जित किया अन्य कोई भी श्रमण नहीं कर सका। प्राचार्य प्रवर श्री हस्तीमलजी ने भारत के विविध प्रान्तों में यायावरी जीवन व्यतीत करते हुए अनेक स्थानों पर चातुर्मासों के दौरान अपने प्रेरणादायी प्रवचन किये । सम्यक् ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर ने आचार्य श्री के उन प्रवचनों का 'गजेन्द्र व्याख्यान माला' के रूप में प्रकाशन किया है । आचार्य प्रवर श्री हस्तीमलजी के उन प्रवचनों की कतिपय पुस्तकों को पढ़ने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है। 'प्रार्थना-प्रवचन' शीर्षक पुस्तक में प्राचार्य श्री के प्रार्थना पर दिए गए प्रवचनों का एक महत्त्वपूर्ण आकलन है । इन प्रवचनों में प्रार्थी और प्रार्थना का सुन्दर विवेचन किया गया है। प्रार्थना का मूल केन्द्र, प्रार्थना की महत्ता, प्रार्थना का जीवन के दैनिक चिन्तन में क्या महत्त्व है आदि अनेक विषयों का इन प्रबचनों में विज्ञान-सम्मत विवेचन प्रस्तुत किया गया है । आचार्य श्री के अनुसार प्रात्मा अपने मूल रूप में अनन्त चेतना, ज्ञान-दर्शन युक्त, निर्विकार और निरंजन है । आत्मोपलब्धि की तीव्र अभिलाषा आत्म-शोधन के लिए प्रेरणा जागृत करती है । किसी ने ज्ञान के द्वारा आत्म-शोधन की आवश्यकता बतलाई है, किसी ने कर्म-योग की अनिवार्यता बतलाई है, तो किसी ने भक्ति मार्ग के सरल मार्ग का अवलम्बन करने की बात कही है । जैन धर्म किसी भी क्षेत्र में एकान्तवाद को प्रश्रय नहीं देता और ज्ञान और कर्म के समन्वय द्वारा प्रात्म-शुद्धि होना प्रतिपादित करता है । प्रभु की प्रार्थना ही आत्म-शुद्धि की पद्धति का अंग है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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