Book Title: Acharang Sutram Pratham Shrutskandh
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्री क्रमः विषयः सूत्रम् नियुक्तिः पृष्ठः क्रम: विषयः सूत्रम् नियुक्तिः पृष्ठः आचारा श्रीआचाराङ्गं नियुक्तिश्रीशीला० वृत्तियुतम् श्रुतस्कन्धः१ // 12 // सूत्रस्य विषया नक्रमः करणाकरणे। 104 258 हेतुः कषायादीनामुष्णत्वे २.६.११बालस्य दुःखावर्ते तपस उष्णतरत्वे च हेतुः / - 205-208 263-264 105 259 |3.1.4 शीतोष्णादिसहानां मुनित्वं तृतीयमध्ययनं 106-126 भिक्षूणां परीषहसहन शीतोष्णीयाख्यम् सू०गा०४-१२ 197-213 260-304 कामत्यागश्च / 209-210 264-265 तृतीयाऽध्ययने प्रथमोद्देशक: |3.1.5 मुनीनां जागरणं-मुनीना स्वापेऽपि (भावसुप्तानां दोषा जागरणं द्रव्यसुप्तस्येव भावसुप्तस्यापि जाग्रतां च गुणा:) 106-111 197-213 260-277| दुःखप्राप्तिः। 106 211-212 265-266 3.1.1 उद्देशचतुष्कार्थाधिकाराः।- 197-198 260 3.1.6 पलायनपथ्यादिषु सचेतनवत् 3.1.2 शीतोष्णयोर्निक्षेपाः (4) सुखी श्रमणः शब्दादिरूपवेदिनः द्रव्यभावशीतोष्णे प्रमादादि संयम: विषयविरक्तमुनिपरीषहाणां शीतत्वं-तपउद्यमादिपरी स्वरूपम्। 107-108 213 267-269 षहाणां चोष्णत्वं स्त्रीसत्कारयोः, 3.1.7 निर्ग्रन्थो रत्यरत्यादिसहः मन्दपरिणामानां परीषहानां धर्मे वैरोपरतः, धर्माज्ञानी तु मूढः प्रमादिनो वा शीतत्वम् / - 199-204 261-263 (देवानां जरा) भावजागरस्य कर्त्तव्यम्, 3.1.3 उपशमैकार्थिकानि (6) पर्यायशस्त्रसंयमखेदयोाप्तिः, संयमासंयमयोः शीतोष्णत्वे उपाधिः कर्म (कर्मसत्तास्थानानि) हेतुः सुखदुःखयोः शीतोष्णत्वे रागद्वेषयोरदृश्यो मुनिः / 109-111 - 270-276 // 12 //
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