Book Title: Abhidhan Rajendra kosha Part 5 Author(s): Rajendrasuri Publisher: Abhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha View full book textPage 6
________________ प्रकाशकीय निवेदन कलिकाल सर्वज्ञकल्प, सकलागमरहस्यवेदी, विश्वपूज्य, परमयोगीन्द्र, परमकृपालु, पूज्यपाद गुरुदेव प्रभु श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराजने अपने तप, जप, एवं ज्ञान, ध्यान की आत्मोन्नतिकारिणी प्रवृत्ति में अप्रमत्त भाव से रममाण होते हुए जिन प्रवचन में निर्दिष्ट सत्य वस्तु तत्व का जीवनभर प्रचार, प्रसार किया । साथ ही अनेक ग्रन्थों का निर्माण किया-प्रन्थ सम्पदा का सर्जन किया । एक विशाल ग्रन्थागार सम उन की जो सर्वोत्तम, और सर्वतोमुखी रचना हैं श्री अभिधान राजेन्द्र कोश ! इस अलौकिक कृति के निर्माण द्वारा श्रीमद्ने विश्व के सभी विद्वज्जनों को युगों युगों के लिये अद्भूत प्रेरणा प्रदान की है। बीसवीं शताब्दी के संध्याकाल में इस ग्रन्थराज की प्रथम आवृत्ति श्री सौधर्मबृहत्तपोगच्छीय श्री जैन प्रभाकर प्रिन्टींग प्रेस, रतलाम (म. प्र.) से प्रकाशित की गई थी । प्रथमावृत्ति की प्रतियां समाप्त प्रोयः हो जाने के कारण यह ग्रन्थ दुर्लभ हो गया थो । विश्व इस की द्वितियावृत्ति का इन्तेजार कर रहा था और हम भी इस के पुनः प्रकाशन के लिये प्रयत्नशील थे । अ. भा. श्री सौधर्म बृहत्तपोगच्छीय त्रिस्तुतिक जैन संघ का श्रीभांडवपुरतीर्थ पर विराट अधिवेशन हुआ और उस में इस ग्रन्थराज के प्रकाशन का निर्णय लिया गया । तदनुसार प्रकाशन कार्य प्रारंभ हुआ । इस महान कार्य में परमपूज्य शान्तमूर्ति आचार्यदेव श्रीमद् बिजय विद्याचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के पदप्रभावक परमपूज्य तीर्थप्रभावक साहित्यमनिषी आचार्यदेव श्रीमद् विजय जयन्तसेनसूरीश्वरजी महाराज का श्रम साध्य सहयोग हमें प्राप्त हुआ हैं। वों के बाद पुनः एक बार इस ग्रन्थराज का प्रकाशन हम सब के लिये परम आनन्ददायक है । इस के पुनः प्रकाशन में परमपूज्य तीर्थ प्रभावक आचार्य देव श्रीमद् विजय जयन्त सेनसूरीश्वरजी महाराज सयमवयःस्थविर मुनिराजश्री शान्तिविजयजी महाराज, मुनिराज श्री पुण्यविजयजी. मुनिश्री विनयविजयजी, मुनिश्री नित्यान'दविजयजी, मुनिश्री जयरत्नविजयजी मुनिश्री जयानन्दविजयजी आदि मुनि मण्डल, एवं साध्वी-मण्डल की ओर से जो सहयोग मिला है उस के लिये हम हार्दिक आभार प्रकट करते हैं: श्री सौधर्म बृहत्तपागच्छीय त्रिस्तुतिक संघ-अहमदाबाद के ट्रस्टी मण्डल का भी इस कार्य में पूर्ण सहयोग मिला है। इस प्रकाशन में हमें जिन जिन ग्राम नगरों के श्री संघ एवं महानुभावों का जो अनमोल आर्थिक सहयोग प्राप्त हुआ है। नियमानुसार उनका नाम निर्देश करते हुए हमें अत्यन्त आनन्द का जनुभव हो रहा है। उन की मंगल नामावली प्रस्तुत है इस प्रकार । १ प्रवर्तिनी साध्वीजी गुरुणीजी प्रेमश्रीजी की शिष्या गुरुणीजी, रायश्रीजी की शिष्या साध्वीजी शिवश्रीजी को स्मृति में विदुषी साध्वीजी श्री सुन्दरश्रीजी, विदुषी साध्वीजो श्री गभीरश्रीजी के उपदेश से श्री मालवदेशीय त्रिस्तुतिक संघ ।। २ श्री जैन श्वेताम्बर त्रिस्तुतिक संघ, चोराउ (राज.) ३ श्री महावीर जैन श्वेताम्बर पेढी, श्री भाण्डवपुर तीर्थ (राज) ४ श्री भेसवाडा सिल्क मिल्स, भीवंडी (महाराष्ट्र) ५ श्री वस्तीमलजी हेमानी, जीवाणा (राज.) शाह नेमिचन्द, देवीचन्द, फूलचन्द, शुकनराज, कान्तिलाल, राजु बेटापोता श्री लखमाजी बलदरिया. कोशेलाव (राज.) ७ श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक (त्रिस्तुतिक) संघ थराद (उ. गुजरात) ८ श्री सौधर्मबृहत्तपागच्छीय त्रिस्तुतिक संघ अने थराद जन युवक मंडल, अहमदाबाद ९ श्री सौधर्मपृहत्तपोगच्छीय त्रिस्तुतिक संघ दाधाल १० श्री सौधर्मबहत्तपोगच्छीय त्रिस्तुतिक संघ-सुराणा Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 1652