Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora

View full book text
Previous | Next

Page 2
________________ 'विश्वपूज्य श्री' : जीवन-रेखा जन्म : ई. सन् 3 दिसम्बर 1827 पौष शुक्ला सप्तमी राजस्थान की वीरभूमि एवं प्रकृति की सुरम्यस्थली भरतपुर में जन्म-नाम : रत्नराज। माता-पिता : केशर देवी, पारख गौत्रीय श्री ऋषभदासजी दीक्षा : ई. सन् 1845 में श्रीमद् प्रमोदसूरिजीम. सा. की तारक निश्रा में झीलों की नगरी उदयपुर में। अध्ययन : गुरु-चरणों में रहकर विनयपूर्वक श्रुताराधन ! व्याकरण, न्याय, दर्शन, काव्य, कोष, साहित्यादि का गहन अध्ययन एवं 45 जैनागमों का सटीक गंभीर अनुशीलन! आचार्यपद : ई. सन् 1868 में आहोर (राज.)। क्रियोद्धार : ई. सन् 1869, वैशाख शुक्ला दसमी को जावरा (म. प्र.) तीर्थोद्धार : श्री भाण्डवपुर, कोराजी, स्वर्णगिरि जालोर एवं तालनपुर । नूतनतीर्थ-स्थापना : श्री मोहनखेड़ा तीर्थ, जिला-धार (म. प्र.)। ध्यान-साधना के मुख्य केन्द्र : स्वर्णगिरि, चामुण्डवन व मांगीतुंगीपहाड। साहित्य-सर्जन : अभिधान राजेन्द्र कोष, पाइयसद्दम्बुहि, कल्पसूत्रार्थ प्रबोधिनी, सिद्धहैम प्राकृत टीकादि 61 ग्रन्थ । विश्वपूज्य उपाधिः उनके महत्तम ग्रंथराज अभिधान राजेन्द्र कोष के कारण 'विश्वपूज्य' के पद पर प्रतिष्ठित हुए। दिवंगत : राजगढ़ जि. धार (म.प्र.) 21 दिसंबर 1906 । समाधि-स्थल : उनका भव्यतम-कलात्मक समाधिमंदिर मोहनखेड़ा (राजगढ़ म.प्र.) तीर्थ में देव-विमान के समान शोभायमान है। प्रति वर्ष लाखों श्रद्धालु गुरु-भक्त वहाँ दर्शनार्थ जाते हैं। मेला पौष-शुक्ला सप्तमी को प्रतिवर्ष लगता है। इस चमत्कारिक मंदिरजी में मेले के दिन अमी-केसर झरता है। लन्दन में जैन मंदिर में उनकी नव-निर्मित प्रतिमा लेटेस्टर में प्रतिष्ठित हैं। विश्वपूज्य प्रेम और करुणा के रूप में सबके हृदय मंदिर में विराजमान हैं। विश्वपज्य ने शिक्षा और समाजोत्थान के लिए सरस्वती मंदिर, सांस्कृतिक उत्थान के लिए संस्कृति केन्द्र-मंदिर एवं ग्राम-ग्राम नगर-नगर इल विहार कर अहिंस्ण मक-क्रान्ति और नैतिक जीवन जीने के लिए मानवमात्र को अभिप्रेरित किया। विज्य का जीवन ज्योतिर्मय था । उनक संदेश था - 'जीओ और जीने दो'- क्योंकि सभी प्राणी मैत्री के भर में बँधे हुए हैं। परस्परोपग्रहो वानाम्' की निर्मल गंग-ना प्रवाहित कर उन्होंने न केवल भारतीय संस्कृति की गरिमा बढ़ाई, अपितु विश्व-मानस को भगवान महावीर के अहिंसा और प्रेम का अमृत पिलाया। उनकी रचनाएँ लोक-मंगल की अमृत गगरियाँ . यविश्वसाहित्य का चिन्तामणि रल हैं।

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 ... 202