Book Title: Acharya Haribhadra ane temno Yogdrushtisamucchaya Granth Author(s): Nagin J shah Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ _191 अपूर्व समन्वय साध्यो छे. आठ योगदृष्टिओने जे सार्थक नामो आप्यां छे ते तेमणे पोते ज आपेला छे, बीजे क्यायथी लीधेलां नथी. ते दृष्टिओ छे - मित्रा, तारा, बला, दीप्रा, स्थिरा, कान्ता, प्रभा अने परा. आठ योगांगो छे - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान अने समाधि. आठ चित्तगुणो छे - अद्वेष, जिज्ञासा, शुश्रूषा, श्रवण, बोध, मीमांसा, प्रतिपत्ति अने प्रवृत्ति. आठ चित्तदोषो, जेमांथी मुक्ति क्रमश: ते ते दृष्टिमां थाय छे, ते छे - खेद, उद्वेग, क्षेप, उत्थान, भ्रान्ति, अन्यमुद्, उग् अने आसंग. (७) आ आठ योगदष्टिओना निरूपणमां जैन परंपराना गुणस्थानक्रमारोहसिद्धान्तनी भूमिकाओ कई कई योगदृष्टिमां समावेश पामे छे तेना निर्देशो हरिभद्रसूरिए कर्या छे. वळी, ते सिद्धान्तना केटलाक पारिभाषिक शब्दो जेवा के चरमपुद्गलपरावर्त, यथाप्रवृत्तिकरण, अपूर्वकरण अने अनिवृत्तिकरण पण तेमणे प्रयोजेल छे. मित्रादृष्टिने तेमणे मुख्यार्थमां प्रथम गुणस्थान गणी छे. प्रथमं यद् गुणस्थानं सामान्येनोपवर्णितम् । अस्यां तु तदवस्थायां मुख्यमन्वर्थयोगतः ॥ छेल्ला पुद्गलपरावर्तमां आ गुणस्थान जीवने होय छे. वळी तेमणे कयुं छे के दीप्रादृष्टिनी प्रकृष्टताए प्रथम अपूर्वकरणानन्तर ग्रंथिभेद थाय छे अने ते थतां स्थिरादृष्टिनी भूमिका आवे छे. आम स्थिरादृष्टि ए सम्यग्दृष्टि नामनुं चो) गुणस्थान छे. परादृष्टिमां द्वितीय अपूर्वकरणथी धर्मसंन्यास अर्थात् क्षायोपशमिक धर्मोनो संन्यास अने तेने परिणामे क्षायिक धर्मो (केवळज्ञानं आदि) जन्मे छे एम कर्तुं छे. घातिकर्मोना क्षयथी केवळज्ञान अने त्यार पछी अघातिकर्मोना क्षयथी अयोगरूप परम योग प्राप्त थाय छे एम कही सयोगकेवली अवस्था अने अयोगकेवली अवस्थानो स्पष्ट निर्देश कर्यो छे. आम आ परादृष्टिमां अपूर्वकरण नामना आठमा गुणस्थानथी मांडी अयोगकेवली नामना चौदमा गुणस्थान सुधीनो आध्यात्मिक विकासक्रम समावेश पामे छे. 'अयोग' शब्दनो अर्थ छे मनवचन-कायानी प्रवृत्तिनो अभाव. अही 'योग' शब्द जैन पारिभाषिक अर्थमां प्रयोजायो छे. आम आठ योगदृष्टिओमां जैन, बौद्ध, पातंजल अने शैव परंपरानी योगधाराओनो समन्वय करवानो हरिभद्रसूरिए उमदा प्रयत्न कर्यो छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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