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संजमतवेसु । तम्हा अत्तुकरिसो कजेअबो पयत्तेणं ॥२०॥ जाणि मणिआणि सुत्ते ताणि जो कुणइ अकारणजाए। सो खलु भारियकम्मो न गणेइ गुरुं गुरुट्टाणे ॥ २१ ॥ दंसणनाणचरिनं नवो य विणओ अ हुंति गुरुमूले। विणओ गुरुमूलेत्ति अ गुरूहिं आसायणा तम्हा ॥२शाजाई भणियाई सुत्ते ताई जो कुणइ कारणजाए । सो नहु भारियकम्मो तु गणेइ गुरू गुरुवाणे ॥२३॥ सो गुरुमासायंतो दंसणणाणचरणेसु सयमेव।सीयति कत्तो आराहणासु? तो ताणि कजेजा ॥२४॥आसायणानिजुनी३॥ दवं सरीरभचिओ भावगणी गुणसमनिओ दुपिहो। गणसंगहुवम्गहकारओ अ धम्मं च जाणतो॥२५॥ नायं गणिों गुणिशं गयं च एगट्ट एवमाईअं। नाणी गणित्ति तम्हा धम्मस्स विआणओ भणिओ ॥२६॥ आयारम्मि अहीए जं नाओ होइ समणधम्मो उ। तम्दा आयारधरो भण्णइ पदम गणिट्ठाणं ॥२७॥ गणसंगहुबग्गहकारओ गणी जो पहू गणधरो उ।तेण णओ उकं संपयाए पययं च गुत्तस्थ ॥२८॥ दवे भावे यसरीरसंपया छविहा य भामि। दवे खेत्ते काले भावम्मि अ संगहपरिण्णा ॥२९॥ जह् गयकुलसंभूओ गिरिकंदरकडगविसमदुग्गेसु । परिवहइ अपरितंतो निअयसरीरुम्गए दंते ॥ ३० ॥ तह पवयणभनिगओ साहम्मियवच्छलो असदभावो। परिवहइ असहुवग्गं खेत्तविसमकालतुग्गेसु॥३१॥ गणिनिजुत्ती४ ॥नाम ठवणा चित्तं दो भाये अ होइ बोदवं। एमेव समाहीए निक्खेवो चउपिहो होइ ॥३२॥ जीवो उदयचित्तं जेहि व दवेहि जंमि वा दो। नाणादिसु सुसमाही धुवजोगी भावओ चित्तं ॥३३॥दवं जेण व दवेण समाही आवितं च जं दवं। भावे समाहि चउविह दसण नाणे तव चरिते ॥३४॥ भावसमाही चित्ते ठिअस्स ठाणा इमे विसितरा । होइ जतो पुण चित्ते चित्तसमाहीएं जइस ॥३५॥ चित्तसमाहिठाणनिजुत्ती५॥दव तदट्टोवासक मोहे भावे उवासका चउरो। दवं सरीरभक्ओि तदद्विओ आवणाईसु ॥ ३६॥ कुप्पवयणं कुधम्म हुवासए मोहुवासको सो उ । हंदि तहि सो सेयंति मण्णति संयं तु नस्थि तहिं ॥३७॥ भावे उ सम्मदिट्ठी संममणो जं उवासए समणे । तेण सि गोण्णं नाम उवासगो सावगो वेति ॥ ३८॥ कामं दुवालसंग पवयणमणगारऽगारधम्मो अ। ते केवलिहिं पसूआ पउवसग्गो पसूअंति ॥ ॥३५॥ नो ने सावग तम्हा उवासगा तेसु हाँति भात्तिगया। अविसेसंमि विसेसो समणेसु पहाणया मणिया॥४०॥कामं तु निरवसेसं सर्वजो कुणइ नेण होइ कयं।तमि द्विता उ समणा तोचासग सावगा गिहिणो॥४१॥ दमि सचित्तादी संजमपडिमा तहेव जिणपडिमा। भावो संताण गुणाण धारणा जा जहिं भणिआ॥४शासा दुविहा छब्बिगुणा भिकखूण उवासगाण एगणा। उवार भणिया मिक्खूणुवासगाणं तु पोच्छामि ॥४३॥ तत्थऽहिगारो तु सुहं नातुं आइक्खिउं च गिहिधम्मं । साहूणं चिय तवसंजमंमि संवेगकरणाणि ॥४४॥ जइता गिहिणोऽपिय उजमति नणु साहुणावि कायव्यं । सवत्थामी नवसंजमंमि इअ सुनाऊणं ॥४५॥दसण१ वयर सामाइय३ पोसह४ पडिमा५ अर्वभ६ सचित्ते७। आरंभ८ पेस९ उदिङबजए १० समणभूए ११ अ॥४६॥ उवासगपहिमानिजनी । भिक्खुर्ण उपहाणे पगर्य तत्थ वहति निक्वेयो। तिमि य पुरहिट्ठा पगयं पुण भिकरघुपडिमाए॥४७॥ समाहि उपहाणे या. विवेग पडिमा इय। पटिसलीणा यतहा, एगविहारे अपंचमिआ॥४८॥ आयारे बायाला पटिमा सोलस य वनिआ ठाणे । चत्तारि अ ववहारे मोए दो चंदपडिमाउ ॥४९॥ एवं तु सुअसमाही पडिमा वावडिया य पंचऽना। सामाइअमाईआ चारितसमाहिपडिमाउ॥५०॥ भिकर्ण उवहाणे उवासगाणं च वनिया सुत्ते । गणकोवाइविवेगो सम्भितरबाहिरो दुविहो ॥५१॥ सोइंदिअमादीआ पटिसलीणा चउत्थिआ दुविहा। अट्ठगुणसमग्गस्सा एगविहारिस्स पंचमिआ ॥५२॥ दृढसम्मत्तचरित्ते मेधाविवहुस्सुए य अयले य। अरइरइसहे दविए खंता भयभेरवाणं च ॥५३॥ परिजिअकालामंतणखामण तव संजमे अ संघयणे। भलोचहिनिकोवे आवण्णे लाभ गमणे य॥५४॥ भिकखुपडिमानिजुत्तीपज्जोसवणाए अकखराई हॉति उइमाई गोचाई। परियाय ववत्थवणा पजोसवणाइ पागइया ॥५५॥ परिवसणा पजुसणा पजोसवणा य वासवासो या पढमसमोसरणंति य ठवणा जेट्टोमगहेगट्ठा ॥५६॥ ठवणाए निकखेचो छको दवं च दवनिकखेयो। खेतं तु जम्मि खेने काले कालो जहिं जो उ॥५७॥ ओदइयाईयाणं भावाणं जा जहिं भवे ठवणा। भावेण जेण य पुणो ठविजए भावठवणा उ॥५८॥ सामित्ने करणम्मि य अहिगरणे व होनि छम्भेय। एगलपहत्तेहि दवे खेतऽदभावे य॥५९॥ काले समयाई उ पगयं समयंमि तं परुविस्सं । निकखमणे य पवेसे पाउस सरए य वोच्छामि ॥६०॥ ऊणाइरित्तमासे अट्ठ विहरिऊण गिम्हहेमंते । एमाहं पंचाहे मासं च जहा समाहीए॥६१॥ काऊण मासकप्पं तत्थेव उवागयाण ऊणाते। चिक्खालवासरोहेण वावि तेणऽडिया ऊणा ॥६२॥ बासाखेत्तालंभे अदाणाईसु पत्नमडिगा उ। मावगवाघाएण व अपरिकमिउं जद वयंति ॥६३॥ पडिमापडिवनाणं एगाहं पंच होतऽहालंदे। जिणसुदाणं मासो निकारणओ य थेराणं ॥६४ ॥ ऊणाइरित्तमासा एवं थेगण अट्ठनाया। इयरे अट्ठ विहरियनियमा चनारि अच्छति॥६५॥ आसाढपुन्निमाए वासावासंमि होति ठायत्रं । मग्गसिरबहुलदसमी उ जाव एगमि खेत्तमि॥६६॥ चिक्वाड पाण२ पंडिरा३ वसही४ गोरस५ जणाउले६ विजे७। ओमह८ निचयाए हिवई१० पासंडा११ भिक्ख १२ सज्झाए१३॥६॥ बाहि ठिआ वसभेहिं खेत्तं गाहित्तु वासपाउग्गं । कप्पं कहेनु ठवणा सावणमुदस्स पंचाहे ॥६८॥ एत्थ यी अणभिग्गहिअं वीसइराई मवीसतीमासं । तेण परमभिग्गहिअं गिहिणातं कत्तिओ जाब ॥ ६९॥ असिवाइकारणेहिं अहवा वासं न सुदु आरदं । अहिवइढिअंमि बीसा इयरेसु सवीसई मासो॥ १२५ श्रीदशाश्रुतस्कंध नियुक्ति
मुनि दीपरनसागर
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