Book Title: Aagam Manjusha N 37 Dasasuya Nijjutti Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri Publisher: Deepratnasagar View full book textPage 6
________________ कम्मे य किलेसे या समुदाणे खलु तहा समाइण्णो। उप्पाए अदुपक्खे लुक्खे तह संपराए य // 123 // अमुते दुह पुण बंधो दुम्मोए खलु चिरट्टितीए य / घणचिकणनिआ मोहे य तहा महामोहे // 124|| कहिया जिणेहिं लोगा पगासिआ भारिया इमे बंधा। साहुगुरुमित्तबंधवसेट्ठीसेणावइवधेसु // 125 // एत्तो गुरुआसायण जिणवयणक्लिोवणो सुपडियद / असुहे दुहाणुबंधीति तेण तो ताई वजेजा // 126 // मोहणिजस्स निजुत्ती // णामंठवणाजाई दवे भावे य होइ बोधा / ठाणं पुढहिट्ठ पगयं पुण भावठाणेणं // 127 // दवे दश्वसभावो भावे अणुभवण ओहतो दुविहो। अणुभवणा छबिहा ओहओ उ संसारिओ जीवो // 128 // जाती आजाती या पचाजातीय होइ बोद्धया। जाती संसारत्या आजाती जम्ममनयरं // 129 // इत्तो चुओ भवाओ तत्थेव पुणोचिजह हवति जम्मं / सा पञ्चायातित्तिय मणुस्सतेरिच्छिए होई // 130 // कामं असंजयस्सा नत्थि हु मोक्खे धुवमेव आयाई।केण विसेसेण पुणो पावइ समणो अणायाई?॥१३॥ मूलगुण उत्तरगणे अप्पडिसेवी इहं अपडिबदो। भत्तोवहिसयणासणविवित्तसेवी सया पयओ // 132 // तित्थंकरगुरुसाहूसु भत्तिमं हत्थपायसंलीणो। पंचसमिओऽकलहझंझापिसुणओ हारविरओ अ॥१३३॥ पाएण एरिसो सिज्झइत्ति कोइ पुणो आगमेसाए। केण हु दोसेण पुणो पावइ समणोऽपि आयाई? // 134 // जाणि भणिआणि सुत्ते तहागएसुं तहा निदाणाणि / संदाण निदाणंतिय पञ्चातिय होंनि एगट्ठा // 135 // दव्वप्पओगवीससप्पओगसं मूलउत्तरे चेवामूलसरीरसरीरी साती य अणातिए चेव // 136 // णिगलादि उत्तरो वीससा उ साइअमणादिओ चेवा खित्तंभि जमिखेत्ते काले कालो जहिं जाओ॥१३७॥ भावे कसायबंधो अहिगारो बहुविहेसु अत्येसु। इहलोगपारलोगिअ पगयं परलोगिए बंधे॥१३८॥दुविहो अभावबंधो जीवमजीवे अ होइ बोब्बो। एकेकोऽविय तिविहो विवागअविवागतदुभगगो॥१३९॥ पावइ धुवमायाति नियाणदोसेण उज्जमंतोऽवि। विणिवायंपिय पावइ तम्हा अणियाणा सेआ॥१४०॥ अप्पासस्थाए असल्याए अकसाय अप्पमाए / अणिदाययाइ साह संसारमहन्न तरह // 141 // इति समाप्ता श्रीश्रुतकेवलिभगवद्भद्रबाहुखामिविरचिता श्रीदशाश्रुतस्कंधनियुक्तिः निर्घन्धगच्छ+ क्रमायातश्रीमत्तपोगछीयश्रीमत्सागरानन्दसूरिसंशोधिता. उत्कारिता चेयं श्रीसिद्धक्षेत्र श्रीवर्धमानजैनागममंदिरान्तरशेषागमोत्किरणस्यादौ श्रीवीरनिर्वाणतः 2467 वर्षे अक्षयतृतीयायां।Page Navigation
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