Book Title: Aagam Manjusha 29 Painnagsuttam Mool 06 Sanstaarag
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
Catalog link: https://jainqq.org/explore/003929/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः On Line – आगममंजूषा [२९] संस्तारकं * संकलन एवं प्रस्तुतकर्ता * मुनि दीपरत्नसागर (Me.com. M.Ed, Ph.DJ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || किंचित् प्रास्ताविकम् || ये आगम-मंजूषा का संपादन आजसे ७० वर्ष पूर्व अर्थात् वीर संवत २४६८, विक्रम संवत-१९९८, ई.स.1942 के दौरान हुआ था, जिनका संपादन पूज्य आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसरिजी म.सा.ने किया था| आज तक उन्ही के प्रस्थापित-मार्ग की रोशनी में सब अपनी-अपनी दिशाएँ ढूंढते आगे बढ़ रहे हैं। हम ७० साल के बाद आज ई.स.-2012,विक्रम संवत-२०६८,वीर संवत-२५३८ में वो ही आगम-मंजूषा को कुछ उपयोगी परिवर्तनों के साथ इंटरनेट के माध्यम से सर्वथा सर्वप्रथम “ OnLine-आगममंजूषा ” नाम से प्रस्तुत कर रहे हैं। * मूल आगम-मंजूषा के संपादन की किंचित् भिन्नता का स्वीकार * [१]आवश्यक सूत्र-(आगम-४०) में केवल मूल सूत्र नहीं है, मूल सूत्रों के साथ नियुक्ति भी सामिल की गई है। [२]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) में भी केवल मूल सूत्र नहीं है, मूलसूत्रों के साथ भाष्य भी सामिल किया है। [३]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) का वैकल्पिक सूत्र जो “पंचकल्प” है, उनके भाष्य को यहाँ सामिल किया गया tic [४] “ओघनियुक्ति”-(आगम-४१) के वैकल्पिक आगम “पिंडनियुक्ति” को यहाँ समाविष्ट तो किया है, लेकिन उनका मुद्रण-स्थान बदल गया है। [५] “कल्प(बारसा)सूत्र” को भी मूल आगममंजूषा में सामिल किया गया है। -मुनि दीपरत्नसागर मुनि दीपरतसागर : Address: Mnui Deepratnasagar, MangalDeep society, Opp.DholeshwarMandir, POST:- THANGADH Dist.surendranagar. Mobile:-9825967397 jainmunideepratnasagar@gmail.com Online-आगममंजूषा Date:-12/11/2012 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जरामरणवेयणावहुलं । तह घत्तह काउं जे जह मुचह सङ्घदुक्खाणं ॥१३९॥१-२०-५८६॥ इति तदुवैचारिकप्रकीर्णकम् ५॥ [ 3020-25- संस्तारकप्रकीर्णकम्-काऊण नमुकारं जिणवरवसहस्स वद्धमाणस्स संथारंमि निबद्धं गुणपरिवाडि निसामेह || १ || ५८७॥ एस किराराहणया एस किर मणोरहो सुविहिआणं। एस फिर पच्छिमंते पडागहरणं सुविहियाणं ॥ २ ॥ भुईगहणं जह नक्कयाण अवमाणयं अवज्झा ( वझा ) णस्स महाणं च पडागा तह संथारो सुविहिणं ॥ ३ ॥ पुरिसवरपुंडरीओ अरिहा इव सङ्घपुरिससीहाणं महिलाण भगवईओ जिजणणीओ जयंमि जहा ॥ ४ ॥ बेरुलिउड मणीणं गोसीसं चंदणं व गंधाणं जह व रयणे वरं तह संथारो सुविहिआणं ॥ ५ ॥ वंसाणं जिणवंसो सबकुलाणं च सावयकुलाई । सिद्धिगई व गईणं मुत्तिमुहं सव्वसुक्खाणं ॥६॥ धम्माणं च अहिंसा जणवयवयणाण साहुवयणाडं जिणवयणं च सुईणं सुद्धीणं दंसणं च जहा ॥ ७ ॥ कलाणं अच्भुदओ देवाणं दुखहं तिहुअणमि । बत्तीसं देविंदा जं तं झायंति एगमणा ॥ ८ ॥ लडं तु तए एवं पंडिअमरणं तु जिणवरक्खायं। हंतृण कम्ममा सिद्धिपडागा तुमे लद्वा ॥ ९ ॥ झाणाण परमसुकं नाणार्ण केवलं जहा नाणं । परिनिव्वाणं च जहा कमेण भणिअं जिणवरेहिं ॥ १० ॥ सबुत्तमलाभाणं सामन्नं चैव लाभ मन्नंति । परमुत्तम तित्थयरो परमगई परमसिद्धत्ति ॥ १ ॥ मूल तह संजमो वा परलोगरयाण किलिक्रम्माणं सव्युत्तमं पहाणं सामन्नं चैव मन्नंति ॥ २ ॥ लेसाण सुकलेसा निअमाणं वंभचेरवासो अ। गुत्तिसमिई गुणाणं मूलं तह संजमोबाओ ॥ ३ ॥ सव्वृत्तमनित्थाणं नित्ययरपयासिअं जहा तिथं । अभिसेउव सुराणं तह संधारो सुविहियाणं ॥ ४ ॥ सिअकमलकलससत्थि अनंदावत्तवरमइदामाणं । तेसिपि मंगलाणं संथारो मंगलं अहिअं ( प्र पढमं ॥ ५ ॥ नवअरिंग नियमसुरा जिणवरनाणा विसुद्धपत्थयणा । जे निवहंति पुरिसा संथारगइंदमारूढा ॥ ६ ॥ परमो परमडलं परमाययणंति परमकप्पुत्ति । परमुत्तमतिन्धयरो परमगई परमसिद्धित्ति ॥ ७॥ ता एयं तुमि लद्धं जिणवयणामयविभूसियं देहं । धम्मरय णामया ते पडिया भवणंमि वसुहारा ॥८॥ पत्ता उत्तमपुरिसा कलाणपरंपरा परमदिवा । पावयण साहू धीरं (धीरी) कयं च ते अन सप्पुरिसा ! ॥ ९ ॥ सम्मत्तनाणदंसणवररयणा नाणतेअसंजुत्ता। चारित्तसुदसीला तिरयणमाला तुमे लदा ॥ २० ॥ सुविहियगुणवित्थारं संथारं जे लहंति सप्पुरिसा तेसिं जियलोगसारं स्वणाहरणं कर्य होइ ॥ १ ॥ तं तित्थं तुमि लद्धं जं पवरं सङ्घजीवलोगंमि व्हाया जत्थ मुणिवरा निवाणमणुत्तरं पत्ता ॥ २ ॥ आसवसंवरनिज्जर तित्रिवि अन्था समाहिया जन्य नं नित्यंति भणती सीलवयबद्धसोवाणा ॥ ३ ॥ भंजिय परीसचमूं उत्तमसंजमबलेण संजुत्ता। भुजति कम्मरहिआ निशाणमणुत्तरं रज्जं ॥ ४ ॥ तिहुअणरजसमाहिं पत्तोऽसि तुमं हि समयकपंमि। रज्जाभिसेयमउलं विउलफलं लोइ विहरति ॥ ५॥ अभिनंद मे हिजयं तुब्भे मुक्खस्स साहणोवाओ। जं लदो संथारो सुविहिअ! परमन्धनिन्यारो ॥ ६ ॥ देवावि देवलोए भुंजंता बहुविहाई भोगाई संथारं चिंर्तता आसणसयणाई मुंचति ॥ ७॥ चंदु पिच्छणिजो सूरो इव तेअसा विदिप्पंतो घणवंतो गुणवंतो ९२३ संस्तारकप्रकीर्णकं, आहा-१-२८ मुनि दीपरत्नसागर Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हिमवंतमहतविक्खाओ॥८॥ गुत्तीसमिइउबेओ संजमतबनिअमजोगजुत्तमणो । समणो समाहिअमणो दसणनाणे अणमणो ॥९॥ मेरुज पब्वयाणं सयंभुरमणुब्ब चेव उदहीणं। 18 चंदो इव ताराणं तह संधारो सुविहिआणं ॥३०॥ भण केरिसस्स भणिओ संथारो केरिसे व अवगासे। उक्खंपिगस्स करणं एवं ता इच्छिमो नाउँ ॥१॥ हायति जस्स जोगा जरा असे विविहा अ हुँति आयंका। आरहइ अ संधारं सुविसुद्धो तस्स संथारो॥२॥ जो गारवेण मत्तो निच्छद आलोअर्ण गुरुसगासे। आरुहइ अ संथारं अविसुद्धो तस्स संथारो ॥३॥ जो पुण पत्तभूओ करेइ आलोअणं गुरुसगासे। आम्हइ अ० सुवि०॥४॥ जो पुण दसणमइलो सिढिलचरित्तो करेइ सामन्त्र। आरु० अवि०॥५॥ जो पुण देसणसुद्धो आयचरित्तो करेइ सामनं। आरु० सुवि०॥६॥ जो रागदोसरहिओ तिगुत्तिगुत्तो तिसङमयरहिओ। आव्हइ०, सुवि० ॥७॥ तिहिं गारवेहिं रहिओ तिदंडपडिमोयगो पहिअकित्ती। आम्हइ० मुवि०॥८॥ चउबिहकसायमहणो चउहि विकहाहि विरहिओ निचं। आरुहइ०, सुवि०॥९॥ पंचमहवयकलिओ पंचसु समिईसु सुट्ठ आउत्तो। आम्हइ०, सुवि०॥४०॥ छक्काया पडिविरओ रूतभयट्ठाणविरहिअमईओ। आरुहइ०, सुवि०॥१॥ अट्ठमयट्ठाणजढो कम्मट्टविहस्स खवणहेउत्ति। आरु सुवि०॥३॥ जुत्तस्स उत्तमढे मलियकसायस्स निश्वियारस्स । भण केरिसो उ लाभो संथारगयस्स समणस्स? ॥ ४॥ जुत्तस्स उत्तमढे मलियकसायस्स निवियारस्स। भण केरिसं च सुक्खं संथारगयस्स खमगस्स ? ॥५॥ पढमिल्लगंमि दिवसे संथारगयस्स जो हवइ लाभो । को दाणि तस्स सको अग्धं कार्ड अणग्धस्स ॥६॥ जो संखिजभवद्विइ सपि खवेइ सो तहिं कम्मं । अणुसमयं साहुपयं साहू वृत्तो तहिं समए ॥ ७॥ तणसंथारनिसन्नोऽवि मुणिवरो भट्टरागमयमोहो।जं पावइ मुत्तिसुहं कत्तो तं चक्कवट्टीवि, ॥८॥ तप्पु (नियपू) रिसनाडयंमिवि न सा रई तह सहत्थवित्थारे। जिणवयणमिवि सा ते हेठसहस्सोवगूढंमि ॥९॥ जं रागदोसमइअं सुक्खं जं होइ विसयमईयं च। अणुहवइ चक्कचट्टी न होइ तं वीअरागस्स ॥५०॥मा होउ वासगणया न तत्थ वासाणि परिगणिजति। पहले गच्छं बुस्था जम्मणमरणं च ते खुत्ता ॥१॥ पच्छावि ते पयाया खिष्पं काहिति अपणो पत्थं। जे पच्छिमंमि काले मरंति संथारमारूढा ॥२॥ नचि कारणं तणमओ संथारो नवि अ फासुआ भूमी। अप्पा खलु संथारो हवइ विसुद्ध चरित्तमि ॥३॥ निचंपि तस्स भावुजुअस्स जत्थ व जहिं व संथारो। | जो होइ अहक्खाओ विहारमभुहिलहा ॥४॥ वासारत्तमि तव चित्तविचित्ताइसुटुकाऊण।हमत सथार आम्हा सबऽवत्थासु॥५॥ आसाअ पाअणपुर अज्जा चूलत्ति। तीसे धम्मायरिओ पविस्स्सुओ अनिआउत्तो ॥६॥ सो गंगमुत्तरंतो सहसा उस्सारिओ अ नावाए। पडिबन्नउत्तिमहूँ तेणवि आराहि मरणं ॥ ७॥ पंचमवयकलिआ पंचसया अजया सुपुरिसाणं । नयरंमि कुंभकारे कडगंमि निवेसिआ तइआ॥८॥ पंचसया एगणा यायमि पराजिएण रुट्टेणं। जंतंमि पावमइणा छुन्ना छोण कम्मेण ॥९॥ निम्ममनिरहंकारा निअयसरीरेवि अपडियदा उ। तेवि तह छुज्जमाणा पडिवन्ना उत्तम अहूँ ॥६०॥ दंडुनि विस्मुअजसो पडिमादसधारओ ठिओ पडिम। जउणावके नयरे सरहिं विदो सयंगीओ ॥१॥ जिणवयणनिच्छिमई निअयसरीरेऽवि अपडिषदो उ। सोऽवि तह विज्झमाणो पडिवण्णा उत्तम अहूँ ॥२॥ आसी सुकोसलरिसी चाउम्मासस्स पारणादिवसे। ओरुहमाणो य नगा खइओ मायाइ वग्धीए ॥३॥ धीधणियबदकच्छो पञ्चक्खाणम्मि मुदतु उवउत्तो । सो तहरि खजमाणो पडि० ॥ ४॥ उज्जेणीनयरीए अवंतिनामेण विस्सुओ आसी। पाओवगमनिबन्नो मुसाणमझम्मि एगते ॥५॥ तिन्नि रयणीइ खइओ भड्रंकी रुट्टिया विकड्दती । सोवि तह खजमाणो पडि० ॥६॥ जइमलपंकधारी आहारो सीलसंजमगुणाणं। अजीरणो य गीओ कत्तिय अजो सुरवरंमि ॥७॥ रोहीडगंमि नयरे आहारं फासुयं गवेसंनो। कोवेण खत्तिएण य भिन्नो सत्तिप्पहारेणं ॥८॥ एगंतमणाचाए विच्छिन्ने थंडिले चढ्य देहं । सोऽवि नह भिन्नदेहो पडि ॥९॥ पाडलिपुत्तंमि पुरे चंदयगुत्तस्स चेव आसीय। नामेण धम्मसीहो चंदसिरिं सो पयहिऊणं ॥७०॥ कुङउरमि पुरखरे अह सो अब्भुटिओ ठिओ धम्मे। कासीअ गिद्धप? पञ्चक्रवाणं विगयसोगो॥१॥ अह सोवि चत्तदेहो तिरिअसहस्सेहिं खजमाणो अ। सोऽवि तह खजमाणो पडिः ॥२॥ पाइलिपुनंमि पुरे चाणको नाम विस्सुओ आसी। सबारंभनिअत्तो इंगिणिमरणं अह निवनो ॥३॥ अणुलोमपूअणाए अह से सनू जओ डहइ देहं । सो तहवि डन्झमाणो पडिः॥४॥ गुट्ठयपाओवगओ सुबंधणा गोमये पलिवियंमि। डांती चाणको पडि० ॥ ५॥ काइंदीनयरीए राया नामेण अमयोसुत्ति। तो सो मुअस्स रजं दाऊणं इह चरे धम्मं ॥६॥ आहिडिऊण वमुहं मुत्तत्यविसारओ सुअरहस्सो। काइंदि चेव परि अह पत्तो विगयसोगो सो ॥ ७॥ नामेण चंडवेगो अह से पडिछिंदद तयं देहं । सो तहवि छिजमाणो पडिवनो०॥८॥ कोसंबीनयरीए छलि. अघडा नाम विम्मुआ आसी। पाओवगमनिवन्ना बनीस ने सुअरहस्सा ॥९॥ जलमज्झे ओगाढा नईइ पूरेण निम्ममसरीरा। तहविटु जलवहमले पडिवन्नाः ॥८॥ आसी कुलाण(णाल)नयरे राया नामेण समणदासो। नस्स अमचो रिट्ठो मिच्छादिट्टी पडिनिविट्ठो॥१॥ तत्व य मुणिवरवसही गणिपिङगधरोनहासि आयरिओ।नामेण उसहसेणो मुअसायरपारगो धीरो॥२॥ तस्सासी अ गणहरो नाणासस्थस्थगहि अपेआलो। नामेण सीहसेणो वायंमि पराजिओ रुहो ॥३॥ अह सो निराणुकंपो अग्गि दाऊण मुविहिअपसंते। सो नहवि (२३१) ९२४ संस्तारकपकीर्णकं, 10-25 मुनि दीपरत्नसागर Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हम० // 4 // कुरुदत्तोऽवि कुमारो सिंवलिफालिज अमिाणा वड्ढो। सो तहवि डा० // 5 // आसी चिलाइपुत्तो मुइंगलिआहि चालणिव कओ। सो तहवि ख०॥६॥ आसी गयसु. कुमालो आउयचम्म॑व कीलयसएहिं / धरणीअले उशियो तेणवि आराहि मरणं // 7 // मंखलिणावि य अरहओ सीसा तेअस्स उवगया वड्ढा / ते तहवि डा०॥८॥ परिजाणई तिगुत्तो जावजीवाइ समाहार। संघसमवायमझे सागारं गुरुनिओगेणं // 9 // अहवा समाहिहेउं करेइ सो पाणगस्स आहारं। तो पाणगंपि पच्छा बोसिरइ मुणी जहाकालं // 10 // खामेमि (ति) सबसंघ संवेगं सेसगाण कुणमाणो। मणवइजोगेहिं पुरा कयकारिअअणुमए वावि // 1 // सधे अवराहपए एस खमाबेमि अज निस्सल्लो। अम्मापिऊसरिसया सोऽवि खमंतु मह जीवा // 2 // धीरपुरिसपण्णतं सप्पुरिसनिसेविअं परमधोरं। धन्ना सिलायलगया साहंती उत्तम अटुं // 3 // नारयतिरिअगईए मणुस्सदेवत्तणे वसंतेणं / जं पत्तं मुहबुक्वंतं अणु चिंते अणामणो॥४॥ नरएसु वेअणाओ अणोवमाओ असायबहुलाओ। कायनिमित्त पत्तो अर्णतखुत्तो बहुविहाओ॥५॥ देवत्तेमणुअत्ते परामिओगत्तर्ण उवगएणं / दुस्वपरिकिले. ला सकरी अर्णतखुत्तो समणुभुआ॥६॥ तिरिअगई अणुपत्तो भीममहावेअणा अणोअरया (यारा)। जम्मणमरणरहट्टे अर्णतखुत्तो परिम्भमिओ॥७॥ सुविहिब! अईयकालं अर्णतकाल तु आगयगएणं / जम्मणमरणमर्णत अर्णतखुत्तो समणुभूओ // 8 // नस्थि भयं मरणसम जम्मणसरिसं न विजए दुवं / जम्मणमरणार्यक छिंद ममत्तं सरीराओ॥९॥ अन्न इमं सरीरं अन्नो जीवत्ति निच्छयमईओ। दुक्खपरिकिलेसकर छिंद०॥१०॥ जावंति केइ दुक्खा सारीरा माणसा व संसारे। पसो अर्णतखुत्तो कायस्स ममत्तदोतेणं // 1 // तम्हा सरीरमाई सभितर बाहिरं निरवसेसं / छिंद ममत्तं सुविहिल ! जइ इच्छसि उत्तमं ठाणं // 2 // जगाहारो संघो सबो मह खमउ निरवसेसपि। अहमवि समामि सुदो गुणसंघायस्स संघस्स // 3 // आयरिय उपज्झाए सीसे साहम्मिए कुलगणे य। जे मे केइ कसाया सचे तिविहेण खामेमि // 4 // सञ्चस्स समणसंघस्स भयवओ अंजलिं करिय सीसे। सर्व खमावइत्ता अहमवि खामेमि सबस्स // 5 // सबस्स जीवरासिस्स भावओ धम्मनिहियनियचित्तो। सर्व खमावइत्ता अहयंपि खमामि सदेसि // 6 // इय खामिआइआरो अणुत्तरं तवसमाहिमारुढो। पप्फो डतो विहर बहुविहवा(प० आयविवा)हाकरं कम्म ॥७॥जं बदमसैखिजाहिं असुमभवसयसहस्सकोडीहिं। एगसमएण विहुणइ संथारं आरुहतो य॥८॥ इह तह विहारिणो से विग्धकरी वेयणा समुढेछ / तीसे विजनवणाए अणुसहि दिति निजवया // 9 // जइ ताव ते मुणिवरा आरोवियवित्थरा अपरिकम्मा। गिरिपम्भारविलम्गा बहुसावयसंकडं भीमं // 110 // धीधणियषदकच्छा अणुत्तरविहारिणो समक्खाया। सावयदाढगयाविहु साहंती उत्तमं अटुं॥१॥ किं पुण अणगारसहायगेहिं धीरेहिं संगयमणेहिं / नहु नित्थरिजह इमो संथारो उत्तम अहूँ // 2 // उच्छूढसरीरघरा अन्नो जीवो सरीरममंति। धम्मस्स कारणे सुविहिया सरीरपि छड्डति // 3 // पोराणिया पचुप्पन्निया उ अहियासिऊण वियणाओ। कम्मकलंकलबाही: विहुणइ संथारमारूदो॥४॥ अन्नाणी कम्म खवेह बहुआहिं वासकोडीहिं। तं नाणी तिहिं गुत्तो खवेड ऊसासमित्तेणं // 5 // अट्ठविहकम्ममूलं पहुएहिं भवेहिं संचियं पार्व। तं नाणी०॥६॥ एवं मरिऊण धीरा संथारंमि उ गुरू पसत्यमि। तहअभवेण व तेण व सिजिमजा खीणकम्मरया // 7 // गुत्तीसमिइगुणदो संजमतवनिअमकरणकयमउडो। सम्मत्तनाणदसणतिरयणसंपाविअमहग्यो // 8 // संघो सइंदयाणं सदेवमणुआसुरम्मि लोगम्मि / दुलहतरो बिसुदो तो सुविसुद्धो महामउडो॥९॥डज्झतेणवि गिम्हे कालसिलाए कवल्लिभू. आए। सूरेण व चंडेण प किरणसहस्संपयंडेण // 120 // लोगविजयं करितेण तेण प्राणोवउत्तचित्तेणं / परिसुद्धनाणदसणविभूइमंतेण चित्तेणं ॥१॥चंदगविज्झं लक्ष केवलसरिसं समाउ परिहीणं / उत्तमलेसाणुगओ पडिवन्नो उत्तमं अहूँ // 2 // एवं मए अभिथुआ संथारगईदखंधमारूदा। सुसमणनरिंदचंदा सुहसंकमणं सया वितु // 3 // (20-709) संथारगपइण्णय | समत्तं ६॥-20-श्रीगच्छाचारप्रकीर्णकम् -'नमिऊण महावीर तिअसिंदनमंसियं महाभागं / गच्छायारं किंची उदरिमो सुयसमुदाओ॥१॥७१०॥ अत्येगे गोयमा! पाणी, जे