SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नेत्र-अंतरायाहि तराकर्म विमुक्त राहन घया के सि सर्वश्वर्थना सिसिहि. प. कषायादिकर ५६६ सर्व श्रीम. कर्म किए कराय दिन सीतली भू तराए गए उतरा कम्मविष्णुमुक्त सिद्धिबाट माल परिनी - सर्व नाता शशिरमा नाम हुषधी ग्स नेए / खायच भावधीत पति मे. सेराव. फ्यभागी नामकारक स. सर्व रहीत या (दीपना बुडे अंतगरे सङ्घदरक पहासनंख्य निष्फलास इस वः प्रायकि को सयोपशम भाव - बेत्रका वापर (ते-नेक तइट) (ल-संयोप समानयानसम नेते ख संकित व उसमिए दुहन्नास तंज हारक, उ बसामय (एस. ते त्रय) रवः क्षय) पशन) - या रथातीया कर्मच. भारघ.. कोणते भाव ) घाघाति कर्मनो स्वसमनिष्पान्निय्यासति उवसाम चुघायिकम्म ८२
SR No.650032
Book TitleAnuyogadwara Sutra
Original Sutra AuthorAryarakshit
Author
PublisherSujalpur
Publication Year1851
Total Pages412
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_anuyogdwar
File Size168 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy