Book Title: Abhaysomsundar krut Vikram Chauboli Chaupai
Author(s): Madanraj D Mehta
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 2
________________ अभयसोमसुन्दरकृत विक्रम चौबोली चउपि ५६५ तोहुति नवनिधि हुवे, तोहुति सहु सिद्धि । आजने आगा लगे, मुरिख पण्डित कीध ।। तिण तोने समरि करी कहिसु विक्रम बात । मैं तो उद्यम मांडियो पूरो करस्यो मात ॥ मोने किणही न छेतरयो मैं जगी ठग्यो अनेक । मो कलियुग ने छेतरयो राजा विक्रम एक ।। चौबोली राणी चतुर सीलवंती सुखकार । विक्रम परणी जिण विधै कथा कहीस निरधार । कवि ने मालव प्रदेश और उज्जयिनी नगरी का वर्णन करके विक्रम के ललित चरित्र का हृदयग्राही विवरण प्रस्तुत किया है। राजा विक्रम वंस पमार । वंस छत्रीसों ऊपरी सार ॥ राज रीत पाले राजान । न्याये राम तणे उपमान । सकल सोमानी बहुगुण निलो। सूर वीर उपगारी भलो । पृथ्वी उरण किधि तिणे । परदुखिया दुख भांज्या तिणे ॥ एक दिन राजा ने इस बात का पता लगाने के लिए कि लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं, श्याम-वेष धारण कर अपने राज्य के कोने-कोने को छान मारा। जब वह थक गया तो एक आम के नीचे विश्राम के लिए रुका । ऊपर एक तोते का जोड़ा मानव-भाषा में अत्यन्त सुन्दर बोली बोल रहे थे। तोते की स्त्री ने नारी की प्रशंसा की तो तोते ने नारी के दुर्गुणों का उल्लेख किया। उसने कहा कामणि कूड़ कपट कोथलि, छोड़ि कुटंब जाई एकली। [कामिनी असत्य और कपट की थैली होती है, वह कुटम्ब छोड़कर अकेली चली जाती है। स्त्री ने प्रत्युत्तर दिया नर मत वखाणो सुडि कहे नेह पषे कूडो निरवहे। नलराजा दवदंति छांडि गयो सूति मूकि उजाडि ॥ [नर ! मत व्याख्यान करो। नर का स्नेह के प्रति असत्य निर्वाह होता है। नल ने दमयन्ती को छोड़ा और उसे उजाड़ में छोड़ कर चल दिया।] जब दोनों में वार्तालाप हो रहा था तो राजा ने स्त्री को यह कहते हुए सुना कि यदि पुरुष भले हों तो लीलावती यों ही क्यों रहती है ? तोते ने पूछा कि कौन-सी लीलावती? स्त्री ने कहा कि दक्षिण में एक त्रिया राज्य है-कनकपुर । वहाँ लीलावती शासन करती है। वह अप्सरा के सदृश है। वह न तो पुरुष का मुंह देखती है और न पुरुष के महत्त्व को ही मानती है । विक्रम पूर्वानुराग से पीड़ित होने लगा। उसने उज्जैन पहुँच कर राज्य का कार्य-भार अपने मन्त्री को सौंपा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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