Book Title: Aagam 16 SOORYA PRAGYAPTI Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
View full book text
________________
आगम
(१६)
प्रत
सूत्रांक
[8]
दीप
अनुक्रम
[3]
सूर्यप्रज्ञतिवृत्तिः ( मल०)
“सूर्यप्रज्ञप्ति” - उपांगसूत्र -५ (मूलं + वृत्तिः)
प्राभृतप्राभृत [-]
मूलं [१]
आगमसूत्र [ १६ ], उपांग सूत्र [५] "सूर्यप्रज्ञप्ति" मूलं एवं मलयगिरि प्रणीत वृत्तिः
प्राभृत [१], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.
'जाब राजा जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं पडिगए' इति, अत्र यावच्छन्दादिदमीपपातिकमन्थोक्तं द्रष्टव्यं- 'तए णं सा महइमहालिया परिसा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोचा निसम्म हडतुडा समणं भगवं महावीरं तिक्खुतो आंयाहिणपयाहिणं करेइ करिता बंदर नर्मसह वंदित्ता नर्मसित्ता एवं वयासी- सुयक्खाए णं भंते ! निम्गंथे २ पावयणे, नत्थि य केइ अने समणे वा माहणे वा परिसं धम्ममा इक्खिसए, एवं वदित्ता जामेव दिसं पाउथ्भूया तामेव ॥३॥ * दिसं पडिगया, तए णं से जियसत्तू राया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सुच्चा निसम्म हडतुडे जाव हयहि* यए समणं भगवं महावीरं बंदर नर्मसह वंदित्ता नर्मसित्ता पसिणाई पुच्छइ पुच्छित्ता अट्ठाई परियाएइ परिवाइत्ता * उठाए उडाइ उठाए उद्वित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नर्मसित्ता एवं वयासी सुयक्खाए णं भंते ! निग्गंथे पावयणे जाव एरिसं धम्ममा इक्खित्तए, एवं वइत्ता हत्थि दुरूहइ दुरूहित्ता समणस्स भगवतो महावीरस्स अंतियाओ माणिभद्दाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ पडिनिक्खमित्ता जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए' (सू. ३५० ३६-३७) इति इदं च सकलमपि सुगमं, नवरं यामेव दिशमवलम्ब्य किमुक्तं भवति ? यतो दिशः सकाशात् प्रादुर्भूतः -- समवसरणे समागतस्तामेव दिशं प्रतिगतः ।
समणं समणस्स भगवतो महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूती णामे (मं) अणगारे गोतमे गोणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए बजरिसहनारायसंघयणे जाव एवं बयासी ( सू २ ) "ते काले णं तेणं समए णं समणस्स भगवतो महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामे अणगारे गोयमे
Education International
For Park Use Only
~ 11~
प्रस्तावना.
॥ ३ ॥
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/c1381625f19346e3d5e208adc7da22b591ecf1a140e2be28997392be1b78122b.jpg)
Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 600