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कृमिना हिंसाचाराश्रयन माटी पा मुखव्यविषदिक (बंडीजी वनजघाना तिघा परिममननर्द्विदारक रिवाल लामोतलितांसी पजीवन्नु घातघा तथा अनेराश मादिककाश कपन घाणा का रानावा तसा कपनेते बुधकता व ज्ञानराज दिन मूषीलाकरणिकार गिनी व लोकविषई हिंसक दनवेति प्राणजीवतेहनत या इमे ये कहती प्रत्यक्षलक्ष्य दीसताए केंद्री टीकायादिकवाकबापड़ा। तघातिना श्रिताने रामे सप्राणतसरीरे कहती सू शरीरोड वा समास कहता तेन घा तकर। तेजीवके दवाब जदन बीजवापानी । वली केद वा शरद नईरणानं दादारको न घीवलीकेदवा नाघ्जेहन स्वामी कोनमीता इन स्वजन को घी वलीकेहवाब | कम्म निगल बहे। कर्मरूपिया निगल कहती लोहबंधनाते
बांधा। हवा जीव तघावली केहवा मुसलपरिणाममंदबुद्विज। 5 द्विजाशल परिणामदयारहितपाइंकरी हृष्टमननउवसायाने हात कशल परिणामात्या मंदबु १