Book Title: Aagam Manjusha 28 Painnagsuttam Mool 05 Tandulveyaliya Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri Publisher: Deepratnasagar View full book textPage 5
________________ バンザメショパン मुक्स्यः धम्मर्कखिए पुन्नः सम्गः मुक्ख धम्मपिवासिए पुन्नः सग्ग० मुक्ख०, तच्चित्ते जाव तम्भावणाभाषिए, एयंसि णं अंतरंसि कालं करिजा देवलोएस उववज्जिज्जा से एए अद्वेणं गोः! एवं युच्चइ-अत्थेगइए उववज्जिज्जा अत्थेगइए नो उववजिज्ञा । ८। जीवे णं भंते! गम्भगए समाणे उत्ताणए वा पासिलए अंबजाए वा अच्छिन वा चिट्टिज वा निसी - इज्ज वा तुयट्टिज वा आसन वा सइज्ज वा माऊए सुयमाणीए सुबह जागरमाणीए जागरइ सुहिआए सुहिओ भवइ दुहिआए दुखिओ भवइ ?, हंता गो० जीवे णं गब्भगए समा उत्तान वा जाव दुक्खआए दुक्खओ भवइ । ९ । थिरजायंपि हु रक्खइ सम्मं सारखई तओ जणणी संवाहई तुयहई रक्खड़ गन्भं च अप्पं च ॥ ८ ॥ अणुमुयइ सुयंतीए जागरमाणीए जागरइ गच्भो। सुहियाए होइ सुहिओ दुहिआए दुखिओ होइ ॥ ९ ॥ उच्चारे पासवणे खेले सिंघाणओऽवि से नत्थि । अद्विऽडिमिंजनहकेसमंसुरोमेसु परिणामो ॥२०॥ आहारो परिणामो उसासे तह य चैव नीसासो सङ्घपएसेसु भवई कवलाहारो य से नत्थि ॥ १ ॥ (प्र० एवं बुंदिमइगओ गब्भे संवसह दुक्खिओ जीवो। परमतमिसंधयारे अमेज्झभरिए पाएसंमि ॥ १ ॥) आउसो ! तओ नवमे मासे तीए वा पडुप्पन्ने वा अणागए वा चउन्हं माया अन्नयरं पयाय, तं० इत्थिं वा इत्थिरूणं पुरिसं वा पुरिसरुवेणं नपुंसगं वा नपुंसगरूणं विवं वा विंचरूवेणं 'अप्पं सुकं बहुं उउयं, इत्थीया तत्थ जायई। अप्पं उउयं बहुं सुकं, पुरिसो तत्थ जाय ॥ २ ॥ दुष्हंपि रत्तमुक्काणं, तुलभावे नपुंसओ। इत्थीओयसमाओगे, बिंबं (वा) तत्थ जायइ ॥ ३ ॥ १० ॥ अहव णं पसवणकालसमयंसि सीसेण वा पाएहिं वा आगच्छ संममागच्छइ, तिरियमागच्छइ विणिघायमाकजइ । ११ । 'कोई पुण पावकारी वारस संवछराई उक्कोसं अच्छइ उ गन्भवासे असुइप्पभवे असुइयंमि ॥ ४ ॥ जायमाणस्स जं दुक्खं, मरमाणस्स वा पुणो तेण दुक्खेण संमूढो, जाई सरइ नऽप्पणो ॥ ५ ॥ विस्सरसरं रसंतोअह सो जोणीमुहाउ निप्फिडइ माऊए अप्पणोऽवि य वेयणमडलं जणेमाणे ॥६॥ गम्भघरयम्मि जीवो कुंभीपागम्मि नरयसंकासे। बुच्छो अमिज्झमज्झे असुइप्पभवे असुइयंमि ॥७॥ पित्तस्स व सिंभस्स य सुकस्स य सोणियस्सऽविय मज्झे। मुत्तस्स पुरीसस्स य जायद जह बच्चकिमिउव ॥ ८॥ तं दाणिं सोयकरणं केरिसयं होइ तस्स जीवस्स ? । सुकरुहिरागराओ जम्मुप्पत्ती सरीरस्स ॥ ९ ॥ एयारिसे सरीरे कलमलभरिए अमिज्झसंभूए। निययं विगणितं सोयमयं केरिसं तस्स ? ॥ ३० ॥ आउसो ! एवं जायस्स जंतुस्स कमेण दस दसाओ एवमाहिजति तं बाला किड्डा मंदा बला य पना य हायणि पवंचा पब्भारा मुम्मुही सायणी य दसमा य कालदसा ॥ १ ॥ जायमित्तस्स जंतुस्स जा सा पढमिया दसा न तत्य भुंजिउं (जई) भोए, जड़ से अस्थि घरे भुवा ॥ २ ॥ बीयाए किड्डया नामं, जं नरो दसमस्सिओ किडारमणभावेण, दुलहं गमइ नरभवं ॥ ३ ॥ तईयाए मंदया नामं, जं० । मंदस्स मोहभावेण इत्थी भोगेहिं मुच्छिओ ॥ ४ ॥ ( प्र० न तत्थ सुहं दुक्खं वा बहुं जाणंति बालया ॥ १ ॥ विइयं च दसं पत्तो, नाणाकीलाहिं कीडई। न य से कामभोगेसु तिषा उप्पज्जई रई ॥ २ ॥ तइअं च दसं पत्तो, पंचयामगुणो नरो। समत्यो भुंजिउं भोए, जइ से अस्थि घरे धुवा ॥ ३ ॥ ) चउत्थी उ बलानाम, जं० । समत्यो बलं दरिसेउं, जइ सो भवे निरुवद्दवो ॥ ५ ॥ पंच तु दसं पत्तो, आणुपुडीइ जो नरो। समत्थोऽत्थं विचितेउं कुटुंबं चाभिगच्छ ॥ ६ ॥ छडी उ हायणी नाम, जं०। विरज्जई अ कामेसु. इंदिएस पहायई ॥ ७ ॥ सत्तमी य पचाउ, जं० । निभइ चिकणं खेलं, खासई य खणे खणे ॥ ८ ॥ संकुइ अवलीचम्मो, संपतो अडमिं दसं नारीणं च अणिडो य, जराए परिणामिओ ॥ ९ ॥ नवमी मुम्मुहीनाम, जं नरो दसमस्सिओ । जराघरे विणस्संते, जीवो क्सइ अकामओ ॥ ४० ॥ हीणभिनसरो दीणो, विवरीओ विरूवओ। दुब्बलो दुक्लिओ सुयइ, संपत्तो दसमिं दस ॥ १ ॥ दसगस्स उबक्वेवो वीसइवरिसाउ गिण्हई किज्जं भोगा य नीसगम्स य चन्नालीसस्स य विज्ञाणं ॥ २ ॥ पन्नासयस्स चक्खं हायइ सकियस्स बाहुबलं भोगा य सत्तरिस्स य असीययस्सा य वित्राणं ॥ ३ ॥ नउई नमइ सरीरं वाससए जीविअं पुणो चयइ । कित्तिओऽत्थ सुहो भागो दुहभागो य कित्तिओ १ ॥ ४ ॥ १२ ॥ जो वाससयं जीवइ, सुही भोगे य भुंजई तस्सावि सेवि सेओ, धम्मो य जिणदेसिओ ॥ ५ ॥ किं पृण सपचवाए, जो नरो निधदुक्लिओ सुदुयरं तेण कायो, धम्मो य जिणदेसिओ ॥ ६ ॥ नंदमाणो चरे धम्मं वरं मे लघुतरं भवे। अणंदमाणोवि चरे, मा मे पावतरं भवे ॥ ७॥ नवि जाई कुलं बावि, बिना वाचि सुसिखिया तारे नरं व नारिं वा सर्व्वं पुण्णेहिं बढई ॥ ८ ॥ पुण्णेहिं हायमाणेहिं, पुरिसगारोऽवि हायई। पुण्णेहिं बढमाणेहिं, पुरिसगारोऽवि बढई ||९|| पुण्णाई खलु आउसो किच्चाई करणिजाई पीड़कराई वन० घण० जस० कित्तिः, नो य खलु आउसो ! एवं चिंतेय एसति खलु बहवे समया आवलिया खणा आणापाणू थोवा लवा मुहुत्ता दिवसा अहोरना पक्खा मासा रिऊ अयणा संवच्छरा जुगा वाससया वाससहस्सा वाससयसहस्सा वासकोडीओ वासकोडाफोडीओ जब अम्हे बहूई सीलाई क्याई गुणाई वेरमणाई पञ्चकखाणाई पोसहोववासाई पडिवज्जिस्सामी पट्टविस्सामो करिस्सामो, ता किमत्थं आउसो ! नो एवं चिंतेयवं भवद्द ?, अंतराबहुले खल अयं जीविए, इमे य बहवे बाइयपित्तिअसिंभियसन्निवाइया विविहा रोगायंका फुसंति जीविअं । १३। आसी य खलु आउसो ! पुत्रिं मणुया ववगयरोगायका बहुवास्यस ९१८ तन्दुलवैचारिक, आदा- २५-२ मुनि दीपरत्नसागर కార్కీ స్టిప్పర్ లోPage Navigation
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