Book Title: Aagam Manjusha N 37 Dasasuya Nijjutti
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
Catalog link: https://jainqq.org/explore/003951/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ _ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरूभ्यो नमः On Line - आगममंजूषा दसासूयक्खंध-निज्जुत्ति * संकलन एवं प्रस्तुतकर्ता * मुनि दीपरत्नसागर M.Com. M.Ed. Ph.D.] Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || किंचित् प्रास्ताविकम् || ये आगम-मंजूषा का संपादन आजसे ७० वर्ष पूर्व अर्थात् वीर संवत २४६८, विक्रम संवत-१९९८, ई.स.1942 के दौरान हुआ था, जिनका संपादन पूज्य आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसरिजी म.सा.ने किया था| आज तक उन्ही के प्रस्थापित-मार्ग की रोशनी में सब अपनी-अपनी दिशाएँ ढूंढते आगे बढ़ रहे हैं। हम ७० साल के बाद आज ई.स.-2012,विक्रम संवत-२०६८,वीर संवत-२५३८ में वो ही आगम-मंजूषा को कुछ उपयोगी परिवर्तनों के साथ इंटरनेट के माध्यम से सर्वथा सर्वप्रथम “ OnLine-आगममंजूषा ” नाम से प्रस्तुत कर रहे हैं। * मूल आगम-मंजूषा के संपादन की किंचित् भिन्नता का स्वीकार * [१]आवश्यक सूत्र-(आगम-४०) में केवल मूल सूत्र नहीं है, मूल सूत्रों के साथ नियुक्ति भी सामिल की गई है। [२]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) में भी केवल मूल सूत्र नहीं है, मूलसूत्रों के साथ भाष्य भी सामिल किया है। [३]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) का वैकल्पिक सूत्र जो “पंचकल्प” है, उनके भाष्य को यहाँ सामिल किया गया tic [४] “ओघनियुक्ति”-(आगम-४१) के वैकल्पिक आगम “पिंडनियुक्ति” को यहाँ समाविष्ट तो किया है, लेकिन उनका मुद्रण-स्थान बदल गया है। [५] “कल्प(बारसा)सूत्र” को भी मूल आगममंजूषा में सामिल किया गया है। -मुनि दीपरत्नसागर मुनि दीपरतसागर : Address: Mnui Deepratnasagar, MangalDeep society, Opp.DholeshwarMandir, POST:- THANGADH Dist.surendranagar. Mobile:-9825967397 jainmunideepratnasagar@gmail.com Online-आगममंजूषा Date:-12/11/2012 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीदशाश्रुतस्कंधनियुक्तिः - आँ नमो वीतरागाय । वदामि भद्दबाहुं पाइणं चरिमसयलसुयनाणिं। सुत्तस्स कारगमिसिं दसासु कप्पे य ववहारे॥१॥ आउविवागज्झयणाणि भावओ दव्वओ अवत्थदसा । दस आउविवागदसा बाससयाउं दसह छेत्ता ॥२॥ वाला मंदा किया बलाय पण्णाय हायणि पवंचा। पम्भार मुम्महि सयणा नामेहिय लकखणेहिं दसा॥॥दस आउविवागदसा नामेहि य लक्खणेहि एहिति। दस अज्झयणदसा दस अहक्कम कित्तइस्सामि॥४॥डहरीओ उ इमाओअज्झयणेसु महई उ अंगेसु।छसु मायाऽऽदीएसुं वत्थविभूसावसाणंमि ॥५॥डहरीओ उ इमाओ निजूढाओ अणुग्गहवाए। थेरेहिं तु दसाओ जो दसाजाणओ जीवो॥६॥ असमाहिय१ सवलत्तं२ अणसायण३ गणिगुणा४ मणसमाही५।सावग६ भिक्खूपटिमा७ कप्पोट मोहा९ नियाणं१० च॥७॥(एवं) दसाण पिंडत्थु एसो मे वषिणो समासेणं । एत्तो एकेकपि य अज्झयणं कित्तइस्सामि ॥८॥दवंजेण व दवेण समाही आहियं चजंदचं। भावो सुसमाहितया जीवरस पसत्थजोगेहिं ॥९॥ नाम ठवणा दविए खेत्तद्धा उड्ढ उवरई वसही। संजम पग्गह जोहे अचल गणण संघणा भावें ॥१०॥ वीसंतिणवरि णेमं अइरेगाइंतुलेहि सरिसाई । नायवं एएसु य अन्नेसु य एवमाईसु ॥११॥ असमाहिठाणनिजुत्ती समत्ता१ । दवं चित्तलगोणाइएसु मावसबलो सुतायारो। वतिकमाइक्कमेसुं विपयारे भावसबलो उ॥१२॥ अवराहम्मि य पयणुए जेण उ मूलं न वचए साहू। सबलेइ तं चरितं तम्हा सबलत्तणं चिंति॥१३॥वाले राई दाली खंडो डि खुतेअभिने याकम्मग सपट्ट सबले सवावि विराहणा भणिआN ॥१४॥ सवलनिजुत्ती२ ॥ आसायणा उ दुविहा मिच्छापडिवजणा य लाभे आलाभे छक्कं तं पुण इट्टमणिढं दुहेकेकं ॥१५॥ साह तेणे उग्गह कन्तार विआल विसममुहवाही । जे लट्टा ते ताणं भणंति आसायणा उ जगे॥१६॥ दर्ष माणुम्माणं हीणऽहिजं जंमि खेत्ति जं कालं। एमेव छविहंमी मावे पगयं तु भावेण ॥१७॥उदृहमपुरेसुं आउक्सग्गोत्ति सबजुत्तिकओ। पयअस्थविसोहिकरो दित्ते आसायणा तम्हा ॥१८॥मिच्छापटिवत्तीए जे भावा जत्थ होति सम्भूआ। तेसिं तु तहाऽपडिवजणाएँ आसायणा तम्हा ॥१९॥ न करेइ दुक्खमोक्खं उज्जममाणोवि १२५० श्री दशाश्रुतस्कंध नियुक्ति मुनि दीपरत्नसागर ५३४९ | Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संजमतवेसु । तम्हा अत्तुकरिसो कजेअबो पयत्तेणं ॥२०॥ जाणि मणिआणि सुत्ते ताणि जो कुणइ अकारणजाए। सो खलु भारियकम्मो न गणेइ गुरुं गुरुट्टाणे ॥ २१ ॥ दंसणनाणचरिनं नवो य विणओ अ हुंति गुरुमूले। विणओ गुरुमूलेत्ति अ गुरूहिं आसायणा तम्हा ॥२शाजाई भणियाई सुत्ते ताई जो कुणइ कारणजाए । सो नहु भारियकम्मो तु गणेइ गुरू गुरुवाणे ॥२३॥ सो गुरुमासायंतो दंसणणाणचरणेसु सयमेव।सीयति कत्तो आराहणासु? तो ताणि कजेजा ॥२४॥आसायणानिजुनी३॥ दवं सरीरभचिओ भावगणी गुणसमनिओ दुपिहो। गणसंगहुवम्गहकारओ अ धम्मं च जाणतो॥२५॥ नायं गणिों गुणिशं गयं च एगट्ट एवमाईअं। नाणी गणित्ति तम्हा धम्मस्स विआणओ भणिओ ॥२६॥ आयारम्मि अहीए जं नाओ होइ समणधम्मो उ। तम्दा आयारधरो भण्णइ पदम गणिट्ठाणं ॥२७॥ गणसंगहुबग्गहकारओ गणी जो पहू गणधरो उ।तेण णओ उकं संपयाए पययं च गुत्तस्थ ॥२८॥ दवे भावे यसरीरसंपया छविहा य भामि। दवे खेत्ते काले भावम्मि अ संगहपरिण्णा ॥२९॥ जह् गयकुलसंभूओ गिरिकंदरकडगविसमदुग्गेसु । परिवहइ अपरितंतो निअयसरीरुम्गए दंते ॥ ३० ॥ तह पवयणभनिगओ साहम्मियवच्छलो असदभावो। परिवहइ असहुवग्गं खेत्तविसमकालतुग्गेसु॥३१॥ गणिनिजुत्ती४ ॥नाम ठवणा चित्तं दो भाये अ होइ बोदवं। एमेव समाहीए निक्खेवो चउपिहो होइ ॥३२॥ जीवो उदयचित्तं जेहि व दवेहि जंमि वा दो। नाणादिसु सुसमाही धुवजोगी भावओ चित्तं ॥३३॥दवं जेण व दवेण समाही आवितं च जं दवं। भावे समाहि चउविह दसण नाणे तव चरिते ॥३४॥ भावसमाही चित्ते ठिअस्स ठाणा इमे विसितरा । होइ जतो पुण चित्ते चित्तसमाहीएं जइस ॥३५॥ चित्तसमाहिठाणनिजुत्ती५॥दव तदट्टोवासक मोहे भावे उवासका चउरो। दवं सरीरभक्ओि तदद्विओ आवणाईसु ॥ ३६॥ कुप्पवयणं कुधम्म हुवासए मोहुवासको सो उ । हंदि तहि सो सेयंति मण्णति संयं तु नस्थि तहिं ॥३७॥ भावे उ सम्मदिट्ठी संममणो जं उवासए समणे । तेण सि गोण्णं नाम उवासगो सावगो वेति ॥ ३८॥ कामं दुवालसंग पवयणमणगारऽगारधम्मो अ। ते केवलिहिं पसूआ पउवसग्गो पसूअंति ॥ ॥३५॥ नो ने सावग तम्हा उवासगा तेसु हाँति भात्तिगया। अविसेसंमि विसेसो समणेसु पहाणया मणिया॥४०॥कामं तु निरवसेसं सर्वजो कुणइ नेण होइ कयं।तमि द्विता उ समणा तोचासग सावगा गिहिणो॥४१॥ दमि सचित्तादी संजमपडिमा तहेव जिणपडिमा। भावो संताण गुणाण धारणा जा जहिं भणिआ॥४शासा दुविहा छब्बिगुणा भिकखूण उवासगाण एगणा। उवार भणिया मिक्खूणुवासगाणं तु पोच्छामि ॥४३॥ तत्थऽहिगारो तु सुहं नातुं आइक्खिउं च गिहिधम्मं । साहूणं चिय तवसंजमंमि संवेगकरणाणि ॥४४॥ जइता गिहिणोऽपिय उजमति नणु साहुणावि कायव्यं । सवत्थामी नवसंजमंमि इअ सुनाऊणं ॥४५॥दसण१ वयर सामाइय३ पोसह४ पडिमा५ अर्वभ६ सचित्ते७। आरंभ८ पेस९ उदिङबजए १० समणभूए ११ अ॥४६॥ उवासगपहिमानिजनी । भिक्खुर्ण उपहाणे पगर्य तत्थ वहति निक्वेयो। तिमि य पुरहिट्ठा पगयं पुण भिकरघुपडिमाए॥४७॥ समाहि उपहाणे या. विवेग पडिमा इय। पटिसलीणा यतहा, एगविहारे अपंचमिआ॥४८॥ आयारे बायाला पटिमा सोलस य वनिआ ठाणे । चत्तारि अ ववहारे मोए दो चंदपडिमाउ ॥४९॥ एवं तु सुअसमाही पडिमा वावडिया य पंचऽना। सामाइअमाईआ चारितसमाहिपडिमाउ॥५०॥ भिकर्ण उवहाणे उवासगाणं च वनिया सुत्ते । गणकोवाइविवेगो सम्भितरबाहिरो दुविहो ॥५१॥ सोइंदिअमादीआ पटिसलीणा चउत्थिआ दुविहा। अट्ठगुणसमग्गस्सा एगविहारिस्स पंचमिआ ॥५२॥ दृढसम्मत्तचरित्ते मेधाविवहुस्सुए य अयले य। अरइरइसहे दविए खंता भयभेरवाणं च ॥५३॥ परिजिअकालामंतणखामण तव संजमे अ संघयणे। भलोचहिनिकोवे आवण्णे लाभ गमणे य॥५४॥ भिकखुपडिमानिजुत्तीपज्जोसवणाए अकखराई हॉति उइमाई गोचाई। परियाय ववत्थवणा पजोसवणाइ पागइया ॥५५॥ परिवसणा पजुसणा पजोसवणा य वासवासो या पढमसमोसरणंति य ठवणा जेट्टोमगहेगट्ठा ॥५६॥ ठवणाए निकखेचो छको दवं च दवनिकखेयो। खेतं तु जम्मि खेने काले कालो जहिं जो उ॥५७॥ ओदइयाईयाणं भावाणं जा जहिं भवे ठवणा। भावेण जेण य पुणो ठविजए भावठवणा उ॥५८॥ सामित्ने करणम्मि य अहिगरणे व होनि छम्भेय। एगलपहत्तेहि दवे खेतऽदभावे य॥५९॥ काले समयाई उ पगयं समयंमि तं परुविस्सं । निकखमणे य पवेसे पाउस सरए य वोच्छामि ॥६०॥ ऊणाइरित्तमासे अट्ठ विहरिऊण गिम्हहेमंते । एमाहं पंचाहे मासं च जहा समाहीए॥६१॥ काऊण मासकप्पं तत्थेव उवागयाण ऊणाते। चिक्खालवासरोहेण वावि तेणऽडिया ऊणा ॥६२॥ बासाखेत्तालंभे अदाणाईसु पत्नमडिगा उ। मावगवाघाएण व अपरिकमिउं जद वयंति ॥६३॥ पडिमापडिवनाणं एगाहं पंच होतऽहालंदे। जिणसुदाणं मासो निकारणओ य थेराणं ॥६४ ॥ ऊणाइरित्तमासा एवं थेगण अट्ठनाया। इयरे अट्ठ विहरियनियमा चनारि अच्छति॥६५॥ आसाढपुन्निमाए वासावासंमि होति ठायत्रं । मग्गसिरबहुलदसमी उ जाव एगमि खेत्तमि॥६६॥ चिक्वाड पाण२ पंडिरा३ वसही४ गोरस५ जणाउले६ विजे७। ओमह८ निचयाए हिवई१० पासंडा११ भिक्ख १२ सज्झाए१३॥६॥ बाहि ठिआ वसभेहिं खेत्तं गाहित्तु वासपाउग्गं । कप्पं कहेनु ठवणा सावणमुदस्स पंचाहे ॥६८॥ एत्थ यी अणभिग्गहिअं वीसइराई मवीसतीमासं । तेण परमभिग्गहिअं गिहिणातं कत्तिओ जाब ॥ ६९॥ असिवाइकारणेहिं अहवा वासं न सुदु आरदं । अहिवइढिअंमि बीसा इयरेसु सवीसई मासो॥ १२५ श्रीदशाश्रुतस्कंध नियुक्ति मुनि दीपरनसागर १३५० Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥७॥एत्य तु पणगं पणगं कारणिअं जाव वीसतीमासो। सुखदसमीठिआण व आसाढीपुण्णिमोसरणं ॥७१॥ इय सत्तरी जहना असीति नउती दसुत्तरसयं च। जइ वासइ मग्गसिरे दस राया तिमि उक्कोसा॥७२॥ काइअभूमी संथारए य संसत्त दुलहे भिक्खे। एएहिं कारणेहिं अप्पत्ते होइ निग्गमणं ॥७३॥ काऊण मासकप्पं तत्थेव ठिआण जाव मग्गसिरो।सालंबणाण छम्मासुग्गह जेटोग्गहो होइ॥७४॥ उभओ उ अद्धजोअण अद्धं कोसं च तं हवइ खेत्तं। होइ सकोसं जोअण मोत्तूणं कारणज्जाए॥७५॥ उड्ढमहे तिरियम्मि असकोसयं होइ सबओ खेत्तं। इंदपयमाइएK छद्दिसि सेसेसु चउ पंच ॥७६॥ तिमि दुवे एगा वा वाघाएणं दिसा हवइ खेत्तं। उज्जाणाउ परेणं छिन्नमडवं तु अक्खित्तं ॥७७॥ दगघट्द तिमि सत्त व उडुवासामुन हर्णति तं खेत्तं । चउरहाइव जहणती जंघुदेकोऽवि उ परेणं ॥७८॥ दबढवणाऽऽहारे विगई संथार मत्तए लोए। सचित्ते अचित्ते वोसिरणं गणधरणादी॥७९॥ पुवाहारोसमणं जोगविवड्डीए सत्तिओ गहणं । संचतियअसंच तिए य दवविवड्ढी पसत्या उ॥ ८॥ विगतिं विगतिभीओ विगइगयं जो उ गिण्हए भिक्खू। विगई विगइसहावा विगई विगई बला नेइ ॥८१॥ पसत्यविगईगहणं गरहिय विगतिग्गहोअर 8 कजमि।गरहा लाभ पमाणे पचय पावप्पडीघाओ ॥२॥ कारण उडुगहिए उज्झिऊण गिव्हंति ओअपरिवाडी। दाउं गुरुस्स तिनि उ सेसा गिण्हंति एकेकं ॥८३॥ उच्चार पासवण खेल मत्तए तिन्नि तिण्णि गिव्हंति। संजमआएसाए भुंजेज व सेसमुह्यति ॥८४॥ धुवलोओय जिणाणं निच्च थेराण वासवासासु। असहू गिलाणगस्स वनातिकमिज त रयणिं ॥८५॥मो तुं पुराणभावियसड़े17 सञ्चित्त सेस पडिसेहो। मा निहओ भविस्सइ भोअणमोए अ उजाहो ॥८६॥ इरिएसणभासाणं मणवयसा कारिए य दुचरिए। अहिगरण कसायाणं संवच्छरिए विओसमणं ॥८७॥ कामं तु 8 सवकालं पंचमु समितीसु होइ जइयो । वासासु अहिगारो बहुपाणा मेइणी जेण ॥८८ भासण संपाइवहो दुन्नेओ मोहछेउ ततिआए। इरिअचरिमासु दोसुअ अपेहअपमज्जमाणाणं ॥८॥ मणवयणकायगुत्तो दुचरियाई व खिप्पमालोए।अहिगरणे अ दुरूवग पज्जोए चेव दमए य॥९०॥ एगवहावागडी पासह तुम्हे विसन खलहाणे।हरणे झामण भाणग घोसणया सलहेसु ॥११॥ अप्पिणह तं वइलं दुरूवगा तस्स कुंभकारस्स।मा भे दहिही गार्म अाणिवि सत्त वासाणि ॥९२॥ चंपा कुमारनंदी पंचत्थिय थेरणयण दुमवलए। बहि पासणया सावग इंगिणिउववाय णंदिवरे॥९॥ बोहण पडिमादायण पभाव उप्पाय देवया अहो। मरणुववाए तावस णयणं तह भेसणं समणा ॥९४॥ गंधारगिरी देवय पडिमा गुलिया गिलाण पडियरणं। पजोअहरण पुक्खरकरणं गहणा ण मे समणा ॥१५॥ दासो दासीवतिओ छत्तट्ठी जो घरे अवस्थब्यो । आणं कोवेमाणो हतब्बो बंधियो अ॥९६॥ खदादाणियगेहे पायस दटूण चेडरूवाई। पियरोभासण खीरे जाइय वदेण सेणा उ॥९७॥ पायसहरणं छेत्ता पञ्चागय दममसिअए सीसं। भाऊपेसण थीखिसणा य सरणागए जत्य ॥९८॥ वाओदएण राई नासइ कालेण सिगयपुढवीणं । नासइ दगस्स राई पवयराती उ जा सेलं ॥ ९९ ॥ उदयसरिच्छा पक्खेणऽवेति चउमासिएण सिगयसमा ।वरिसेण पुढविराई आमरण गती अपडिलोमा॥१००॥ सेलट्ठियंमदारूम लया य वंसी अमिंटगोमत्ता। अवलेह णिआ किमिरागकडमकुसुंभयहलिहा ॥ १०१॥ एमेव यंभकेयणवत्येसु परूवणा गतीओ अ। मरु अञ्चकारिज पंडरज्जा मंगू अ आहरणा ॥१०२॥ अवहंतगोण मरुए चउण्ह वप्पाण उकरो उवरि । छोड़े मए सुवट्ठा अइकोवण देसु पच्छित्तं ॥१०३॥ वाणिधूअच्चंकारिअ भद्दा अट्ठसुअमग्गओ जाया। वरग पडिसेह सचिवो अणुअंतिहं पयाणं च ।।१०४॥ निवचिंत विआल पडिच्छणा य दाणं न देति निवकहणं । खिंसा निसि निग्गमणं चोरा सेणावई गहणं ॥१०५॥ निव्वत्त जलूग वेजग गहणं तंपिअ अणिच्छमाणी उ। गिण्हावेइ जलूगा धणमाउग कहण मोअणया॥१०६॥सयगुणसहस्सपायं वणभेसनं जइस्स जायणया। तिक्खुत्त दासि भिक्खून य कोवो सयपयाणं च॥१०७॥ पासस्थि पंडरज्जा परिन गुरुमूल माय अभिओगा। पुच्छइ अपडिक्कमणे पुच्वब्भासा चउत्थम्मि॥१०८॥अपडिकम सोधम्मे अभिओगा देविसक ओसरणं।हत्थिणि वाउनिसग्गे गोअमपुच्छा यवाकरणं॥१०९॥महुरा मंगू आगम बहुमुय वेरग्गि सड्ढपूया यासातादिलोभ नितिए मरणे जीहा य निद्धमणे॥११०॥अन्भुवगत गतवइरे णाओगणिणाचि मा हु अहिगरणं । कुज्जा हु विकसाए वा अगड़ितफलं च सिस्सा उ॥१११॥ पच्छिन्नेबद्दपाणा कालो बलिओ चिरं च ठायव्वं । सज्झाय संजमतवे धणिअं अप्पा निउत्तब्बो ॥११२॥ पुरिमचरिमाण कम्पो उ मंगलं वद्धमाणतित्यंमि। तो परिकहिया जिणपरिकहा य येरावलिं वोच्छं ॥११३॥ सत्ते जहानिबद्ध वग्धारियभत्तपाणअग्गहणं । नाणद्वितवस्सीअणहिआसि वग्धारिए गहणं ॥११४॥ संजमखेत्तसुआणं नाणहितवस्सिअणहियासाणं । आसज भिक्खकालं उत्तरकरणेण जइयव्यं ॥११५॥ उन्नियवासाकप्पो लाउयपायं च लम्भए जत्थ। सज्झाएसण सोही वासतिकाले यतं खित्तं ॥११६॥ पुब्वाधीतं नासति नवं च छाओन पच्चलो चित्तुं । खमगरसव पारणए वरसति असहू अबालादी॥११७ाबाले सुत्ते सूई कुडसीसग छत्तए यपंचमए।नाणहितवस्सिअणहिआसि अह उत्तरविसेसो॥११८॥ पजोसवणाकप्पस्स निजुत्ती८॥नामंठवणामोहो दब्वे भावे य होति बोदब्बो । ठाणं पुबुद्दिढ पगर्य पुण भावठाणेणं ॥११९॥ सव्वं सञ्चित्ताती सयणधणादी दुहा हवइ मोहो । ओघेण गायपडिणी अणेगपगडी भवे मोहो॥१२०॥ अट्ठविई पिय कम्मं भणि मोहोत्ति जं समासेणं । सो पुष्वगए भणिओ तस्स य एगट्ठिआ इणमो॥१२१॥ पावे वजे वेरे पणगे पंके खुहे असाए य । संगे सल्ले अरए निरए धुत्ते अएगट्ठा ॥१२२॥ १३५१५३५२ श्री दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति मुनि दीपरत्नसागर । Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कम्मे य किलेसे या समुदाणे खलु तहा समाइण्णो। उप्पाए अदुपक्खे लुक्खे तह संपराए य // 123 // अमुते दुह पुण बंधो दुम्मोए खलु चिरट्टितीए य / घणचिकणनिआ मोहे य तहा महामोहे // 124|| कहिया जिणेहिं लोगा पगासिआ भारिया इमे बंधा। साहुगुरुमित्तबंधवसेट्ठीसेणावइवधेसु // 125 // एत्तो गुरुआसायण जिणवयणक्लिोवणो सुपडियद / असुहे दुहाणुबंधीति तेण तो ताई वजेजा // 126 // मोहणिजस्स निजुत्ती // णामंठवणाजाई दवे भावे य होइ बोधा / ठाणं पुढहिट्ठ पगयं पुण भावठाणेणं // 127 // दवे दश्वसभावो भावे अणुभवण ओहतो दुविहो। अणुभवणा छबिहा ओहओ उ संसारिओ जीवो // 128 // जाती आजाती या पचाजातीय होइ बोद्धया। जाती संसारत्या आजाती जम्ममनयरं // 129 // इत्तो चुओ भवाओ तत्थेव पुणोचिजह हवति जम्मं / सा पञ्चायातित्तिय मणुस्सतेरिच्छिए होई // 130 // कामं असंजयस्सा नत्थि हु मोक्खे धुवमेव आयाई।केण विसेसेण पुणो पावइ समणो अणायाई?॥१३॥ मूलगुण उत्तरगणे अप्पडिसेवी इहं अपडिबदो। भत्तोवहिसयणासणविवित्तसेवी सया पयओ // 132 // तित्थंकरगुरुसाहूसु भत्तिमं हत्थपायसंलीणो। पंचसमिओऽकलहझंझापिसुणओ हारविरओ अ॥१३३॥ पाएण एरिसो सिज्झइत्ति कोइ पुणो आगमेसाए। केण हु दोसेण पुणो पावइ समणोऽपि आयाई? // 134 // जाणि भणिआणि सुत्ते तहागएसुं तहा निदाणाणि / संदाण निदाणंतिय पञ्चातिय होंनि एगट्ठा // 135 // दव्वप्पओगवीससप्पओगसं मूलउत्तरे चेवामूलसरीरसरीरी साती य अणातिए चेव // 136 // णिगलादि उत्तरो वीससा उ साइअमणादिओ चेवा खित्तंभि जमिखेत्ते काले कालो जहिं जाओ॥१३७॥ भावे कसायबंधो अहिगारो बहुविहेसु अत्येसु। इहलोगपारलोगिअ पगयं परलोगिए बंधे॥१३८॥दुविहो अभावबंधो जीवमजीवे अ होइ बोब्बो। एकेकोऽविय तिविहो विवागअविवागतदुभगगो॥१३९॥ पावइ धुवमायाति नियाणदोसेण उज्जमंतोऽवि। विणिवायंपिय पावइ तम्हा अणियाणा सेआ॥१४०॥ अप्पासस्थाए असल्याए अकसाय अप्पमाए / अणिदाययाइ साह संसारमहन्न तरह // 141 // इति समाप्ता श्रीश्रुतकेवलिभगवद्भद्रबाहुखामिविरचिता श्रीदशाश्रुतस्कंधनियुक्तिः निर्घन्धगच्छ+ क्रमायातश्रीमत्तपोगछीयश्रीमत्सागरानन्दसूरिसंशोधिता. उत्कारिता चेयं श्रीसिद्धक्षेत्र श्रीवर्धमानजैनागममंदिरान्तरशेषागमोत्किरणस्यादौ श्रीवीरनिर्वाणतः 2467 वर्षे अक्षयतृतीयायां।