Book Title: Acharang Sutra Ka Vaishishthy Author(s): Premsuman Jain Publisher: Premsuman Jain View full book textPage 5
________________ "जतन' भावना संसार में चारों और प्राणी, जीवन्त प्रकृति भरी हुई है कि मनुष्य जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति करते समय प्राणियों के घात-प्रतिघात से बच नहीं सकता। किन्तु वह यह प्रयत्न (जतन) तो कर सकता है कि उसके जीवन-यापन के कार्यों से कम से कम प्राणियों का घात हो। मानव की इस अहिंसक भावना से ही करोड़ों प्राणियों को जीवनदान मिल जाता है। इसी "जतन" भावना के कारण जैन दर्शन के प्राचीन ग्रन्थों में कहा गया है-- जयं चरे जयं तिठे जयमासे जयं सये / जयं भुज्जेज्ज भासजेज्ज एव पावं ण वज्झइ।। व्यक्ति यत्नपूर्वक चले, यत्नपूर्वक ठहरे, यत्नपूर्वक बैठे, यत्नपूर्वक सोए, यत्नपूर्वक भोजन करे और यत्नपूर्वक बोले तो इस प्रकार की जीवन-पद्धति से वह पाप-कर्म को नहीं बांधता है। श्रमणों द्वारा प्रचलित "जतन” की यह जीवन-पद्धति पर्यावरण-संतुलन की कुंजी है। इसकी परम्परा भी भारतीय जीवन शैली में रही है। कबीर जैसे सन्त भी यही कहते हैं या चादर को सुर-नर-मुनि ओढ़ी ओढ़ के मैली कीनी / दास कबीर "जतन कर ओढ़ी ज्योंकि त्यों धर दीनी / / कबीर का यह "जतन" श्रमण-परम्परा का " यतनाचार" है। "चादर" संपूर्ण पर्यावरण है, जिसे मैला नहीं करना है और अपना काम भी चला लेना है। सन्दर्भ 1- प्रेम सुमन जैन, पर्यावरण और धर्म, अ. भा. जैन विद्वत परिषद, जयपुर 1988 2-पं. कन्हैयालाल लोढा, जैन आगमों में वनस्पति विज्ञान, जयपुर, 1989 3-प्रेम सुमन जैन, पर्यावरण-सन्तुलन एवं शाकाहार, संघी प्रकाशन, जयपुर , 1995 4-P. S. Jain & R. M. Lodha (ed.) Medieval Jainism: Culture & Environment, Ashish Publishing House, New Delhi, 1990 5-वर्ल्ड रिलीजन्स एण्ड द इनवायरन्मेन्ट, गीतांजली प्रकाशन, दिल्ली 1991 6-जैन, नेमीचन्द, शाकाहार : मानव सभ्यता की सुबह, दिल्ली 1992 7-आचारांगसूत्र, आगम प्रकाशन, ब्यावर 1980 8-आचारांग चयनिका- सम्पा. डॉ. सोगानी, प्राकृत भारती, जयपुर 1987 9-डॉ. मुनि श्री भुवनेश, जैन आगमों के आचारदर्शन और पर्यावरण-संरक्षण का मूल्यांकन चैन्नई, 1998 10-प्रेम सुमन जैन, जैन संस्कृति और पर्यावरण संरक्षण, अरविन्द्र प्रकाशन, उदयपुर 2001 11-जैन, भागचन्द्र भास्कर, जैनधर्म और पर्यावरण संरक्षण, दिल्ली 2001 12-आचार्य महाप्रज्ञ, आचारांगसूत्र एवं आचारांग भाष्य- जैन विश्व भारती लाडनूं / 13-आचार्य महाप्रज्ञ, अहिंसा के अछूते पहलू, लाडनू 1992 14-हरिशचन्द्र व्यास, मानव और पर्यावरण , दिल्ली 1991 15-G.A. Thecolorson, Studies in Human Ecology, New York, 1961.Page Navigation
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