Book Title: Acharanga Stram Part 01 Author(s): Shilankacharya Publisher: Shravak Hiralal Hansraj View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा ॥७ ॥ राजा विगेरेनी मोटी सभाओमी हारे नहिं, जीत निद्र होचायी निद्रालु शिष्योने अप्रमादीपणे सहेलाइथी जगाडे, मध्यस्थ होबाथी बधा शिष्योने योग्यरीते राखे , देशकाळ भावनो जाणनार होनाधो मुखथी गुण मातिना देशोमा विचरे छे, आसन्न लम्ध | तिभा (हाजर जवाबी होवाथी) शीघ्र परवाहीमा उत्तर मापवामां समर्थ छे, पोते जुदी जुदी भाषानी विधि आणतो होय तो जुदा जुदा देशमा जन्मेला शिष्योने सहेलाइची समजावी शके छे, ज्ञानादि पांच आचारे युक्त होवाथी तेमनु वचन माननीय छे. सूत्र अर्थ बन्नेनी विधि जाणतो होवाथी जोइए तेवीरीते उत्सर्ग अपवादना प्रपंचने बतावे . हेतु उदाहरण, निमित्त, नय तेना वि. स्तारने जाणनारो, व्याकुल थया विना, हेतु विगेरे बराबर बत्ताचे छे. ग्राहणा कुशळ होवाथी घणी युक्तिमोथी शिष्योने समजावे ताछे, जेन अने वीजा मतोनो जाणीतो होबाथी दरेकनी स्थापना अने खंडन करे छे. गंभीर ते खेदने सहेनारो, अने दीप्तिमान ते परना तेजमा न अंजाय, शिरना हेतुथी शिव एटले ते ज्यां विचरे त्यां मरकी विगेरे रोगोनी शांति थाय, सौम्य होवाथी तेने देखीने लोकोनी आंखो आनंद पामे, सेंकडो गुणोथी युक्त ते प्रश्रय (भक्ति) विगेरेथी युक्त आ प्रमाणे मूरि (आचार्य) प्रवचनना कथनमां योग्य जाणवो. ( आवा गुणोराळा आचार्य सूत्र अर्थ भणावे) ए अनुयोगना मोटा नगरपां पेसवानी माफक (जैनसिद्धांतमा पेसवाने माटे चार अनुयोग द्वारो तेज व्याख्यान अंग छे) ते कहे छे. १ उपक्रम, २ निक्षेप, ३ अनुगम, ४ नय, तेमां | उपक्रम ते उपक्रमण अथवा जेना बडे उपक्रम करीए अथवा जेनो करीए अथवा जेमा करीए तेनो अर्थ आ थाय छे के कहेचाना शाखने पूरु' समजाववा माटे शिष्य ते तरफ लक्ष खेचते उपक्रम आ उपक्रम, वे प्रकारे छे (१) शास्त्र संबंधी तथा (२) लो-18 क संबन्धी शास्त्र संबंधी अनुपूर्वी नाम, प्रमाण, वक्तव्यता, अर्थाधिकार, अने समवतार, एम छ प्रकारे छे. CSCREECCESS For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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