Book Title: $JES 901 Jainism and Spiritual Awakening E9
Author(s): JAINA Education Committee
Publisher: JAINA Education Committee

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Page 128
________________ 23 - AHIMSA QUOTES FROM SAMAN SUTTAM रागादीणमणुप्पाओ, अहिंसकतं त्ति देसियं समए। तेसिं चे उप्पत्ती, हिंसेत्ति जिणेहि णिद्दिट्ठा।।७।। __ - जयधवला 1/42.94 जिनेश्वर देव ने कहा है -- राग आदि की अनुत्पत्ति अहिंसा है और उनकी उत्पत्ति हिंसा है। It is said by Tirthankar that absence of attachment and aversion is non-violence. While its presence is violence. जीववहो अप्पवहो, जीवदया अप्पणो दया होइ। ता सव्वजीवहिंसा, परिचत्ता अत्तकामेहि।।५।। - भक्तपरिण्णा 93 जीव का वध अपना ही वध है। जीव की दया अपनी ही दया है। अतः आत्महितैषी) आत्मकाम (पुरुषों ने सभी तरह की जीव-हिंसा का परित्याग किया है। Killing or hurting a living being is killing or hurting one's own self. Showing compassion to a living being is showing compassion to oneself. He who desires his own good, should avoid causing any harm to a living being. सव्वे जीवा वि इच्छंति, जीविउं न मरिज्जिउं। तम्हा पाणवहं घोरं, निग्गंथा वज्जयंति णं।।२।। - दशवैकालिक 6/10 सभी जीव जीना चाहते हैं, मरना नहीं। इसलिए प्राणवध को भयानक जानकर निर्ग्रन्थ उसका वर्जन करते हैं। All living beings wish to live and not to die; that is why nirgranthas (monks and nuns) prohibit the killing or hurting of any living beings. JAINISM AND SPIRITUAL AWAKENING 127

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