Book Title: Aagam Manjusha 29 Painnagsuttam Mool 06 Sanstaarag Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri Publisher: Deepratnasagar View full book textPage 5
________________ हम० // 4 // कुरुदत्तोऽवि कुमारो सिंवलिफालिज अमिाणा वड्ढो। सो तहवि डा० // 5 // आसी चिलाइपुत्तो मुइंगलिआहि चालणिव कओ। सो तहवि ख०॥६॥ आसी गयसु. कुमालो आउयचम्म॑व कीलयसएहिं / धरणीअले उशियो तेणवि आराहि मरणं // 7 // मंखलिणावि य अरहओ सीसा तेअस्स उवगया वड्ढा / ते तहवि डा०॥८॥ परिजाणई तिगुत्तो जावजीवाइ समाहार। संघसमवायमझे सागारं गुरुनिओगेणं // 9 // अहवा समाहिहेउं करेइ सो पाणगस्स आहारं। तो पाणगंपि पच्छा बोसिरइ मुणी जहाकालं // 10 // खामेमि (ति) सबसंघ संवेगं सेसगाण कुणमाणो। मणवइजोगेहिं पुरा कयकारिअअणुमए वावि // 1 // सधे अवराहपए एस खमाबेमि अज निस्सल्लो। अम्मापिऊसरिसया सोऽवि खमंतु मह जीवा // 2 // धीरपुरिसपण्णतं सप्पुरिसनिसेविअं परमधोरं। धन्ना सिलायलगया साहंती उत्तम अटुं // 3 // नारयतिरिअगईए मणुस्सदेवत्तणे वसंतेणं / जं पत्तं मुहबुक्वंतं अणु चिंते अणामणो॥४॥ नरएसु वेअणाओ अणोवमाओ असायबहुलाओ। कायनिमित्त पत्तो अर्णतखुत्तो बहुविहाओ॥५॥ देवत्तेमणुअत्ते परामिओगत्तर्ण उवगएणं / दुस्वपरिकिले. ला सकरी अर्णतखुत्तो समणुभुआ॥६॥ तिरिअगई अणुपत्तो भीममहावेअणा अणोअरया (यारा)। जम्मणमरणरहट्टे अर्णतखुत्तो परिम्भमिओ॥७॥ सुविहिब! अईयकालं अर्णतकाल तु आगयगएणं / जम्मणमरणमर्णत अर्णतखुत्तो समणुभूओ // 8 // नस्थि भयं मरणसम जम्मणसरिसं न विजए दुवं / जम्मणमरणार्यक छिंद ममत्तं सरीराओ॥९॥ अन्न इमं सरीरं अन्नो जीवत्ति निच्छयमईओ। दुक्खपरिकिलेसकर छिंद०॥१०॥ जावंति केइ दुक्खा सारीरा माणसा व संसारे। पसो अर्णतखुत्तो कायस्स ममत्तदोतेणं // 1 // तम्हा सरीरमाई सभितर बाहिरं निरवसेसं / छिंद ममत्तं सुविहिल ! जइ इच्छसि उत्तमं ठाणं // 2 // जगाहारो संघो सबो मह खमउ निरवसेसपि। अहमवि समामि सुदो गुणसंघायस्स संघस्स // 3 // आयरिय उपज्झाए सीसे साहम्मिए कुलगणे य। जे मे केइ कसाया सचे तिविहेण खामेमि // 4 // सञ्चस्स समणसंघस्स भयवओ अंजलिं करिय सीसे। सर्व खमावइत्ता अहमवि खामेमि सबस्स // 5 // सबस्स जीवरासिस्स भावओ धम्मनिहियनियचित्तो। सर्व खमावइत्ता अहयंपि खमामि सदेसि // 6 // इय खामिआइआरो अणुत्तरं तवसमाहिमारुढो। पप्फो डतो विहर बहुविहवा(प० आयविवा)हाकरं कम्म ॥७॥जं बदमसैखिजाहिं असुमभवसयसहस्सकोडीहिं। एगसमएण विहुणइ संथारं आरुहतो य॥८॥ इह तह विहारिणो से विग्धकरी वेयणा समुढेछ / तीसे विजनवणाए अणुसहि दिति निजवया // 9 // जइ ताव ते मुणिवरा आरोवियवित्थरा अपरिकम्मा। गिरिपम्भारविलम्गा बहुसावयसंकडं भीमं // 110 // धीधणियषदकच्छा अणुत्तरविहारिणो समक्खाया। सावयदाढगयाविहु साहंती उत्तमं अटुं॥१॥ किं पुण अणगारसहायगेहिं धीरेहिं संगयमणेहिं / नहु नित्थरिजह इमो संथारो उत्तम अहूँ // 2 // उच्छूढसरीरघरा अन्नो जीवो सरीरममंति। धम्मस्स कारणे सुविहिया सरीरपि छड्डति // 3 // पोराणिया पचुप्पन्निया उ अहियासिऊण वियणाओ। कम्मकलंकलबाही: विहुणइ संथारमारूदो॥४॥ अन्नाणी कम्म खवेह बहुआहिं वासकोडीहिं। तं नाणी तिहिं गुत्तो खवेड ऊसासमित्तेणं // 5 // अट्ठविहकम्ममूलं पहुएहिं भवेहिं संचियं पार्व। तं नाणी०॥६॥ एवं मरिऊण धीरा संथारंमि उ गुरू पसत्यमि। तहअभवेण व तेण व सिजिमजा खीणकम्मरया // 7 // गुत्तीसमिइगुणदो संजमतवनिअमकरणकयमउडो। सम्मत्तनाणदसणतिरयणसंपाविअमहग्यो // 8 // संघो सइंदयाणं सदेवमणुआसुरम्मि लोगम्मि / दुलहतरो बिसुदो तो सुविसुद्धो महामउडो॥९॥डज्झतेणवि गिम्हे कालसिलाए कवल्लिभू. आए। सूरेण व चंडेण प किरणसहस्संपयंडेण // 120 // लोगविजयं करितेण तेण प्राणोवउत्तचित्तेणं / परिसुद्धनाणदसणविभूइमंतेण चित्तेणं ॥१॥चंदगविज्झं लक्ष केवलसरिसं समाउ परिहीणं / उत्तमलेसाणुगओ पडिवन्नो उत्तमं अहूँ // 2 // एवं मए अभिथुआ संथारगईदखंधमारूदा। सुसमणनरिंदचंदा सुहसंकमणं सया वितु // 3 // (20-709) संथारगपइण्णय | समत्तं ६॥-20-श्रीगच्छाचारप्रकीर्णकम् -'नमिऊण महावीर तिअसिंदनमंसियं महाभागं / गच्छायारं किंची उदरिमो सुयसमुदाओ॥१॥७१०॥ अत्येगे गोयमा! पाणी, जेPage Navigation
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