Book Title: 16 vi Shatabdi ka Achirchit Hindi Kavi Bramha Gunkirti
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Z_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf

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Page 3
________________ सामाजिक स्थिति 'रामसीतारास' छोटी-सी राम-कथा है / कथा कहने के अतिरिक्त कवि को अन्य बातों को जोड़ने की अधिक आवश्यकता भी नहीं थी। उसके बिना भी जीवन-कथा को कहा जा सकता था लेकिन कवि ने जहां भी ऐसा कोई प्रसंग आया वहीं पर सामाजिकता का अवश्य स्पर्श किया है। प्रस्तुत रास में रामसीता के विवाह के वर्णन में सामाजिक रीति-रिवाजों का अच्छा वर्णन मिलता है। राम के विवाह के अवसर पर तोरण द्वार बांधे गये थे। मोतियों की बांदरवाल लटकाई गई थी। सोने के कलश रखे गये। गंधर्व एवं किन्नर जाति के देवों ने गीत गाये / सुन्दर स्त्रियों ने लबांछना लिया / तोरण द्वार पर आने पर खूब नाच-गान किये गये / चंवरी के मध्य वरवधु द्वारा बैठने पर सौभाग्यवती स्त्रियों ने बधावा गाया। लगन वेला में पंडितों ने मंत्र पढ़ / हबलेवा किया गया। खूब दान दिया गया।' नगरों का उल्लेख राम, लक्ष्मण एवं सीता जिस मार्ग से दक्षिण में पहुंचे थे उसी प्रसंग में कवि ने कुछ नगरों का नामोल्लेख किया है। ऐसे नगरों में चित्तुड़गढ (चित्तौड़), नालछिपाटण, अरुणग्राम, वंशस्थल, मेदपाट (मेवाड़) के नाम उल्लेखनीय हैं। कवि ने मेवाड़ की तत्कालीन राजधानी चित्तौड़ का अच्छा वर्णन किया है।' लोकप्रियता कवि ने रामकथा की लोकप्रियता, जन सामान्य में उसके प्रति सहज अनुराग एवं अपनी काव्य-प्रतिभा को प्रस्तुत करने के लिये 'रामसीतारास' की रचना की थी। महाकवि तुलसी के सैकड़ों वर्षों पूर्व जैन कवियों ने रामकथा पर जिस प्रकार प्रबन्ध काव्य एवं खण्ड काव्य लिखे वह सब उनकी विशेषता है / जैन समाज में रामकथा की जितनी लोकप्रियता रही उसमें महाकवि स्वयम्भु, पुष्पदन्त, रविषेणाचार्य जैसे विद्वानों का प्रमुख योगदान रहा / तुलसी ने जब रामायण लिखी थी उसके पहिले ही जैन कवियों ने छोटे-बड़े बीसियों रास समाप्ति कवि ने रास समाप्ति पर अपनी लघुता प्रकट करते हुए लिखा है कि रामायण ग्रन्थ का कोई पार नहीं पा सकता / वह स्वयं मतिहीन है इसलिये उसने कथा का अति संक्षिप्त वर्णन किया है। ए रामायण ग्रन्थ तु, एह नु पार नहीं ए। हुँ मानव मतिहीण तु, संखेपि गति कही ए॥ विद्वांस जे नर होउ तु, विस्तार ते करिए। ए राम भास सुणेवि तु, मुझ परि दया धरा ए॥ प्रस्तुत रास में 12 ढालें हैं जो अध्याय का कार्य करती हैं। पूरी ढालों में 207 पद्य हैं जो अलग-अलग भास रागों में विभक्त हैं जिनमें भास श्री ही, भास मिथ्यात्व मोडनी, भास वणजारानी, भास नरेसूवानी, भास सही की, भास तीन चुवीसीनी, भास सहिल्डानी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। कवि को चोटक छन्द भी अत्यधिक प्रिय था इसलिये आरम्भ में उसका भी अच्छा प्रयोग किया गया है। इस प्रकार ब्रह्म गुणकीति हिन्दी जैन साहित्य के एक ऐसे जगमगाते नक्षत्र हैं जिनकी राजस्थान, उत्तरप्रदेश, देहली, मध्यप्रदेश एवं गुजरात के दिगम्बर जैन शास्त्र भण्डारों में विस्तृत खोज की आवश्यकता है / आशा है विद्वान मेरे इस निवेदन पर ध्यान देंगे। 1. विदेहा पक्षाणु सीधं, सासू वर पुरवण की। पर चवटी माहि पापा, सोहासणीमि बधाषा // 5 // शुभ वेसा तिहाँ जोड, चरति मंगल सोइ // 6 // सजन दाव मान दीपा, जनम तणां फात लीधा / भाइ बाप होड माणंद, बाध्य धमेनु कन्द // 8 // मरतय सिंह समान भेदपार देण मोई उए, 11/5 2. जैन साहित्यानुशीलन 144 Jain Education International www.jainelibrary.org

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