Book Title: Aavashyako ki Mahima
Author(s): Pramodmuni
Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf

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Page 1
________________ 15.17 नवम्बर 2006 जिनवाणी, 29 आवश्यकों की महिमा तत्त्वचिन्तक श्री प्रमोदमुनि जी म. सा. षडावश्यकों में एक-एक आवश्यक महिमाशाली है ! ये आवश्यक आत्मा को समभावी, गुणियों के प्रति श्रद्धालु, अहंकाररहित, दोषरहित, आसक्ति रहित एवं गुणसम्पन्न बनाने में समर्थ हैं। आचार्यप्रवर श्री हीराचन्द्र जी म.सा. के आज्ञानुवर्ती सन्त तत्त्वचिन्तक श्री प्रमोदमुनि जी म.सा. ने सन् २००२ के मुम्बई चातुर्मास में अक्टूबर माह में प्रतिक्रमण विषयक जो प्रवचन फरमाया था वह इस दृष्टि से अत्यन्त उपयोगी है । मुनिश्री के प्रवचन में उनके स्वरचित भजन के अन्तरे भी मुम्फित हैं, जो अर्थगाम्भीर्य से युक्त हैं। -सम्पादक प्रतिक्रमण यद्यपि आवश्यक सूत्र का चतुर्थ आवश्यक है, तथापि प्रधान व प्रमुख होने से व्यवहार में, बोलचाल में 'प्रतिक्रमण' शब्द का इतना प्रयोग होता है कि शायद ही कोई बोलता हो कि मैं आवश्यक करने जा रहा हूँ। शायद ही संत भगवन्त या उद्घोषक प्रवचन सभा में कहते हों कि आवश्यक में पधारना, आज पक्खी है, चौमासी है या संवत्सरी है- आज तो हमें आवश्यक करना ही है- सभी जगह प्रायः 'प्रतिक्रमण' शब्द ही प्रयोग में आता है। अतः हम अभी आवश्यक सूत्र के छः आवश्यकों को देखने का प्रयास करते हुए भी प्रतिक्रमण की ही प्रधानता रख रहे हैं। 'दूसरों पर आक्रमण करना अतिक्रमण है और स्वयं पर आक्रमण करना प्रतिक्रमण है।' नगरपालिका अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाती है। आजकल माफिया के सहकार से होने वाले अतिक्रमण के किस्से आपसे अपरिचित नहीं हैं। किन्तु स्वयं का जीव अनादिकाल से अतिक्रमण कर रहा है- इससे कितने परिचित हैं? अतिक्रमण के पाँच प्रमुख कारण हैं- मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय और अशुभ योग। हम इन्हें १, २, ३, ४, ५ की संख्या देकर लिखें तो १२३४५ बनता है। सबसे ज्यादा ताकत एक की अर्थात् मिथ्यात्व की हैउसके हटते ही मात्र २३४५ रह जाते हैं और अव्रत के छूटने पर ३४५- आत्म साधना का प्रतिक्रमण व्रती के लिये ही है पर स्वाध्याय के रूप में अव्रती को भी लाभकारी है। अपना प्रसंग चल रहा है- सर्वाधिक अतिक्रमण मिथ्यात्व से होता है। जब शरीर को ही अपना माना जाता है, धन सम्पत्ति को ही अपना माना जाता है तो किसी भी प्रकार से शरीर के सुख के लिये, धन-सम्पदा जुटाने के लिए जीवों का स्वाहा करते, खुले आम कत्लेआम करते, अणुबम के द्वारा नागरिकों को धराशायी करते कोई हिचक नहीं होती! बाप को जेल में डालते, बेटे को कत्ल कराते, बहू को स्टोव में जलाते व्यक्ति को हिचक नहीं होती। इस अतिक्रमण को समाप्त करने के लिये प्रतिक्रमण है। दूसरे को जो भी दिया जाता है, प्राकृतिक कर्म-विज्ञान के अनुसार वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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