Book Title: Acharya Haribhadra ane temno Yogdrushtisamucchaya Granth Author(s): Nagin J shah Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 6
________________ 193 सदनुष्ठानमां परिणमतुं आगमज्ञान ज असंमोह छे. बुद्धि, ज्ञान अने असंमोह बोधना त्रण प्रकार छे. इन्द्रियोना आधारे थतो बोध बुद्धि छे, आगमपूर्वक थतो बोध ज्ञान छे, अने आ ज्ञान, सदनुष्ठानमां परिणमवू ए ज असंमोह छे. . (12) धर्मग्रंथोनां लेखन, पूजन, दान, आदिने हरिभद्रसूरिए योगबीज गण्युं छे. योगदृष्टिसमुच्चयनो 'लेखना पूजना दानं' इत्यादि आखो श्लोक तेमणे बौद्ध आचार्य मैत्रेय रचित 'मध्यान्तविभाग' माथी लीधो छे, तेमणे रचेलो नथी. आ दर्शावे छे के बौद्ध साधनामार्गने तेमणे आत्मसात् करी लीधो हतो अने बौद्ध परंपरानुं तेमने ऊ९ ज्ञान हतुं. जैनो पण आगमपूजन आदिने सम्यग्दृष्टिनी धर्मप्रवृत्ति गणे छे. (13) सर्वज्ञोनो देशनाभेद श्रोताओनी कक्षाओना भेदने कारणे छे ए हरिभद्रसूरिना कथनना मूळमां महायाननो उपायकौशल्यनो सिद्धान्त लागे छे. महायानसूत्र सद्धर्मपुंडरीकना बीजा परिवर्तनुं नाम ज उपायकौशल्य छे. महायानना प्रसिद्ध ग्रंथ बोधिचर्यावतारनो नीचेनो श्लोक जुओ. देशना लोकनाथानां सत्त्वाशयवशानुगा / भिद्यते बहुधा लोक उपायैर्बहुभिः पुनः // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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